उत्तराखंड में मौजूद है देवी का चमत्कारिक मंदिर, जहां दिन में तीन बार मूर्ति बदलती है अपना रूप!

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Ma Dhari Devi Mandir Uttarakhand : भारत एक ऐसा देश है जहां की संस्कृति और सभ्यता और कही देखने को नहीं मिलती है यही कारण है कि, देश में हर साल लाखों विदेशी सैलानी आते हैं। देश में कई पौराणिक और अद्भुत मंदिर किले मौजूद है, जिनका दीदार करने हजारों लोग रोज पहुँचते हैं।

आज हम आपको एक ऐसे ही चमत्कारी मंदिर के वारे में बताने जा रहे है, जिसके बारे में मान्यता के अनुसार, माना जाता है कि इस मंदिर में मौजूद मां धारी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। मां धारी की मूर्ति सुबह के समय एक कन्या की तरह दिखती है, फिर दोपहर के समय जवान युवती की तरह और शाम के समय एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है।

दरअसल, यह स्थान उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में, श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित धारी देवी का मंदिर, अपनी अद्भुत और चमत्कारिक घटनाओं के लिए जाना जाता है। यह मंदिर मां काली को समर्पित है और श्रीनगर से 14 किलोमीटर दूर धारो गांव में स्थित है।

धारी देवी मंदिर कई कारणों से प्रसिद्ध है, जिनमें शामिल हैं:

मां धारी की मूर्ति का रूप बदलना:
यह मंदिर एक अद्भुत घटना के लिए जाना जाता है, जहाँ मां धारी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। सुबह के समय मां एक कन्या की तरह दिखती हैं, दोपहर में युवती बन जाती हैं, और शाम को बूढ़ी महिला का रूप धारण कर लेती हैं। यह अद्भुत दृश्य भक्तों को विस्मय से भर देता है।

चारधाम की रक्षा:
मान्यता है कि मां धारी उत्तराखंड के चार धामों – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की रक्षा करती हैं।

पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षा:
मां धारी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षा करने वाली देवी भी माना जाता है।

मंदिर का इतिहास:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भयंकर बाढ़ में मां धारी का मंदिर और मूर्ति बह गए थे। मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। मां की आवाज ने ग्रामीणों को उसी स्थान पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। ग्रामीणों ने मिलकर मां धारी का मंदिर बनाया।

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि 2013 में उत्तराखंड में आई विनाशकारी बाढ़ मां धारी के मंदिर को तोड़ने और मूर्ति को हटाने के कारण हुई थी। आज, धारी देवी का मंदिर पुनर्निर्मित हो चुका है और हजारों भक्त मां के दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और धार्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।