रामचरितमानस में बार-बार यह शिक्षा दी गई है कि मनुष्य को सुखी रहने के लिए, राम नाम एक महाऔषधि है। लेकिन मानव जीवन की विडंबना यह है कि उसके पास हर कार्य के लिए पर्याप्त समय है लेकिन, भजन के लिए समय नहीं है। उक्त बातें सांवेर में गत 19 फरवरी से जारी नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन प्रेममूर्ति पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म और संस्कृति से जुड़े सदग्रंथ बताते हैं कि भगवान की अति कृपा से ही जीव को मानव शरीर मिलता है। यह देव दुर्लभ शरीर पाकर के भी अगर भजन नहीं कर पाया तो उस व्यक्ति का जीवन व्यर्थ हो जाता है।
आठवें दिन के कथा प्रसंगों के क्रम में महाराज जी ने कहा कि हर युग में मनुष्य के अलावा सुर और असुर रहे हैं। सूर अर्थात देवता जो चाह कर भी मनुष्य नहीं बन सकते हैं। असुर भी चाह कर मनुष्य नहीं बन सकते हैं । लेकिन मनुष्य अगर चाहे तो वह देवता भी बन सकता है और अपने कर्मों के अनुसार असुर भी बन सकता है। भगवान श्रीराम की वन प्रदेश मंगल यात्रा, लंका विजय और राज्याभिषेक तक के कथा प्रसंगों का गायन करते हुए पूज्य महाराज जी ने दर्जनों भजन सुनाए। पूज्य श्री ने कहा कि किष्किंधा कांड में भगवान श्रीराम ने स्वयं यह कहा है कि हमारी शरण में जो आ जाता है उसे हम साधु के समान बना लेते हैं। लेकिन मनुष्य के पास भगवान के लिए समय का अभाव है। यह स्वाभाव इसलिए भी है कि मनुष्य इस कार्य को महत्व नहीं देते हैं। हम जिस कार्य को महत्व देते हैं उसके लिए किसी ने किसी तरह से समय निकाल ही लेते हैं। भजन के लिए कहीं ना कहीं से शुरुआत करनी होती है और एक बार अगर इसकी आदत पड़ जाए तो फिर जीवन का कल्याण हो जाता है।
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वर्तमान सामाजिक बुराई की चर्चा करते हुए पूज्यश्री ने कहा कि इस समय अधिकांश जिम्मेदार पदों पर अयोग्य लोगों को बैठाए जाने के कारण ही समस्या पैदा हो रही है। अयोग्य व्यक्ति कभी भी अपने पद के साथ न्याय नहीं कर पाता है। भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ दुख का बंटवारा करने की जो प्रेरणा दी और जिस प्रकार से भरत भैया को समझाया वह आज भी हमारे समाज के लिए अनुकरण करने योग्य है। आज की युवा पीढ़ी प्रेम विवाह को महत्व देती है । प्रेम के चक्कर में लोग अपने माता-पिता और घर परिवार को छोड़कर भाग भी जाते हैं अर्थात यह जो नया नया प्रेम हुआ है वह पुराने संबंधों के प्रेम से जरूर बेहतर है । लेकिन बाद में जब इसका परिणाम सामने आता है तो पता चलता है कि कहीं ना कहीं यह कार्य गलत हुआ था। आठवें दिन की कथा का श्रवण करने के लिए दर्जनों विशिष्ट जन उपस्थित रहे। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोतागण महाराज जी के द्वारा गाए गए गीत और भजनों पर घंटों झूमते और नृत्य करते रहे।