रंगारंग कार्यक्रमों से सजा मालवा उत्सव का मंच, शिल्प बाजार में आए अफगानिस्तान के कालीन एवं बांग्लादेश की जामदारी साड़ियां

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इंदौर। सतनाम सतनाम दिया न जलाए तेरे नाम बोल पर नृत्य करती छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से आए कलाकारों की टीम ने पंथी नृत्य प्रस्तुत किया जो कि गुरु घासीदास के जन्म दिवस पर दिसंबर माह में पूरे माह भर उत्सव मनाते समय किया जाता है। मांदर, झांज और झुमके की मधुर आवाजों पर सफेद धोती, जनेऊ, सिर पर चंदन तिलक लगाकर दी गई प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा।

लोक संस्कृति मंच के संयोजक एवं सांसद शंकर लालवानी ने बताया कि भो शंभो शिव शंभो के बोल पर सफेद रंग के परिधान में लाल दुपट्टा डाले हुए 15 लड़कियों ने रौद्र रूप में जब कत्थक प्रस्तुत किया तो दर्शकों ने तालियां बजाकर उनका स्वागत किया कलाकार थी प्रकाम्या परमार व उनके साथी। आदिवासी अंचल का भगोरिया नृत्य हाथ में धनुष बाण लेकर मस्ती में झूमते हुए मांदल की थाप पर जब दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत हुआ तो मस्ती का आलम चारों तरफ बिखर गया।

वहीं महाराष्ट्र का धनगिरी गाजा जिसमें धनगर जनजाति बकरियों की रक्षा के लिए रात्रि में जागते समय जो नृत्य करते थे वह प्रस्तुत किया। जिसमें हाथी के समान हिलडुल कर नृत्य किया गया। वहीं मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल का नौरता भी प्रस्तुत हुआ जिसमें नवरात्रि के अवसर पर मां की आराधना जब कुंवारी लड़कियों के द्वारा की जाती है जिसमें अच्छे वर की कामना की जाती है, इस नृत्य में लड़कियां सर पर मटकिया लेकर उसमें अग्नि प्रज्वलित कर नृत्य करती नजर आई।

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वहीं गुजरात के स्पोर्ट्स यूथ एंड कल्चरल डिपार्टमेंट के सहयोग से आई टीम ने सुंदर तलवार रास प्रस्तुत किया जो राजपूतानीयों की याद दिला गया वही गुजरात का प्रसिद्ध गरबा झुमकू जिसमें घर की नीव को पक्का करते हुए एवं ग्रामीण परिवेश में काम करते हुए महिलाओं एवं पुरुषों को दर्शाया गया ,दर्शकों को लुभा गया।

वही रूद्र कथक अकैडमी की संजना नामजोशी व साथियों ने अर्धनारीश्वर शिव पार्वती का वर्णन कत्थक में दर्शाया, बोल थे “अंगीकम भूवनम यस्या वाचीकम” वही जय दुर्गे भवानी पर देवी स्तुति कथक के रूप में अदिति ओसवाल ने प्रस्तुत की साथ में शांभवी तिवारी ने अपने 13 शिष्यों के साथ में फिरोजी ब्लू रंग के परिधान में नर्मदा स्तुति प्रस्तुत की बुंदेलखंड का बधाई नृत्य सबको भा गया। वही गुजरात का डांग जिले का डांगी नृत्य भी खूबसूरत बन पड़ा था इसमें पिरामिड बनाकर नृत्य करना सबको अचंभित कर गया साथ ही आशा अग्रवाल व शिष्यों द्वारा प्रस्तुत शुद्ध कत्थक अर्धनारीश्वर स्तुति शिव पंचाक्षर मंत्र पर प्रस्तुत की गई।

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लोकसंस्कृति मंच के रितेश पाटनी एवं दिलीप सारड़ा ने बताया की शिल्प मेला सायंकाल 4:00 बजे से ही प्रारंभ हो गया था। शिल्प प्रेमियों के लिए छत्तीसगढ़ का लौह शिल्प जिसमें बिना वेल्डिंग की कलाकृतियां एवं अफगानिस्तान की ज्वेलरी व बांग्लादेश की जामदार साड़ियां भी यहां उपलब्ध है। अफगानिस्तान के कालिन भी लेकर विदेशी शिल्पकार यहां आए हैं. बच्चों के मनोरंजन के लिए भी अलग-अलग प्रकार के झूले लगाए गए हैं। 27 मई के कार्यक्रम -शिल्प मेला दोपहर 4:00 बजे से प्रारंभ सांस्कृतिक कार्यक्रम 7:30 बजे से जिसमें पंथी, धनगढ़ी गाजा, प्राचीन अर्वाचीन गरबा, कोरकू, घोड़ी पैठई ,एवं स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुति होगी।