कौशल किशोर चतुर्वेदी
शक्ति के महापर्व नवरात्रि की नवमी 14 अक्टूबर को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान प्रदेश की 40 लाख लाड़ली लक्ष्मियों से संवाद करेंगे। प्रदेश में लाड़ली लक्ष्मियों की यह संख्या सामान्य जन को आश्चर्यचकित कर सकती है। इसे साधारण उपलब्धि कतई नहीं माना जा सकता। भले ही भाजपा उपचुनावों के दौर में शिवराज से लाड़ली लक्ष्मी संवाद कराकर चुनावी क्षेत्रों में स्थित लाड़ली लक्ष्मियों के परिवार से भी सीधे मुखातिब होने में सफल होने का लक्ष्य भी साध ले। लेकिन एक साधारण परिवार में जन्मे, पले-बढ़े शिवराज की मुख्यमंत्री के रूप में यह असाधारण उपलब्धि है। इस सच्चाई से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता। एक मुख्यमंत्री के रूप में भी उन्हें यह उपलब्धि हासिल करने में तेरह साल लग गए। 1 अप्रैल 2007 में शिवराज द्वारा शुरू की गई इस योजना के सफर को वैसे तो साढे़ चौदह साल हो रहे हैं लेकिन तेरह साल से ज्यादा समय मुख्यमंत्री शिवराज ही रहे हैं। ऐसे शक्ति पर्व में “शिव की शक्ति पूजा” निश्चित तौर से यह संदेश दे रही है कि लाड़ली को सक्षम बनाने की शिव की इस सोच ने मध्यप्रदेश में कन्या शक्ति को सबला बनाने का अनुपम उदाहरण पेश किया है। एक कन्या से चालीस लाख तक पहुंचते हुए सामाजिक सशक्तिकरण की यह मुहिम कहीं न कहीं शिव को भी विश्वास की शक्ति से भरती है, तो चालीस लाख लाड़लियों में आसमान छूने का जज्बा भी जगाती है।
मध्य प्रदेश लाड़ली लक्ष्मी योजना का शुभारम्भ राज्य सरकार द्वारा 1 अप्रैल 2007 को लड़कियों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए किया गया है । इस योजना के तहत लड़कियों की शैक्षिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करने पर जोर दिया जा रहा है। कहा जाता है कि मां साक्षर हो तो न केवल उसका बच्चा बल्कि पूरा समाज साक्षर होता है। ऐसे में चालीस लाख साक्षर लाड़लियां एक पूरी की पूरी पीढ़ी को साक्षर कर मध्यप्रदेश को समृद्ध बनाने में मील का पत्थर साबित होगीं और देश की समृद्धि का भी आधार बनेंगीं, यह तय है।
बालिका जन्म के प्रति जनता में सकारात्मक सोच, लिंग अनुपात में सुधार, बालिकाओं की शैक्षणिक स्तर तथा स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार तथा उनके अच्छे भविष्य की आधारशिला रखने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश में लाड़ली लक्ष्मी योजना लागू की गई थी, जो निश्चित तौर से अपने उद्देश्य को पूरा कर रही है। लाड़ली लक्ष्मी और उनके परिवार “धन्यवाद शिवराज” कहने का दिखावा भले न करें, लेकिन शिव ने मामा के रूप में उनके दिलों में अपना अक्षुण्य स्थान तो बनाया ही है।
“राम की शक्ति पूजा” शीर्षक से सभी परिचित हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” लिखित यह कविता हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। इसमें खासकर राम और रावण के भीषण युद्ध का वर्णन है। अन्याय के खिलाफ लड़ाई में एक साधारण मानव के रूप में राम थकते भी हैं, टूटते भी हैं और शक्ति की उपासना में लीन होते हैं। देवी प्रकट होती हैं और राम को विजय का आशीर्वाद देती हैं। “शिव की शक्ति पूजा” में भी चालीस लाख लाड़ली लक्ष्मी शक्तियां 14 अक्टूबर को दोनों हाथों से शिव को आशीर्वाद देती नजर आएंगी। यह आशीर्वाद शिव की लंबी तपस्या का ही प्रतिफल माना जा सकता है। जिसमें वह थके भी होंगे, टूटे भी होंगे लेकिन हार नहीं मानीं। राजनैतिक आलोचनाओं का लंबा दौर अपनी जगह है, पर सामाजिक तौर पर ऐसी उपलब्धियों को कभी भी नकारा नहीं जा सकता।