फिल्म बनने तक स्क्रिप्ट उजागर नहीं की जाती

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विनोद नागर

पिछले रविवार भोपाल की पुरानी जेल में प्रकाश झा की वेब सीरीज आश्रम-3 की शूटिंग के दौरान बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने उग्र प्रदर्शन कर अपना विरोध जताया. फिल्म शूटिंग में विघ्न डालने की यह कोई पहली घटना नहीं है. ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ के विरोध में संजय लीला भंसाली को भी पद्मावत की शूटिंग के दौरान करणी सेना के तगड़े विरोध का सामना करना पड़ा था. यहां तक कि फिल्म का नाम तक पद्मावती से पद्मावत करने पर मजबूर होना पड़ा था.
फिल्मों में सृजनात्मक स्वतंत्रता का मुद्दा प्रारंभ से ही विवादास्पद रहा है. क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर फिल्मकार कपनाशीलता की दुहाई देते हुए कथानक में मनमाफिक तब्दीली करना अपना अधिकार समझते हैं. जबकि पारंपरिक सोच स्थापित मान्यताओं और तथ्यों से खिलवाड़ की इजाजत नहीं देता. धार्मिक और ऐतिहासिक परिवेश को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करने के आरोप पीके, बजरंगी भाईजान, बाजीराव मस्तानी, ओ माय गॉड, सिंघम रिटर्न्स, धरम संकट में समेत ढेर सारी फिल्मों पर पहले भी लगते रहे हैं. गोया, विवादों से फिल्मों का पुराना रिश्ता है.

कई बार इस तरह के विवादों से फिल्मों को लाभ भी मिलता है. दर्शक फिल्म देखकर ही तय करना चाहते हैं कि विवादास्पद मुद्दों में कितनी सच्चाई है..? अक्सर वक़्त गुजरने के साथ इन विवादों की हवा भी निकल जाती है और दर्शक ठगे से रह जाते हैं. वर्षों पूर्व बनारस के घाटों पर दीपा मेहता की वाटर की शूटिंग के दौरान भी निहित स्वार्थी तत्वों ने खलल डाला था. इधर हमारे मध्यप्रदेश में ही महेश्वर के प्रसिद्ध घाटों पर दर्जनों फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है पर फिल्म रिलीज़ होने पर खुद महेश्वरवासी भी कथानक में किसी और शहर या राज्य का जिक्र किये जाने से खीझते रहे हैं.
राज्य के पर्यटन स्थलों पर फिल्म शूटिंग से पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा मिलने की डींग हाँकी जाती है. जबकि वास्तव में इन खोखले दावों की तथ्यपरक तस्दीक शायद ही कभी की जाती हो. माँडू का उसके मूल स्वरुप में जिक्र सिर्फ गुलज़ार ने किनारा में किया है. चंदेरी में सुईधागा और स्त्री जैसी फिल्मों की शूटिंग होने के बाद कितना पर्यटन बढ़ा, इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. भोपाल में खुद प्रकाश झा ने अपनी चार पांच फिल्मों की शूटिंग की है. परन्तु भोपाल को इससे क्या मिला? यह जानने के ठोस प्रयास कहाँ हुए..!

बहरहाल, भोपाल में वेब सीरीज आश्रम-3 की शूटिंग के दौरान हुए हंगामे की घटना निंदनीय है. बॉबी देओल की वैनिटी वैन पर पथराव और वाहनों में तोड़फोड़, प्रकाश झा पर स्याही फेंकने, क्रू मेम्बर्स को दौड़ा दौड़ाकर पीटे जाने की हरकतों से भला किसका भला होगा? भाजपा और बजरंग दल ने प्रकाश झा की वेब सीरीज में आश्रम व्यवस्था गलत ढंग से पेश किये जाने का आरोप लगाते हुए इस पर बैन लगाने की मांग की है. साधू संतों ने भी रोष प्रकट करते हुए सांसद साध्वी को ज्ञापन दिया है.

प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र ने इस घटनाक्रम पर सरकार के सख्त रवैये का संकेत देते हुए फिल्मों और वेब सीरीज की शूटिंग के सिलसिले में स्थायी गाइड लाइन्स जारी करने की बात कही है. उन्होंने भरोसा दिलाया है कि आगे से सरकार स्क्रिप्ट पढने के बाद ही किसी स्थान पर फिल्म या वेब सीरीज की शूटिंग की इजाजत देगी. उन्होंने प्रकाश झा सहित अन्य फिल्मकारों को लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले दृश्य न फिल्माने की नसीहत भी दी.
अब लाख टके का सवाल यही है कि क्या फिल्म या वेब सीरीज के निर्माता निर्देशक ऐसा कर पाएंगे या मध्यप्रदेश में शूटिंग करने से ही तौबा कर लेंगे? क्योंकि बॉलीवुड में फिल्म या वेब सीरीज के बनने तक उसकी स्क्रिप्ट उजागर करने का रिवाज नहीं है. स्क्रिप्ट तो दूर वहां किरदारों के लुक की सीक्रेसी तक को फिल्म का पोस्टर रिलीज़ होने तक गोपनीय रखा जाता है.

हाल ही में जब उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में ‘ओ माय गॉड-2’ की शूटिंग प्रारंभ हुई तो अक्षय कुमार का गेटअप छुपाए रखने के लिए बड़े बड़े परदे लगाकर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी. ऐसे में स्थानीय प्रशासन द्वारा स्क्रिप्ट पढने के बाद ही शूटिंग को हरी झंडी देने की अनिवार्यता आसानी से गले नहीं उतरती।