डॉ सुरेंद्र यादव की अंतिम रचना

Rishabh
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और जब कोरोना ने कहा कि
‘अब में तुम्हें छोड़कर जा रहा हूँ ।’

स्वप्न कहें या सत्य ,
कुछ कह नहीं सकता,
पर कल रात कोरोना मेरे साथ खड़ा था ।

मैंने सर उठाकर उसे देखा , वह मुसकराया ।

मैंने कहा – ‘ पिछले पंद्रह दिन से मुझे भयानक शारीरिक पीड़ा दे रहे हो और जीवन और मृत्यु के झूले में झूला रहे हो ।
अब क्या चाहते हो ?’

मुसकराते हुए वह बोला – ‘मैं किसी को आगे बढ़कर पीड़ा नहीं देता । आजकल मनुष्य मदान्ध हो गया है ।
अपने हित और अहित को नहीं समझ पाता , इसीलिए वह नारकीय यंत्रणा को भोगता है । संकटों से बचना उसका अपना धर्म है , मैं तो निमित्त मात्र हूँ ‘ ।

इतना कहकर वह रुका ,
फिर मुसकराते हुए बोला – ‘ तुम्हारे बहुत सारे मित्रो ने तुम्हारे स्वस्थ होने की कामना की है । मै उन सभी की भावनाओं का सम्मान करते हुए तुमसे दूर जा रहा हूँ , जीवन में नियमों का पालन करो और स्वस्थ और सक्रिय रहो ‘ ।

और वह आकाश में उड़ चला ।