ब्रजेश राजपूत
हम एक लाख केस प्रतिदिन की ओर बढ रहे हैं, टेबल पर रखे एक अखबार की ये हैडलाइन सच में अंदर तक डरा गयी। जिस कोरोना वाइरस को हम थाली, ताली और दिया जलाकर दूर भगाने की कोशिश में लगे थे वो इतना घातक होगा कल्पना नहीं की थी। कल्पना तो दुनिया के उन वैज्ञानिकों ने भी नहीं की थी जो इस कोरोना के वैक्सीन की खोज में जुटे हुये है। अलग अलग देशों में इस बीमारी से निपटने के लिये तकरीबन सौ जगहों पर कोरोना के वैक्सीन बनाने के काम में साइंटिस्ट जुटे हुये हैं। इनमें से करीब तीस के आसपास जगहों पर ये प्रयास बहुत आगे बढ गये हैं। सबसे गंभीर प्रयास जिस पर दुनिया की नजर है वो हो रहा है आक्सफोर्ड यूनिवरसिटी लेब में जहाँ ट्रायल के तीसरे दौर में ये वैक्सीन पहुंच गयी है। और यही वैक्सीन हमारे देश में आयेगी। संभावना जताई जा रही है कि अगले साल मार्च तक ये वैक्सीन सीरम इंस्टीटयूट की मदद से देश में आयेगी।
कोरोना को ये वाइरस जिस तेजी से अपना रंग, ढंग और व्यवहार बदल रहा है उससे लग रहा है कि इससे लडना आसान नहीं है। भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो सरमन सिंह भी वैक्सीन के खोज के प्रयासों से जुडे हैं। उनके निर्देशन में भी शोध हो रहे हैं। उन्होंने बताया उनके सामने से गुजरे हजार सेंपल में से करीब सौ सेंपल में ये वाइरस अलग अलग रूप में मिला। तकनीकी तौर पर कहें तो ये वाइरस म्यूटेट कर रह है। यानिकी ये रूपांतरित हो रहा है। ऐसे में अब ये चुनौती है कि लंबे शोध के बाद आयी वैक्सीन के बाद ये वाइरस फिर रूपांतरित हो गया या इसने अपने को बदल कर नये रूप में ढाल लिया तो वैक्सीन उतनी कारगर नहीं रहेगी। वैज्ञानिक ये पता लगाने में जुटे हैं कि ये वाइरस ऐसा क्यों कर रहा है, इसका मकसद क्या है आमतौर पर ऐसा वाइरस तभी करते हैं जब उनको अपनी संक्रमण की तीव्रता बढानी होती है या फिर वैक्सीन से बचना होता है।
साफ है कि दुनिया में ढाई करोड लोगों को संक्रमित कर पौने नौ लाख लोगों को मौत के घाट उतार देने वाला वाइरस की तीव्रता अभी कम नहीं हुयी है। वो लगातार अपनी मारक क्षमता बढाये हुये है। हमारे देश मे ही संक्रमितों की संख्या इकतालीस लाख को पार कर गयी है। पिछले चौबीस घंटे में कोरोना के तक़रीबन नब्बे हजार मरीज सामने आये। जिस तेजी से ये वाइरस फैल रहा है उससे लग रहा है कि दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले हमारे देश में ये वाइरस रोज एक लाख लोगों को अपनी चपेट में लेने की गति से बढ रहा है। वैसे भी इस आँकड़े के बाद संक्रमितों की संख्या के लिहाज़ से भारत दूसरे नंबर पर आ गया है।
देश के कुछ हिस्सों में सीरो टेस्ट या स्टडी करायी गयी है उसके आंकडे भी भयभीत कर रहे हैं। इस वाइरस का संक्रमण स्तर हमारे अनुमान से तीस से चालीस फीसदी तक अधिक है। इस सीरो टेस्ट में कोरोना वाइरस की एंटीबाडी की मौजूदगी देखी जाती है। यदि रक्त में एंटीबाडी मौजूद है तो वो व्यक्ति कोविड से संक्रमित हो चुका है। मगर ये एंटी बाडी बहुत कम लोगों में पायी गयी। हैरानी की बात ये रही कि वो लोग जो घोषित तौर पर कोरोना के मरीज थे उनके शरीर में भी एंटीबाडी बने नहीं। प्रो सरमन सिहं कहते हैं कि एंटी बाडी बनने का प्रतिशत भी तीस से चालीस फीसदी ही है। ये हैरानी वाला मामला है आमतौर पर यही माना जा रहा था कि जिनको कोरोना हो गया अब उनके शरीर में एंटी बाडी बन गयी होगी और उनको दोबारा कोरोना नही होगा मगर बहुतों को कोरोना फिर हो रहा है।
साथ ही हर्ड इम्यूनिटी के भरोसे पर भी ये बीमारी खरी नहीं उतर रही। कोरोना बीमारी का कम्यूनिटी स्प्रेड या संक्रमण सामुदायिक तौर पर हो चुका है ये बात जानकार दबे छिपे शब्दों में कह रहे है। मगर उसके बाद भी बीमारी को लेकर पनपने वाली एंटी बाडी दूसरे ाशरीर में बनने की रफतार बहुत धीमी है। ऐसे में सरकारों की चुनौती बढ़ जाती है कि जब तक वैक्सीन या कोई पक्का इलाज इस बीमारी का नहीं आ जाता तब तक रोज ब रोज तेजी से बढ रहे कोरोना मरीजों को कैसे संभाले। हमारे देश में ही केरल और दिल्ली ने बताया है कि तेजी से बढ रहे मरीजों को कैसे अस्पताल में आने से पहले ही संभाला जाये। उन राज्यों के माडल से ही सीखा जा सकता है। मगर मध्य प्रदेश की सरकार कोरोना के बढते मरीजों से निपटने के लिये कोरोना टेस्ट की संख्या घटा और बढा कर ही नियंत्रित कर रहीं हैं। अस्पतालों में बढते मरीज और घटते बेड बडी समस्या के तौर पर सामने आ रहे हैं। उस पर लगातार हो रहे अनलाक, खुलते बाजार, धार्मिक आयोजन और उससे भी बढकर राजनीतिक सभाएं, रैलियों पर रोक लगाने में प्रशासन नाकाम साबित हो रहा है। आने वाले महीनों में बिहार विधानसभा चुनाव और 65 उपचुनाव होने हैं जिनमें वहीं रैलियां और भीड भाड होनी है। हाल के शोध से ये बात साबित हो गयी है कि जहाँ भीड है वहाँ कोरोना है इसलिये इस भीड भाड को नहीं रोका गया तो कोरोना कई गुना तेजी से फैलने के लिये अपने को म्यूटेट कर रहा है या अपना आकार प्रकार और बर्ताव बदल रहा है ये हम पहले ही बता चुके हैं।
जानकार डा सरमन सिहं की मानें तो जब तक दवा और वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक मास्क, हाथों को सेनेताईज और दो गज की दूरी है बचाव है वरना कोरोना अगले दो सालों तक तो जाने वाला तो नहीं है।