इंदौर : अगर बात पिछले एक दशक की करी जाए तो किडनी से संबंधित बीमारी में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं जिसमें डायबिटीज किडनी रोगी की मात्रा बढ़ी है वही कोविड के बाद ऑटोइम्यून बीमारियों की मात्रा में भी परिवर्तन हुआ है। पहले प्रेगनेंसी और डिलीवरी के बाद 5% महिलाओं को ब्लड प्रेशर वही 1% महिलाओं को किडनी से संबंधित समस्या सामने आती थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में किडनी के साथ होने वाली बिमारियों में काफी बदलाव और बढ़त देखने को मिल रही हैं। यह बात डॉ शिव शंकर शर्मा ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही वह शहर के प्रतिष्ठित केयर सीएचएल और एमजीएम मेडिकल कॉलेज में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
सवाल : किडनी संबंधित बीमारी होने पर इसके लक्षण किस तरह पहचानें जा सकते हैं, क्या यह पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले ज्यादा होती है।
जवाब : किडनी की बीमारी के लक्षण में ब्लड प्रेशर का बढ़ना और हाथ पैर में सूजन शामिल है कई बार किडनी के पेशेंट को किडनी में दर्द की अनुभूति नहीं होती है वही जब यह बीमारी ज्यादा बढ़ जाती है तो भूख कम लगना, उल्टी होना इस प्रकार की समस्या देखने को सामने आती है इसी के साथ कुछ लोगों में पेशाब मैं ब्लड और झाग आना भी इससे संबंधित समस्या होते हैं। इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर इसे नजरअंदाज करने के बजाय इसकी जांच करवानी चाहिए। शुरुआत में इसकी बहुत कम रियायत दरों पर दो से तीन जांचें करवाई जाती है जिसमें यूरिन की जांच, सीरम क्रिएटिनिन की जांच, सोनोग्राफी शामिल है। इसकी मदद से इस बीमारी को 90 प्रतिशत जांचा जा सकता है किडनी की बीमारी ज्यादातर बुजुर्गों में देखने को मिलती है क्योंकि यह उम्र के साथ बढ़ने वाली एक बीमारी है वही महिलाओं की तुलना में पुरुषों में यह बीमारी ज्यादा देखने को मिलती है जिस तरह डायबिटीज के पेशेंट महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादा होते हैं।
सवाल : किडनी ट्रांस्प्लांट को आप कैसे देखते हैं
जवाब : नेफ्रोलॉजी में अगर बात की जाए तो किडनी ट्रांसप्लांट सबसे ज्यादा चैलेंजिंग फील्ड है पर सबसे ज्यादा काम करने में इसी में मजा आता है। कई बार किडनी में समस्या होने से इंसान काफी दुखी होता है लेकिन जब किडनी ट्रांसप्लांट हो जाता है तो उस व्यक्ति को और डॉक्टर को ऐसा लगता है कि नया जीवन मिला है। मैंने अपनी लाइफ में अपनी पढ़ाई के दौरान और प्रैक्टिस के दौरान कई ट्रांसप्लांट में डील की है।
सवाल : किडनी की समस्या कितने प्रकार की होती है, क्या दुसरी बीमारियों की वजह से यह बढ़ती है।
जवाब : युवाओं में तो किडनी से संबंधित समस्या जो पहले थी वही देखने को मिलती है लेकिन कुछ पेशेंट में किडनी के अलग अलग रोगों के प्रकार सामने आते हैं। जिसमें नेफ्रोटिक सिंड्रोम युवाओं में देखने को मिल रहे हैं। हमारी बदलती जीवनशैली की वजह से हमारे शरीर में कई बीमारियों ने जगह बना ली है जिसमें मोटापा, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और अन्य बीमारियां शामिल है। किडनी की बीमारी के भी कई प्रकार होते हैं जिसमें डायबिटीज, ब्लड प्रेशर इन बीमारियों का कारण बनते हैं। किडनी की बीमारी में दो प्रकार होते हैं जिसमें टाइप वन में लंबे समय बाद उसका नुकसान देखने को मिलता है। वही टाइप टू का ज्यादा प्रभाव युवाओं में देखने को मिलता है। किडनी से संबंधित कुछ बीमारियां होती है जो जेनेटिक कारण से भी होती है लेकिन यह इतनी कॉमन नहीं होती है।
सवाल : क्या पेन किलर खाने से किडनी की समस्या बढ़ती है, इससे किस प्रकार बचा जाए
जवाब : आमतौर पर हम देखते है कि कई बार दर्द की दवाई के हाइडोज लेने से भी किडनी पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है इसी के साथ कई लोग किडनी से संबंधित समस्या होने पर झोलाछाप डॉक्टर से इलाज कराते हैं उनके द्वारा दी गई हाईपावर दवाई किडनी पर गलत प्रभाव डालती है। वही हमारे भोजन में ज्यादा नमक भी किडनी पर गलत प्रभाव डालता है अगर इसे आसान भाषा में समझे तो वह सारी चीजें जो शरीर के लिए नुकसानदायक है वह किडनी के लिए भी नुकसानदायक है। किडनी की समस्या से जूझ रहे व्यक्ति द्वारा अपने आहार पर कंट्रोल और बीपी पर ध्यान देने से इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
सवाल : किडनी की बीमारी में डायलिसिस एक कॉमन प्रक्रिया है, यह कैसे कार्य करता है, इसको लेकर लोगों में किस तरह की जागरूकता है
जवाब : आमतौर पर हम देखते है कि डायलिसिस को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं होने के कारण इसने एक डर का रूप ले लिया है। किडनी के पेशेंट हमेशा डायलिसिस को लेकर चिंतित रहते हैं लोग हमेशा डायलिसिस करवाने से बचते रहते हैं। इससे लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। यह एक सिंपल प्रक्रिया है जिसमें मरीज के शरीर में दो सुई लगाई जाती है जिसके माध्यम से एक से ब्लड मशीन में फिल्टर होने के लिए आता है वहीं दूसरी सुई के माध्यम से फिल्टर होकर शरीर में जाता है। इस प्रक्रिया में मशीन धीरे-धीरे खून को साफ करती है और 3 से 4 घंटे में यह प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान मरीज आराम से लेट कर इसे पूर्ण कर सकता है। वही लोगों को इस को लेकर गलतफहमी है कि एक बार डायलिसिस पर आने के बाद मनुष्य ज्यादा समय तक नहीं जीता है। लेकिन यह मेरा निजी अनुभव है कि कई लोग 20 सालों से डायलिसिस पर जीवित हैं वह नियमित समय पर अपना डायलिसिस करवाते हैं और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। यह तभी किया जाता है जब किडनी ठीक से काम नहीं कर रही होती है। वही डायलिसिस की प्रक्रिया मरीज की कंडीशन पर भी निर्भर करती है कई बार किडनी के मरीजों को एक से दो बार डायलिसिस के बाद इसकी जरूरत नहीं पड़ती है वहीं कई मरीजों को इसकी जरूरत समय-समय पर लगती रहती है।
सवाल : क्या किडनी से संबंधित समस्या से निपटने के लिए टेक्नोलॉजी में बदलाव हुए हैं
जवाब : पहले के मुकाबले मेडिसिन और नेफ्रोलॉजी की अगर बात की जाए तो इसकी टेक्नोलॉजी में काफी ज्यादा बदलाव आए हैं। पहले के दौर में किडनी से संबंधित बीमारियां तो होती थी लेकिन सुविधाओं की कमी की वजह से यह बीमारियां आसानी से पकड़ में नहीं आया करती थी। आजकल एडवांस टेक्नोलॉजी के चलते किसी भी बीमारी को सही समय पर जांच कर पता लगाना और उसका इलाज करना बहुत आसान हो गया है। वहीं आसपास के क्षेत्रों में भी अब इसकी सुविधाओं में काफी बदलाव आए हैं जो कि एक अच्छी खबर है। एडवांस टेक्नोलॉजी और बेहतर मेडिसिन की वजह से पहले के मुकाबले किडनी के रोगी ज्यादा लंबे समय तक जीवित रहते हैं।
सवाल : अपने मेडिकल क्षेत्र में अपनी पढ़ाई देश के किन संस्थानों से पूरी की इसके साथ आपने कौन से हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दी है।
जवाब : मैंने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई शहर के प्रतिष्ठित एमजीएम कॉलेज से पूरी की इसके बाद एमडी की पढ़ाई ग्वालियर के गजरा राजा मेडिकल कॉलेज से पूरी की। इसी के साथ मैने बीएचयू वाराणसी से डीएम की पढ़ाई पूरी की हे। वहीं किडनी ट्रांसप्लांट से संबंधित और नेफ्रोलॉजी में अन्य विधाओं में ट्रेनिंग प्रोग्राम में हिस्सा लिया है। मेडिकल क्षेत्र में शिक्षा पूरी होने के बाद मैंने एमजीएम मेडिकल कॉलेज मैं एसोसिएट प्रोफेसर और सीएचएल में अपनी सेवाएं देना प्रारंभ किया। मैंने किडनी से संबंधित समस्या से लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए किडनी रोगी क्या करें क्या ना करें नामक पुस्तक भी लिखी है।