इंदौर का साहित्यिक परिदृश्य एक

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इंदौर : 70 के दशक में इंदौर का साहित्यिक परिदृश्य एक अलग मायने रखता था देश के जाने माने साहित्यकार हरि कृष्ण प्रेमी से लेकर डॉ गणेश दत्त त्रिपाठी श्यामसुंदर व्यास आनंद राव दुबे कृष्णकांत मंडलोई के साथ ही अनेक साहित्यकार इंदौर के साहित्यिक परिदृश्य को सक्रिय बनाए रखते थे जब मैं बहुत कम उम्र का था तब हिंदी साहित्य समिति में मैंने हरिकृष्ण प्रेमी जी की रचनाओं का पाठ उनके मुख से सुना था उसके बाद एक बार मैं उनके निवास पर भी मिलने के लिए गया था उनका व्यक्तित्व बेहद गरिमामय था।

आज की पीढ़ी को मैं याद दिला दूं कि वे प्रसिद्ध फिल्म लेखक और समीक्षक श्री जयप्रकाश चोकसे के ससुर जी थे उस समय ज्यादातर साहित्यिक कार्यक्रम मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति में ही हुआ करते थे और एक तरह से देखा जाए तो हिंदी साहित्य समिति साहित्यकारों के मिलने का एक प्रमुख केंद्र थी इसके अलावा वीर सार्वजनिक वाचनालय जो माणक चौक में स्थित है वहां पर भी साहित्यिक कार्यक्रम हुआ करते थे एक बार एक काव्य गोष्ठी में मुझे वहीं पर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को सुनने का मौका मिला था सक्सेना जी का व्यक्तित्व प्रभावशाली था और वे नए लेखकों से उनकी रचनाएं बड़े चाव से सुनते थे यहीं पर सरोज कुमार जी को भी सुनने का मुझे मौका मिला ।

उस काल में श्री हरिहर लहरी बेहद सक्रिय थे और वे प्रकांड विद्वान माने जाते थे कई युवा लेखक और साहित्यकार उनसे मिलने के लिए उनके श्री कृष्ण टॉकीज के पास स्थित निवास पर जाया करते थे मैं भी उनसे उसी दौरान मिला वे अंग्रेजी साहित्य के विद्वान होने के साथ-साथ ही अंग्रेजी पढ़ाया भी करते थे उसी दौरान राम कौशल मंजुल नामक एक कवि थे जो मल्हारगंज में रहते थे वे बेहद आक्रामक तेवर के कवि थे और मुक्तिबोध की कविताओं को लेकर उनका अध्ययन बहुत गहरा था वे मुक्तिबोध के लेखन पर घंटों बात कर सकते थे बाद में मंजूल जी कहां चले गए इसकी कोई खोज खबर नहीं मिल पाई ।

70 के दशक में ही राजकुमार कुंभज भी अपनी विशिष्ट छवि और कविताओं के लिए जाने जाते थे प्रोफेसर सरोज कुमार का उन्हीं दिनों नई दुनिया में कालम छपता था और सरोज कुमार जी से मिलने पर कोई भी नया लिखने वाला कवि अपने आप को बहुत गौरवान्वित महसूस करता था ऐसे में श्री सत्यनारायण सत्तन का जिक्र करना भी बेहद जरूरी है जो अपने मुखर व्यक्तित्व और धारदार कविताओं के लिए जाने जाते थे सत्तन जी की अपनी एक पहचान थी जो आज भी कायम है सत्तन जी नए कवियों के लिए प्रेरणा बने हुए थे और कवि भी उनसे कुछ सीख कर गर्व महसूस करते थे । इंदौर के नगर निगम में उन दिनों श्री रमेश महबूब रघुनंदन राय अनुरागी और श्याम कुमार श्याम बेहद सक्रिय कवि थे खासकर रमेश महबूब तो अपनी एक अलग ही पहचान रखते थे उनका फक्कड़ व्यक्तित्व युवा कवियों को बेहद प्रभावित करता था ।

विशेष नोट – हिंदी साहित्य के परिदृश्य पर मेरी यह सामग्री मेरी उस समय की जानकारी पर आधारित है हो सकता है इसमें बहुत कुछ छूट रहा हो यदि किसी की जानकारी में इससे जुड़े कोई तथ्य हो तो वे अवश्य दे सकते हैं मुझे इसमें बहुत खुशी होगी साहित्यिक परिदृश्य का यह सिलसिला जारी रहेगा।

अर्जुन राठौर