नितिनमोहन शर्मा
इंदौर जैसे बड़े शहर और भाजपाई गढ़ में भाजपा का ढीला ढीला-बिखरा बिखरा ओर लावारिस नगर निगम चुनाव प्रबन्धन आरएसएस की नजर से छुप नही पाया। नतीजतन अब सभी नगर एवं जिला अध्यक्ष आरएसएस की निगरानी में लिए जाएंगे। यानी अब नगर इकाई में बेठकर चल रही मनमानी पर लगाम कसी जाएगी। दीनदयाल भवन के दुरुपयोग का सबसे ज्यादा आरोप इंदौर को लेकर ही सामने आए है। संघ की बारीक नजर ने महसूस कर लिया कि दीनदयाल भवन में चल क्या रहा है। संघ ने ये भी महसूस किया कि नए नगर अध्यक्षों के बस का नही की वे पार्टी भी सम्भाल ले और चुनाव जैसा बड़ा मूवमेंट भी पूरा कर ले।
निगम चुनाव में संगठन स्तर पर हुई पार्टी की फ़जीहत ने आरएसएस को ये कदम उठाने को मजबूर कर दिया है। अन्यथा आरएसएस भाजपा में स्थापित संभागीय सन्गठन मंत्री की जरूरत को खारिज कर चुका है। संघ से भेजे गए सभी ऐसे सन्गठन मंत्री दायित्व मुक्त कर दिये गए। लेकिन सरकार ने उन्हें लाभ के पद पर काबिज कर दिया। जयपाल सिंह चावड़ा का इन्दोर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाना इसी कड़ी का हिस्सा है। संभागीय संगठन मंत्रियों पर लगे भ्र्ष्टाचार के आरोपो के बाद इस बार आरएसएस चौकन्ना है। संघ अब संगठन मंत्री तो अपनी राजनीतिक शाखा भाजपा को देगा लेकिन उन्हें संघ से पूरी तरह मुक्त कर भाजपा को नही दिया जाएगा।
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नए संगठन मंत्री की डोरी संघ के खूंटे से बंधी रहेगी और वे भाजपा की नगर इकाइयों के संदर्भ में आरएसएस को समय समय पर रिपोर्ट करेंगे। इस बार संभाग स्तर पर संगठन मंत्री नही तैनात होंगे। इस बार केवल दो संगठन मंत्री दिए जाएंगे। ये दोनों प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा के बतौर सहयोगी काम करेंगे। इन्हें सह सन्गठन मंत्री पदनाम दिया जायेगा।
सन्गठन स्तर पर तीन संघियो की तैनाती का खाका भी खींच लिया गया है।
इसके लिए प्रदेश को एक तरह से आरएसएस की संगठन रचना के हिसाब से विकेन्द्रीकृत किया गया है। मध्यभारत प्रान्त, महाकौशल ओर मालवा प्रान्त। इसमे प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा का मुख्यालय भोपाल ही रहेगा। मध्यभारत प्रान्त यानी भोपाल से ग्वालियर तक के हिस्से में शर्मा सीधी नजर रखेंगे। महाकौशल प्रान्त का सह सगठन मंत्री का मुख्यालय जबलपुर रहेगा। मालवा निमाड़ अंचल के लिए मालवा प्रान्त का मुख्यालय इंदौर रहेगा। एक मुख्य संगठन महामंत्री ओर दो सह संगठन मंत्री की व्यवस्था फिर से कायम होगी।
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भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन के आगाज के साथ नगर व जिला इकाइयों में युवाओ को कमान दी गई थी। लेकिन नगरीय निकाय चुनाव में अधिकांश जिला नगर इकाइयों में चुनाव प्रबंधन या तो पूरी तरह बिखरा था या फेल हो गया था। इसमें इंदौर जैसा शहर भी है जो भाजपाई गढ़ होने के साथ बीते 3 दशक से कुशल चुनावी प्रबंधन के मामले में पूरे प्रदेश में मिसाल बनता आया है। लेकिन इस बार यहां का चुनाव मिस मैनेजमेंट का शिकार हुआ। चुनाव का प्रबंधन कागज से उतरकर मैदान में नही आ पाया। सबसे बड़ी नाकामी तो बूथ मैनेजमेंट की रही जिसके दम पर भाजपा ने प्रदेश की सभी 16 नगर निगमो में क्लीन स्वीप की तैयारियां की थी।
इंदौर में मतदान वाले दिन पूरी पार्टी लावारिस हो गई थी। कोई ऐसी केंद्रीकृत व्यवस्था थी ही नही जहा से बैठकर शहर के सभी 85 वार्ड को संभाला जेआ सके। पार्टी चुनाव तो जीत गई और श्रेय लेने की भी होड़ मच गई लेकिन चुनाव प्रबंधन में नगर इकाई की गड़बड़ियां ओर नाकामियां आरएसएस से छुप नही पाई। लिहाजा संघ ने नगर जिला इकाइयों पर फिर से नकेल कसने की तैयारी कर ली है।
चलते चुनाव में आरएसएस की मालवा प्रान्त की एक बड़ी बैठक सोनकच्छ में भी हुई थी। मतदान के एक दिन पहले 5 जुलाई तक ये बैठक चली। बैठक में भी इंदौर सहित अन्य शहरों में नगर संगठन की कमियां उज़ागर होती रही। इंदौर में हुई बगावत ओर बागियों को मनाने के वक्त भी भाजपा में सन्गठन मंत्रियों की कमी को महसूस किया गया। हालात इस कदर खराब थे कि संगठन के प्रदेश मुखिया हितानंद शर्मा को रतलाम में रूठो को मनाने स्वयम घर घर दस्तक देना पड़ी।
भगत के “भक्तों” से बड़ी पार्टी में परेशानी
भाजपा के पूर्व संगठन मुखिया रहे सुहास भगत पार्टी के लिए परेशानी बड़ा गए। वे जाते जाते ऐसी कई नियुक्तियां कर गए जो पार्टी के लिए भारी पड़ रही है। भगत की इस हरकत का पार्टी के अंदर तमाम बड़े नेताओं को भी गुस्से में भर रखा है। भगत ने अपने ” भक्तों” को पार्टी लाइन से हटकर उपकृत किया। तमाम योग्यता को नकारते हुए उन्होंने ऐसी नियुक्तियां की जिसे स्थानीय भाजपा के नेता आज तक पचा ही नही पाये।
इंदौर विकास प्राधिकरण में देवास से लाकर नियुक्ति करना ओर नगर इकाई में प्रतिद्वंद्वी दल की पृष्ठभूमि के व्यक्ति की ताजपोशी इसका ही हिस्सा था। जबकि उस वक्त एक से बढ़कर एक नाम पार्टी के पास थे। कोई कल्पना भी नही कर सकता था भगत इंदौर के साथ ऐसा खिलवाड़ करेंगे। चूंकि मामला संगठन मुखिया से जुड़ा था। लिहाजा पार्टी के सब बड़े नेता “खून का घूंट” पीकर रह गए। अब भगत विदा हो चुके है। अब नेता भी मुखर हो गए है। इंदौर चुनाव में संगठन स्तर पर हुई गड़बड़ियां ओर कमिया भी बड़े नेताओं के जरिये शीर्ष स्तर तक पहुंची है। पुराने नेताओ को हाशिये पर रखना भी इसमे शामिल है।