महान पर्वतारोही मकसुत जुमाएव ने अभियान की भावना को सर्वोपरि रखा!

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कहते हैं दुनिया देखने से पहले अपनी मातृभूमि को जानना जरूरी है। इस कहावत को ध्यान में रखते हुए कजाखस्तान के महान पर्वतारोही मकसुत जुमेव ने 10 वर्ष और 10 दिनों की अवधि में माउंट एवरेस्ट सहित दुनिया की सभी 14 सर्वोच्च शिखरों पर झंडा फहराने में कामयाबी पाई। मकसुत जुमेय अपने देश कजाखस्तान की तरह पर्वतारोहण से प्रेम करते हैं और इसके प्रति दृढ़ संकल्प रहे हैं।

उनके नेतृत्व में कजाखस्तान दुनिया के 14 सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने वाली पहली टीम बन गई और खास बात यह कि इन अभियानों में टीम के किसी सदस्य का नुकसान भी नहीं हुआ। उन्हें अतिरिक्त ऑक्सीजन या फिर उच्च ऊंचाई पर चढ़ाई के गाइड शेरपा की मदद नहीं लगी। जुमेय अपने पेशे के खतरे समझते हैं और इससे नजरअंदाज नहीं करते हैं। ये अनुशासन और परिश्रम को इस क्षेत्र में सफलता की कुंजी मानते हैं।

उन्होंने कहा, “मानवीय क्षमताओं से परे ऊंचाई पर पहुंच कर हमें यह अनुभव होता है कि हम वास्तव में कितने सक्षम हैं। पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर सबसे शक्तिशाली जीव भी हिम्मत हार जाते हैं। इस बीचउन्हें घबराहट का दौरा पड़ता है। ये सुध-बुध खोने लगते हैं और उनका रक्तचाप तेजी से बढ़ जाता है।इसलिए सभी शिरपर चढ़ने वाले लोगों और पर्वतारोहियों को अनिवार्य रूप से नियमित प्रशिक्षण लेने की सलाह दी जाती है।’

 

सोवियत संघ के दिनों से ही कजाखस्तान का पर्वतारोहण में लंबा इतिहास रहा है। जुमेव ने यह दृढ़ निश्चिय किया है कि कजाखस्तान की वर्तमान पर्वतारोहण टीम पुरानी परंपराओं को आगे ले जाए। इतिहास को ध्यान में रखते हुए यह लाजमी है कि कजाखस्तान में पर्वतारोहण की सबसे बड़ी वैश्विक पहलों में एक का नेतृत्व मकसुत जुमेव करें। कजाखस्तान ने देश की 30वीं स्वतंत्रता सालगिरह के उपलक्ष्य में 16 दिसंबर, 2021 को जुमेय के नेतृत्व में पर्वतारोहियों की राष्ट्रीय टीम दुनिया के 30 सर्वोच्च शिखरों पर विजय प्राप्त करने का अभियान शुरु किया है। इस पहल से कजाखस्तान का पर्वतारोहण अपने प्रशिक्षण के उच्चतम स्तर पर दिखेगा और न केवल कजाखस्तान बल्कि पूरी दुनिया के पर्वतारोहियों के लिए एक नया उच्च मानक स्थापित होगा।

जुमेव को बचपन से ही पर्वतारोहण का शौक था। उनका लालन-पालन पश्चिमी कजाखस्तान में उरलस्क के पास एक गाँव में हुआ जहाँ दूर-दूर तक फैले उंचे क्षेत्र तो हैं लेकिन गगनचुम्बी पहाड़ नहीं हैं। जुमेव के बचपन की सबसे महत्वपूर्ण यादों में एक स्विस्टन पर्वत से नीचे स्टेपी का विशाल और अंतहीन दृश्य था।

एक बार जुमेव और उनके पिता आइसक्रीम लेने के लिए जा रहे थे तो स्थानीय शिखर स्टेपी के रोमांचक दृश्यों का सिलसिला नजर आया। दूर तक फैले और आंखों से ओझल होते अजेय क्षितिज ने जुमेव के मन में पर्वतारोहण को लेकर अनगिनत संभावनाओं को जन्म दिया। जुमेय शिखर की विजय यात्रा में हर मार दिल में बचपन की इन भावनाओं और यादों को संजोए चलते हैं।

जुमेय उच्च ऊंचाई वर्ग में पर्वतारोहण में कई बार कज़ाखस्तान के चैंपियन होने के साथ-साथ सीआईएस के ओपन चैंपियन हैं। उन्हें कजाखस्तान गणराज्य पर्वतारोहण में खेल के मास्टर, क्वेस्ट-14 का 27 वां सदस्य बनने का सम्मान प्राप्त है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल के मास्टर, कुर्मेट ऑर्डर से सम्मानित और 8,000 मीटर की ऊँचाई के दुनिया के 14 सर्वोच्च शिखरों पर जीत पाने वाले 12 वें पर्वतारोही हैं।

आठ हजार मीटर चढ़ाई करने वाले शीशबनमा के पहले पर्वतारोही मकसुत जुमेव को 2000 में कजाखस्तान की राष्ट्रीय टीम में शामिल किया गया। पर्वतारोहण के इतिहास में पहली बार तीसरी श्रेणी के किसी पर्वतारोही ने जिसे छह-सात-हजार मीटर चढ़ाई का भी अनुभव नहीं था, आठ हजार मीटर की चढ़ाई कर ली और यह भी बिना ऑक्सीजन के।

उनकी पहली बाधा चोगोरी (8614 मीटर) के रूप में आई जिसे ‘के-2 या ‘किलर माउंटेन कहते हैं। यह चोटी जुमेय के लिए खास तौर से दुर्गम साबित हुई जिन्होंने पांच बार पहाड़ पर चढ़ने का असफल प्रयास किया था। लेकिन असफलता कभी भी दृढ निश्चयी जुमेव के मांवों की बेड़ी नहीं बनी बल्कि इससे उनका हौसला और बुलंद हो गया। 23 अगस्त, 2011 को जुमेय और उनके साथी और दोस्त वासिली पिवत्सोव ने गेरलिंडा कल्टेनबनर (ऑस्ट्रिया) और डेरियस जालुस्की (पोलैंड) के साथ शिखर पर विजय प्राप्त की।

“मुझे खुशी है कि हम ने पुराने पर्वतारोहियों के अभियान को आगे बढ़ाया। किसी टीम का सबसे महत्वपूर्ण गुण निरंतर प्रयासरत रहना है,” जुमेव ने अजेय के-2 पर जीत के जश्न में कहा। कजाखस्तान के पहाड़ों ने सदियों से पूरी दुनिया के सैकड़ों साहसी पर्वतारोहियों और पर्यटकों को आकर्षित किया है। लेकिन एक धुव सत्य जो अधिकत्तर नहीं जानते वह है कि जो पहाड़ों का सम्मान करने वाले ही शिखर जीतने का सेहरा बांध पाते हैं।

जुमेय पहाड़ों का सम्मान करना जाते हैं और यह मानते हैं कि पहाड़ों की भी आत्मा और अपनी भाषा होती है। “मैंने हमेशा यह माना है कि पहाड़ों का जीवन दर्शन होता है। पहाड़ों में इंसान और आसमान के बीच केवल हवा है और कुछ नहीं। आप ध्यान लगा सकते हैं और जीवन का उद्देश्य अनुभव कर सकते हैं.” जुमेव ने अपनी सफलता की कुंजी बताते हुए कहा। कजाखस्तान के केवल दस प्रतिशत भूभाग पर पर्वत शिखर हैं, लेकिन इन पर्वतमालाओं और चोटियों में प्रत्येक पर जाने के लिए एक ज़िन्दगी पर्याप्त नहीं होगी।

शौकिया और पेशेवर दोनों हर साल इन शिखरों को जीतने की कोशिश करते हैं। ये टीएन शान पहाड़ोंया कर कार लिस्की पहाड़ों की चुनौती पार करने की अतृप्त इच्छा के साथ आते हैं। आज इनमें से किसी भी ऊंचाई पर आप एक पेशेवर पर्वत गाइड मकसुत जुमेव के साथ यात्रा कर सकते हैं क्योंकि उन्हें कठिन से कठिन चढ़ाई जीतने का बहुत अनुभव है। मकसुत जुमेव पिछले कई दशकों से कोचिंग और शिक्षा देने में संलग्न हैं। उन्होंने कजाखस्तान के युवाओं के बीच पर्वतारोहण को लोकप्रिय अनाया है। कजाखस्तान की चोटियों और यूरेशिया की अन्य ऊंचाइयों पर चढ़ने के इच्छुक स्थानीय और विदेशी पर्यटकों को मार्गदर्शन और साथ देते है।

एक समय था जब कजाखस्तान के पर्वतारोहियों को अंतरिक्ष यात्रियों की तरह देखा जाता था जो उन जगहों पर जाते जिनकी एक झलक पाने की सामान्य लोग केवल सपना देखते थे। आज दुनिया के सबसे महान पर्वतारोहियों में एक जुमेव यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि पर्वतारोहण की परंपरा जीवित रहे और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रहे। जुमेव चाहते हैं कि कजाखस्तान में पर्वतारोहण की गुणवत्ता और पर्यटन अपनी असीम क्षमता प्राप्त करे और देश की सीमाओं से बहुत आगे तक पहचान बनाए।

जुमेव अक्सर एक प्राचीन कहावत कहते हैं: “सूरज हर दिन उगता है, भले ही आपको नजर न आए। जो साहसी हैं और कठिन परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेकते ये सबसे दुर्गम पर्वतमाला को जीतते हैं। सबसे बड़ी बात अपनी ताकत पर विश्वास करना है। आप खुद देखेंगे कि आप कितनी ऊंची चढ़ाई चढ़ जाएंगे।’ “कजाखस्तान के पहाड़ मन का डर दूर करने के लिए बेहतरीन स्प्रिंगबोर्ड हैं।

शायद इसीलिए पूरी दुनिया के पर्यटक आकर्षित होते हैं? पर्यटकों को प्यार मिलता है, लोग चाहते हैं कि वे आएं और पर्यटक नया रिकॉर्ड बनाने के लिए बार-बार वापस आते हैं। कजाखस्तान हमेशा गर्मजोशी से उनकी मेजबानी के लिए तैयार है।” जुमेव की साहसिक यात्रा समाप्त नहीं हुई है और ऐसा लगता है निकट भविष्य में समाप्त होने वाली नहीं है।

उनकी योजना विन्सेंट पीक (अंटार्कटिका) और कोस्त्युशको पीक (ऑस्ट्रेलिया) पर चढ़ने और फिर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर स्की’ करने की है। इस तरह उन्होंने टोटल समिट प्रोग्राम का समापन किया और रेनहोल्ड मेस्नर के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाले इस ग्रह के दूसरे इंसान बन गए हैं। जुमेव राष्ट्रीय टीम के तीन कजाखस्तानियों में सबसे कम उन के और सबसे अनुभवहीन पर्वतारोही हैं और पहली बार अपनी मातृभूमि के बाहर पर्वतारोहण करने वाले इंसान हैं।

आज एक कजाखस्तानी नायक के रूप में उन्होंने न केवल अपने देश बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को यह दिखाया है कि कजाखस्तान कितना सक्षम देश है और इस तरह जुमेव ने एक भरपूर जीवन का आनंद लिया है। कजाखस्तान के लोगों और पर्वतारोहण के प्रशंसकों के लिए मकसुत जुमेव के नेतृत्व में कजाखस्तान की 30 वीं वर्षगांठ पर दुनिया की 30 चोटियों के अभियान को देखना काफी दिलचस्प होगा। जुमेव इसी तरह पर्वतारोहण करते रहेंगे और कजाखस्तान का झंडा ऊँचा रखेंगे।