शंकर न्यास के दो दिवसीय एकात्म पर्व का शुभारंभ, स्वामी सर्वप्रियानन्द जी ने किया उद्घाटन

Shivani Rathore
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जो सर्वव्यापी है, नित्य है, अद्वितीय है वह अनंत है और अनंत ही एकात्म ब्रह्म है – स्वामी सर्वप्रियानन्द जी

इंदौर 26 फरवरी 2024। समाज को आत्मबोध व तत्वबोध से एकात्म बोध के मार्ग पर अग्रसर करने हेतु मध्यप्रदेश के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा विभिन्न गतिविधियों का आयोजन निरंतर जारी है। इसी क्रम में सोमवार को शंकर न्यास द्वारा भोपाल में दो दिवसीय एकात्म पर्व का शुभारंभ किया गया। आध्यात्मिक विमर्श पर केन्द्रित इस आयोजन में न्यूयार्क वेदांत सोसाइटी के रेसीडेंट मिनिस्टर, प्रखर वेदांत वक्ता स्वामी सर्वप्रियानन्द जी ने दीप प्रज्ज्वलन कर पर्व का विधिवत शुभारंभ किया। तत्पश्चात उन्होंने ‘एकात्म’ पर वेदों की मान्यता व वेदांत में अद्वैत की व्याख्या प्रस्तुत करते हुए संबोधित किया। स्वामी सर्वप्रियानन्द जी की वेदांतिक लोकप्रियता आयोजन का केन्द्र रही जिसके चलते शंकर न्यास के इस कार्यक्रम में भोपाल के प्रबुद्धजन सहित बड़ी संख्या में युवाओं ने सहभागिता कर वेदांत की ‘एकात्म दृष्टि’ को सुना। आयोजन में कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की अत्यंत लोकप्रिय गायिका सूर्यगायत्री की आद्यशंकराचार्य विरचित स्तोत्रों की संगीतमय प्रस्तुति ने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। इस दौरान भोपाल सहित प्रदेश भर के शंकर-दूतों ने भी स्वामी सर्वप्रियानन्द के समक्ष स्तोत्र गायन किया। यह कार्यक्रम भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार (मिंटो हॉल) में आयोजित किया गया जिसमें संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला भी उपस्थित रहे।

सभागार में एकात्म पर संबोधित करते हुए स्वामी सर्वप्रियानन्द ने कहा कि – मध्यप्रदेश में अद्वैत वेदांत के लिए किए जा रहे प्रयास अभिनंदनीय हैं। इन्हीं प्रयासों की सार्थकता के रूप में शंकर दूतों का एकलय स्तोत्र गायन देखकर अभिभूत हूँ। आज अद्वैत भाव विश्व को आकर्षित कर रहा है। आचार्य शंकर ने विश्व शांति के लिए अद्वैत सिद्धांत को आधार कहा है। क्योंकि वह जानते थे कि विश्व में मानवता की जीवटता एकात्म से ही संभव है। उन्होंने आगे कहा कि हिन्दू धर्म में इतनी विविधता है कि यूएस के सभी चर्च, यहूदियों और अन्य मतों को मिला दिया जाए तो तब भी उतनी विविधता नहीं होगी जो हिन्दू धर्म में है। लेकिन फिर भी ये एक हैं। जिस भाव से एक हैं वह भाव है ‘एकात्म’ भाव।

उन्होंने कहा कि – आध्यात्म के अलग-अलग मार्ग हैं, भक्ति का मार्ग, अनुभव का मार्ग और ज्ञान का मार्ग। भक्ति का मार्ग ईश्वरवादी मार्ग है। जो विश्वास पर आधारित है, जो कहता है कि ग्रंथों ने, गुरुजनों ने, परिजनों ने बताया है इसलिए विश्वास करो। दूसरा मार्ग अनुभव का मार्ग है जो कहता है कि ‘religion is realization’ जो कहता है पहले जानो, फिर मानो। इसी मार्ग पर चलकर बालक नरेन्द्र विश्व के लिए स्वामी विवेकानंद जैसा महापुरुष बना। और तीसरा मार्ग है ज्ञान का मार्ग। जो कोई नया मार्ग नहीं है सनातन का चिर पुरातन मार्ग है जिसे आचार्य शंकर ने सुस्पष्ट किया। यह केवल विश्वास और अनुभव पर निर्भर न होकर सब्जेक्ट और ऑब्जेक्ट का अंतर स्पष्ट करता है। यही मार्ग अद्वैत वेदांत का मार्ग है। यह तर्क और संदर्भ से परिपूर्ण मार्ग है। इसी मार्ग का अनुपालन आचार्य शंकर ने किया और विश्व मानवता की रक्षा के लिए इसी मार्ग को प्रचारित करने का आग्रह किया। यह मान्यता पर नहीं चलता, मानने के लिए तर्क प्रस्तुत करता है। इसकी तर्कशीलता के कारण ही आज दुनिया के अनेकों वैज्ञानिक और दार्शनिक भी अद्वैत सिद्धांत को मान रहे हैं। आज दुनिया में “कॉन्सियस स्टडी” पर पुस्तकें लिखी जा रही हैं और उन पुस्तकों का प्रारंभ ही भारतीय दर्शन से करते हैं। प्रो. थॉम्सन ने अपनी “कॉन्सियसनेस” को लेकर लिखी पुस्तक में उपनिषदों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि कॉन्सियसनेस कोई नया विषय नहीं है, यह तो 5000 वर्षों से अधिक पुराना है। उन्होंने आगे कहा कि आज विश्व राजसी सुख की ओर बढ़ रहा है लेकिन ये भौतिक है, क्षणिक है। हमें सात्विक सुख की ओर चलना होगा, वह अनंत है। स्वामी सर्वप्रियानन्द ने वेदों का उल्लेख करते हुए कहा कि वेदों में तीन तरह के अंत हैं कालमय अंत, देशमय अंत, वस्तुमय अंत इन अंत से जो परे है वही नित्य है, सर्वव्यापी है, अद्वितीय है तथा यही सर्वव्यापी, अद्वितीय और नित्य जो है वही अनंत है। और जो अनंत है वही तो ब्रह्म है। उन्होंने कहा कि मैं बहुत प्रसन्न हूँ मध्यप्रदेश शंकर न्यास के इस आयोजन में आकर जहां अद्वैत को मानने और जानने के लिए इतने उत्सुक लोग हैं कि उनके बैठने के लिए बड़ा सभागार छोटा पड़ गया।

शंकर की गुरुभूमि को एकात्म का वैश्विक केन्द्र बना रहे हैं – श्री शिवशेखर शुक्ला

मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव श्री शिवशेखर शुक्ला ने स्वामी सर्वप्रियानन्द जी का अभिनंदन करते हुए कहा कि – यह अत्यंत सौभाग्य पूर्ण अवसर है, हम बहुत समय से स्वामी सर्वप्रियानन्द जी का सानिध्य प्राप्त करने हेतु प्रयास कर रहे थे, लेकिन आज यह अवसर उपस्थित हुआ है, जिसका हम पूरा लाभ लेंगे। श्री शुक्ला ने ओंकारेश्वर में बन रहे एकात्म धाम की संकल्पना की व्याख्या करते हुए कहा कि – आगामी पीढ़ी को अद्वैत की आलौकिक धारा से जोड़ने के लिए ओंकारेश्वर में अद्वैत महालोक का निर्माण किया जा रहा है। जिस भूमि पर आचार्य शंकर ने गुरु का सानिध्य पाया उसे एकात्म के वैश्विक केन्द्र के रूप में विकसित कर रहे हैं।

सूर्यगायत्री के स्तोत्र गायन से उत्सव-उमंग में डूबा सभागार

स्वामी सर्वप्रियानन्द जी के संबोधन के बाद कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की लोकप्रिय गायिका सूर्यगायत्री ने भगवान आद्यशंकराचार्य द्वारा रचित स्तोत्रों की संगीतमय प्रस्तुति दी। सुश्री सूर्यगायत्री ने शंकर विरचित गणेश पंचरत्नम् से प्रस्तुति का आरंभ कर भजगोविंदम्, नर्मदाष्टकम्, महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत, राघवाष्टकम्, गोविंदाष्टकम्, गंगा स्तोत्रम्, निर्वाणषट्कम् आदि स्तोत्रों को संगीतमय रूप में प्रस्तुत किया। शास्त्रीय संगीत की यह प्रस्तुति इतनी अद्भुत रही कि संपूर्ण सभागार आध्यात्म के सागर में कई बार करतल के गोते लगाता रहा। विश्वभर के शास्त्रीय तथा भक्ति संगीत प्रेमियों को अपनी कला से मुग्ध करने वाली सुश्री सूर्यगायत्री शास्त्रीय कर्नाटक संगीत की अत्यंत लोकप्रिय गायिका हैं। उन्हें संगीत के क्षेत्र में अनेक सम्मान प्राप्त हुए जिनमें रागस्वर (लंदन, यूके) द्वारा दिया जाने वाला ‘रागस्वर रंजिनी’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया सहित राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर लगभग 500 से अधिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा चुके हैं।

51 शंकर दूतों ने गाया तोटकाष्टकम् स्तोत्र, एकात्म पर लघु फिल्म दिखाई गई

ज्ञात हो कि आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास न्यास द्वारा युवाओं में शंकर-विचार प्रेरणा के लिए 7 दिवसीय आश्रम चर्या शिविर का आयोजन किया जाता है। इन शिविरों में सहभागिता करने वाले युवा 7 दिन आश्रम में रहकर आश्रम परंपरा का पालन करते हैं। ये युवा आश्रम में वेदांत के सार के रूप में आत्मबोध और तत्वबोध का अध्ययन करते हैं जिसके पूर्ण होने पर दीक्षांत समारोह के माध्यम से उन्हें शंकर दूत की उपाधि दी जाती है। आयोजन के दौरान ऐसे ही 51 शंकर दूतों ने आचार्य शंकर विरचित तोटकाष्टकम् स्तोत्र का पाठ किया। इसके साथ ही सभागार में एकात्म पर आधारित लघु फिल्म का चित्रण किया गया। इस फिल्म में विश्व भर के शंकर अनुयायियों के अनुभव कथनों को संग्रहित कर प्रदर्शित किया गया।

एकात्म धाम की संकल्पना पर सजी प्रदर्शनी

एकात्म पर्व के दौरान कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में ‘एकात्मधाम’ प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया है। इस प्रदर्शनी में ओंकारेश्वर में बन रहे आचार्य शंकर के भव्य और आलौकिक ‘एकात्म धाम’ की संकल्पना को दर्शाया गया है। एकात्म पर्व के पूर्व पूज्य स्वामी सर्वप्रियानन्द एवं संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला ने प्रदर्शनी का शुभारंभ कर उसका अवलोकन किया। यह प्रदर्शनी अद्वैत महालोक प्रकल्प के विभिन्न चरण और संकल्प के उद्देश्यों पर आधारित है।

एकात्म पर्व में दूसरे दिन के कार्यक्रम

द्वि-दिवसीय एकात्म पर्व के दूसरे दिन स्वामी सर्वप्रियानन्द जी का पुन: एकात्म पर प्रबोधन होगा। तत्पश्चात वेदांत विमर्श में रुचि रखने वाले लोगों की शंका समाधान के लिए प्रश्नोत्तर सत्र भी होगा। आयोजन में आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाह के लिए कर्नाटक शास्त्रीय संगीत में लोकप्रिय बाल संगीतकार राहुल आर वेल्लाल द्वारा आचार्य शंकर द्वारा रचित स्तोत्रों की संगीतमय प्रस्तुति दी जाएगी।

प्रतिमाह शंकर व्याख्यानमाला का होता है आयोजन

मध्यप्रदेश के आचार्य शंकर न्यास द्वारा प्रतिमाह आखिरी रविवार को शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है। इस व्याख्यानमाला में शंकर परंपरा के विभिन्न सन्यासी एकात्म के विविध स्वरूपों को लेकर सनातन की दृष्टि पर प्रकाश डालते हैं। न्यास का यह मासिक आयोजन ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों माध्यमों से आयोजित किया जाता है,जिसमें युवाओं के साथ वेदांत में रूचि रखने वाले सभी वर्ग के लोग सम्मिलित होते हैं।