राजेश ज्वेल
ज्योतिरादित्य सिंधिया की कद्र कांग्रेस में घट गई तो उन्हें भाजपा का दामन थामना पड़ा..कमलनाथ का तख्तापलट करने के बाद अब उन्हें खुद को कर्मठ पार्टी कार्यकर्ता बताते हुए भाजपा नेताओं के दरवाजे पर दस्तक देना पड़ रही है… वरना महाराज से मिलने के लिए दरबारियों की भीड़ लगा करती थी और बिना अपार्टमेंट कोई मिल भी नहीं सकता था…दरअसल सिंधिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने समर्थकों को चुनाव जीतवाने की है, ताकि प्रदेश सरकार बदस्तूर चलती रहे और उनका रुतबा भाजपा में बरकरार रहे..यही कारण है कि अभी उज्जैन-इंदौर दौरे के दौरान सिंधिया को भाजपा के सभी बडे नेताओं से व्यक्तिगत रूप से घर जाकर मिलना पड़ा और कार्यकर्ताओं को भी उन्होंने पर्याप्त तवज्जो दी… वरना सिंधिया जी को जानने वालों को पता है कि उनका हाथ ना तो कभी जेब में गया और ना सबके लिए अभिवादन के लिए जुड़ता दिखा..उल्टा श्रीमंत के सामने धोक देने वालों की कतार लगी रहती थी…लेकिन अब अपने राजसी ठसके से इतर श्रीमंत एक आम कार्यकर्ता की तरह नजर आना चाहते हैं…वैसे भी अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा दाव लगाने के बाद सिंधिया की नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी होगी, क्योंकि उनका सुदर्शन चेहरा प्रदेश भाजपा के लिए भी लाभदायक साबित हो सकता है और देर सवेर वे शिवराज के बेहतर विकल्प भी बन सकते हैं..क्योंकि खुद सिंधिया में मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश रही है जो कांग्रेस आलाकमान ने पूरी नहीं की…
हालांकि राजनीतिक गलियारों में ये भी चर्चा है कि भाजपा लम्बे समय तक महाराज के सामंती तेवर बर्दाश्त नहीं कर पाएगी..और देर सबेर विकल्प भी तलाशेगी ..क्योंकि उसके भीतर भी कांग्रेस के बागी विधायकों को लेकर कम असंतोष नहीं है..एक तरफ पुराने भाजाइयों की टिकट कटेगी..वहीं मंत्री से लेकर विभागों के बंटवारे में भी समझौते करना पड़े… जिसके चलते भाजपा ने अन्य कांग्रेसी विधायकों को भी अपने पाले में लेने का अभियान जारी रखा, ताकि उपचुनावों के बाद अगर सिंधिया समर्थक विधायक कम जीतते हैं तो अन्य विधायकों के जरिए सरकार चलती रहे…इन सब परिस्थितियों को भांप कर ही सिंधिया ने मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू किया और इस धारणा को भी वे तोडऩे में जुटे हैं कि महाराज किसी से नहीं मिलते ..
इधर उतावले भाजपाई भी उन्हें अपना नजदीकी बताते हुए कहीं रैलिंग तोड़ रहे हैं, तो कहीं कांच फोड़कर श्रीमंत के गुणगान में जुटे हैं… सिंधिया जी को भी अब ये अहसास हो गया कि उनकी ठसक भाजपा में तो क्या आज की राजनीति में भी नहीं चलेगी जहाँ सभी को एक तराजू में मेंढक की तरह तौलना पड़ता है…फिर उनको अपने ही कार्यकर्ता से लोकसभा चुनाव हारने का भी मलाल है..जिसमें उनकी पत्नी का वह ट्वीट भी चर्चित रहा, जिसमें महाराज के साथ सेल्फी लेने वाले को भाजपा से टिकट मिलने पर मजाक उड़ाया गया था…जमीनी हक़ीक़त समझ अब जनता से लेकर नेताओं-कार्यकर्ताओं से सहज मिलने लगे हैं सिंधिया… यानी अब यह मान लिया जाना चाहिए कि वे एक महाराज थे… जो अब खुद को जनसेवक के रूप में साबित करना चाहते हैं..! ‘