सकारात्मक खेल नीति की नियति-टोक्यो पैरालंपिक-2020

Pinal Patidar
Published on:

दीपक जैन (टीनू)
पैरालंपिक गेम्स एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मल्टी-स्पोर्ट इवेंट हैं जहां शारीरिक अक्षमता वाले एथलीटों की प्रतिस्पर्धा शामिल हैं। यहां शीतकालीन और समर पैरालम्पिक गेम्स शामिल हैं, जो एक ही मेजबान शहर में तुरंत अपने संबंधित ओलंपिक खेलों के बाद आयोजित की जाती हैं। भारत ने 1968 में इजरायल के तेल अवीव में पैरालिंपिक में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की। भारतीय प्रतिनिधि मंडल में 10 एथलीटों को भेजा गया जिनमें आठ पुरुष और दो महिलाएं शामिल थीं। हालांकि, भारत इस आयोजन से खाली हाथ लौटा, लेकिन बड़े मंच पर प्रदर्शन करना भारत के पैरा-एथलीटों के लिए पहला अनुभव था।

इस साल जापान के टोक्यो में हुए ओलंपिक गेम्स के बाद पैरालंपिक गेम्स में भी भारत का जबरदस्त प्रदर्शन जारी रखा।
टोक्यो पैरालिंपिंक-2020 (Tokyo Paralympic-2020) में जब भारतीय दल ने कदम रखा था तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि देश के खिलाड़ी पदकों की झड़ी लगा देंगे. भारतीय पैरा खिलाड़ियों ने इन खेलों में ऐसा प्रदर्शन किया है कि वर्षों की सारी कसर पूरी कर दी. भारत ने इन खेलों में कुल 19 पदक अपने नाम किए हैं जो देश का पैरालिंपिक खेलों में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. इस प्रदर्शन से पूरा देश खुश है. इस प्रदर्शन के बाद भारत में पैरा खिलाड़ियों को नया जोश मिलेगा.

ओलिंपिक और पैरालम्पिक गेम्स से पहले कोविड-19 के कारण देश में काफी मायूसी छाई हुई थी, लेकिन टोक्यो ओलिंपिक और पैरालम्पिक गेम्स में खिलाड़ियों के प्रदर्शन ने वह सब बदल दिया है और आपने देश के 1.3 अरब लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है. भारत के खिलाड़ियों ने जो प्रदर्शन किया, उससे हर नागरिक का मन गद‍्गद, प्रधानमंत्री का हर्षातिरेक और राष्ट्रपति का आशीर्वाद मिला। पदक विजेताओं के लिए बड़े इनामों की झड़ी लग गयी। सच में खिलाड़ियों ने वे उपलब्धियां प्राप्त कर भारत के लिए इतिहास रच डाला।

टोक्यो पैरालिंपिक में पदक जीतने वाले अधिकांश खिलाड़ियों का मानना है की , ‘‘ जब लोग इस मंच को स्वीकार करने लगे तो उन्होंने निश्चित रूप से अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया है. इससे जुड़ी नीतियां अधिक समावेशी हो गई है, हमें प्रधानमंत्री, खेल मंत्रालय, साई (भारतीय खेल प्राधिकरण) का सीधा समर्थन मिला है. हमने खुद को फिर से संगठित किया है.’’

मुझे लगता है कि सभी कारकों के मिलने से यह संभव हुआ. जब तक आप में जागरूकता नहीं होगी, नई प्रतिभा कहां आएगी. इस मामले में शायद 2016 में बदलाव आया, मीडिया की मदद मिली और इसके बाद सरकार और नीतियों के समर्थन से हमें एक ऐसा माहौल बनाने में मदद मिली जो पैरा-खेलों को स्वीकार कर रहा था. और लोगों ने पैरा-खेलों को एक प्रतिष्ठित मंच के रूप में देखा. उनके पास यहां खुद को सशक्त बनाने और दिव्यांगता से परे अपनी क्षमताओं का निर्माण करने का मौका था.

मेरा मानना है कि तकनीक और कौशल नहीं, बल्कि दिमाग सही दिशा में काम करना चाहिए। सही तकनीक और सही स्थिति पर अमल करना जरूरी है। अगर, आप अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हैं, तो आप निश्चित तौर पर चैंपियन बनेंगे। हम उम्मीद कर रहे हैं कि और अधिक हितधारक आगे आएंगे और हमारा हाथ थामेंगे. हम एक महासंघ के रूप में नयी प्रतिभाओं को बनाने, पहचानने और उनके साथ काम करने के लिए जिम्मेदार हैं.

अब यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए. अगली पीढ़ी दम-खम दिखाने के लिए तैयार है . उन्हें प्रतिभा दिखाने का मौका देने के लिए हमें उन्हें मंच देना होगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें चिकित्सकीय रूप से वर्गीकृत करने के लिए अधिक से अधिक मौका देना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो प्रतिभाएं आगे नहीं बढ़ेंगी,वर्तमान सरकार इसी दिशा में काम कर रही है.

इस बार केंद्र सरकार की खेलों के प्रति बढि़या नीतियों के चलते पहले टोक्यो ओलिंपिक में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा और अब पैरा ओलंपिक खेलों में केंद्र सरकार की बढि़या नीति के कारण रिकार्ड तोड़ तमगे हासिल हुए। हमें पूरा विश्वास है कि,प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में खेली जाने वाली आगामी प्रतिस्पर्धियों में भी भारत और आगे बढ़ेगा तथा पहले स्थान में भारत के खिलाड़ी अपनी प्रतिभा के बल पर भारत को विजय दिलवाएंगे।

टोक्यो ओलम्पिक और पैरालम्पिक गेम्स में भारतीय खिलाड़ियों के दमदार प्रदर्शन ने देश में एक नयी खेल संस्कृति पैदा करने की ज़रूरत को रेखांकित कर दिया है। यह खेल संस्कृति शहरों के साथ, गांवों से भी उभरनी चाहिये। नये खेल स्टेडियमों और कोचिंग खेल अकादमियों का नीव स्थल गांवों के खुले स्थान में भी हों, न कि सिर्फ शहरी खेल स्टेडियमों की ऊंची दीवारों का बन्द माहौल। महानगरों के खेल स्थल और खेल स्टेडियम बने रहें।

वहां खेल प्रतियोगितायें आयोजित करके खिलाड़ियों को आर्थिक पुरस्कारों एवं अभिनंदन उत्साह दिया जाता रहे, लेकिन भारत के गांवों के नौजवानों की सुद‍ृढ़ नर्सरी, गांवों में सार्थक खेल नीति के प्रयास से ही बनेगी। वैसे इनमें क्षेत्रीयता, प्रांतीयता या जातिभेद की विभाजक रेखायें नहीं खींचनी चाहिये। लेकिन नयी खेल नीति का केन्द्र बिन्दु गांवों की ओर भी बनाया जा सकता है। भारत आज भी मूलत: गांवों का देश है, और इधर आत्मनिर्भर भारत का एक नारा भी है, ‘चलें गांव की ओर।’