गोस्वामी तुलसीदास
आज हरतालिका तीज है। भगवान शिव व मैय्या पार्वती के आराधन का पर्व। माँ, बहनें जो किसी पत्नी भी होती हैं चौबीस घंटों तक निर्जला रहकर अपने पति के दीर्घायु की कामना के साथ पूजा करती हैं। भवानीशंकरौ वंदे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ..। यानी कि माँ भगवती साक्षात् श्रद्धा व शंकरजी विश्वास हैं। पति-पत्नी व परिवार को श्रद्धा व विश्वास की डोर बाँधे रहती है। भगवान शंकर जैसे समदर्शी और समाजवादी कोई दूसरे देव नहीं.. उन्होंने नारी सम्मान को पराकाष्ठा तक ले जाकर अपने से श्रेष्ठ शक्तिस्वरूपा, महाकाली बनाकर जग में प्रतिष्ठित किया। अपने यहाँ हर ब्रत उपवास महिलाओं के हिस्से लिख दिया गया। हरछठ, तीजा, करवाचौथ ,संतानसप्तमी,बहुलाचौथ, वट सावित्री ..और भी बहुत से त्योहार।
यदि पत्नी निर्जला रहकर पति, संतान और परिवार के क्षेम कुशल की कामना करे तो क्या पति का कुछ धर्म नहीं बनता..कि वह भी कुछ ऐसे ही जतन करे पत्नी के लिए? गुजरे जमाने में पति कामकाजी होता था उद्यम, व कठिन परिश्रम करके कमाता था..परदेश में रहकर या स्वयं को खेतों में बैलों की भाँति नाधकर। समाजवादी विचारक जगदीश जोशी अक्सर ये सवाल उठाया करते थे व ऐसे निर्जला ब्रतों की परंपरा के खिलाफ नारी विद्रोह की बात करते थे। मैं जोशी जी की इस सोच से सदा सहमत रहा। संस्कार, कर्मकाण्ड, परंपराओं पर युगानुकूल विमर्श होना चाहिए।
जो परंपराएं हजार वर्ष पूर्व समयोचित थीं आज भी रहें जरूरी नहीं। आज महिलाएं पुरुषों की भाँति उद्यम परिश्रम करके धनार्जन करती हैं। अब तो सरहद में फौजी बनकर देश की रक्षा करती हैं। फाइटर जेट उड़ाती हैं, अंतरिक्ष मिशनों का नेतृत्व करती हैं, पुलिस की भूमिका में आधी रात गश्त लगाती हैं, दफ्तरी कामकाजों में उनकी बराबर की भागीदारी रहती है। समय बदल चुका है। युग नर नारी समानता की बातें करता हैं तो ऐसे में कर्मकाण्डों की पुनर्व्याख्या होनी चाहिए।
बराबरसाइत(वट सावित्री) के पर्व में भी निर्जला रहकर पूजा करती हैं। बरगद स्वमेव दीर्घायु वृक्ष है इसकी धार्मिक मान्यता इस बोधिवृक्ष के संरक्षण से जुड़ी है। पीपल और वट मनुष्य की प्राणवायु के संचारक हैं, इसलिए कहा गया है कि इनमें ईश्वर का वास है। बरगद अक्षयवट भी है और प्रलय में भी बचा रहने वाला सृष्टि का अंतिम उपहार भी। मेरा मानना है कि हमारे हर पर्व नरनारी दोनों के लिए समपूज्य है। यथेष्ठ तो यह है कि तीजा और करवा चौथ जैसे सभी पर्वों को पतिपत्नी समभाव से मनाएं। बराबरसाइत के दिन प्रतिवर्ष एक वटवृक्ष रोपा जाए और उसी की पूजा हो।
अपने रीवा शहर के कोठी कंपाउंड में शमी का एक प्राचीन वृक्ष था। शमी की पूजा शनि की शांति से जुड़ा है। अढैय्या और साढेसाती के मारे शहर के पुजारियों ने शनि को प्रसन्न करने के फेर में इतना तेल पिला दिया की शमी का वह हरभरा वृक्ष ही सूखकर ठूंठ बन गया। आस्था धर्मान्धता में न बदलने पाए ऐसे जतन होने चाहिए। स्वामी विवेकानंदजी कहते थे कि पूजा, आराधना और कर्मकांड युगानुकूल तर्क व विधिसम्मत होने चाहिए।