नाम को काम में बदलने की ‘प्रतिभा’

Suruchi
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कीर्ति राणा

कलेक्टर बनकर रीवा जा रहीं प्रतिभा पाल के संबंध में शहर के लिए यह जानना भी जरूरी है कि वे इंदौर नगर पालिक निगम की पहली महिला निगमायुक्त रही हैं। काम को अपने नाम का पर्याय बना चुकी प्रतिभा पाल का महीनों पहले से कलेक्टर बनना भी तय था।मुख्यमंत्री तो इस पक्ष में थे कि इंदौर-उज्जैन संभाग के 13 जिलों में से ही कहीं उनकी पोस्टिंग की जा सके लेकिन इन सभी जिलों में कुछ समय पहले ही कलेक्टरों की पदस्थापना हो चुकी थी, तब उनका (आईएएस के लिए अघोषित) एक ही पद पर तीन साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं हो सका था। अब जब वे कलेक्टर बनकर जा रही हैं तो कार्यकाल के अंतिम पखवाड़े में पटेल नगर वाला बावड़ी हादसा वे भी शायद ही भुला पाएं। उनका दायित्व संभालने के लिए हर्षिका सिंह मंडला से आ रही हैं, वे देश के स्वच्छतम शहर की दूसरी महिला निगमायुक्त होंगी।

उज्जैन कलेक्टर रहे मनीष सिंह के साथ वहां काम कर चुकीं प्रतिभा पाल की कोविड के दौरान निगम कमिश्नर के रूप में नियुक्ति हुईं थी, महापौर थीं विधायक मालिनी गौड़। इस तिकड़ी के सामने चुनौतियों कम नहीं थीं लेकिन सर्वाधिक अपेक्षा ब्यूरोक्रेसी और उसमें भी नगर निगम से ही थी। मनीष सिंह की ही तरह कई बार वे भी बेहद सख्त अधिकारी के रूप में नजर आईं लेकिन कई मौकों पर वे नरम दिल और संजीदा भी रही हैं। अपने 3 साल 22 दिन के कार्यकाल में उनके नेतृत्व में काम तो खूब हुए लेकिन यह बातें भी उड़ती रहीं कि नगर निगम का निजाम बदलने के बाद टकराव के हालात से बचने के लिए उन्होंने अपनी सक्रियता को स्वत: कम कर लिया था।

हर अधिकारी लिख सकता है ऐसी कहानी

एक मां, पत्नी, आईएएस के रूप में उन्होंने बताया है कि हर अधिकारी प्रेरणा की ऐसी कहानी लिख सकता है। नालों की सफाई, रोड चौड़ीकरण, जन समस्याओं का समाधान, अतिक्रमण को ध्वस्त करना हो या भविष्य के इंदौर को मेट्रो की पटरियों पर दौड़ाना हो हर जगह नगर निगम टीम अपने दायित्वों का पालन कर पाई तो कैप्टन के रूप में फील्ड की प्लानिंग उनकी ही थी। भीषण राजनीतिक उत्कंठाओं से लबरेज नेतानगरी को साधते हुए वे अपना कार्य बेहद फोकस्ड और बिना लाइमलाइट में आए करती रहीं। निगम के महिला-पुरुषकर्मियों के हित, निगम के हित और भ्रष्टाचार रहित कार्यशैली वाली इस अधिकारी को इंदौर हमेशा याद रखेगा।

यूं तो बरेली ‘झुमका गिरा रे…’ गीत के कारण पहचाना जाता है वहीं जन्मी इस प्रतिभा ने यूपी के इस शहर को भी पहचान दिलाई है। बरेली के ही कॉलेज में उनके पति विनय पाल असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। बेटा वरेण्य 2 साल 22 दिन का हो चुका है। रीवा में परसों ज्वाइन करेंगी। उनका मानना है मेजर रोड के काम कोविड के चलते प्रभावित नहीं होते तो शहर की कनेक्टिविटी बहुत पहले बढ़ जाती। बावड़ी हादसा अफसोसजनक है, इसका मलाल रहेगा लेकिन सुकून है कि बहुत कुछ अच्छा भी कर सकी तो मेरा कम, शहर के लोगों का सपोर्ट अधिक रहा। यह ऐसा शहर है जहां हर व्यक्ति शहर के विकास के लिए ना सिर्फ तत्पर रहता है बल्कि हर संभव सहयोग भी करता है।

वरेण्य के साथ जुड़ गया शहर को पांचवी बार मिला नंबर वन का खिताब

स्वच्छता सर्वेक्षण में लगातार छह बार नंबर वन रहे इंदौर के साथ कोई ना कोई याद जुड़ी है, लेकिन जब शहर को पांचवीं बार नंबर वन का खिताब मिला तो यह उपलब्धि निगमायुक्त प्रतिभा पाल ताउम्र नहीं भूल पाएंगी।दो साल से अधिक के हो चुके उनके पुत्र वरेण्य के साथ इस खिताब का गहरा ताल्लुक इसलिए भी है कि प्रतिभा पाल उस दौरान बिना छुट्टी के लगातार काम करती रहीं, प्रसव से 12 घंटे पहले तक वह अपने दफ्तर में अधिकारियों के साथ मीटिंग करती रही हैं। इंदौर सफाई के मामले में पांचवीं बार इस खिताब को जीत सका है तो उसका श्रेय उनकी कार्यनिष्ठा, इंदौर के प्रति उनके प्रेम का और कोविड के खतरों को अनदेखा कर काम को सर्वोपरि मानने का परिचायक भी है।