राज्यसभा में जाने की हसरत अधूरी रह गई…!

Mohit
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राजेश राठौर

महेश जोशी जिनको सब काका कहते थे, उनके बारे में लिखने में तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है, लेकिन कहां से लिखना शुरू करें और कहां खत्म करें, ये आसान नहीं है। जो एक बार महेश जोशी से मिल लेता था, वो पलट फिर भले ही उनके पास न जाए, लेकिन जीवनभर तारीफ करता रहेगा। ऐसा नेता कोई और नहीं हुआ। पार्षद के चुनाव से अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत करने वाले काका हमेशा देने में विश्वास रखते थे, लेने में नहीं। मामा बालेश्वर दयाल से प्रभावित नेताओं में से एक जोशी ने जो उनके पास गया, उसको कुछ दिया ही, खाली हाथ नहीं लौटाया। दोस्तों से लेकर कार्यकर्ता और आम आदमी तक उनकी मदद करने के तरीके का कायल रहा है।

जिस परिवार की एक बार मदद कर दी, उसकी दूसरी और तीसरी पीढ़ी के लोग भी उनके पास जाते रहे। महेश जोशी, सुंदरलाल पटवा सरकार के समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने का ताना-बाना दिग्विजयसिंह के साथ बुना था, उसी कारण दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री बने। अब दिग्विजयसिंह का नाम आ गया है, तो उनके कुछ किस्से हम बता देते हैं। दिग्विजयसिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए महेश जोशी किसी बात को लेकर रेसीडेंसी कोठी में इतने नाराज हो गए कि (मैं वहीं मौजूद था) गुस्से में आकर बोले- मुझे मूर्ख मत बनाओ, ऐसा नहीं चलेगा। दिग्विजयसिंह बोले- आप रुको तो सही, मैं बताता हूं। बोले- अब मुझे कुछ नहीं सुनना। तैश में आकर उठे और बोले- भोपाल जा रहा हूं। दिग्विजयसिंह तुरंत खड़े हो गए और उनका हाथ पकडऩे लगे और वहां से तेजी से चल दिए। उस समय मोबाइल का जमाना नहीं था। महेश जोशी के जाते ही दिग्विजयसिंह इतने परेशान हो गए कि वो भी कमरे से बाहर निकल कर कार में बैठे और अफसरों से कहा कि जोशीजी की कार का पीछा करो। बायपास पर जाकर जोशी मिले, तब कहीं जाकर दिग्विजयसिंह ने चैन की सांस ली।

इससे उल्टा एक किस्सा और है। जब महेश जोशी लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी में थे, तब गांधी भवन में महेश जोशी ने दिग्विजयसिंह से कहा था कि राजा, ये मनोज श्रीवास्तव कलेक्टर नहीं चलेगा, इसको हटा दो, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। महेश जोशी के पास जाओ, तो किस्सों की भरमार होती थी। एक बार मैं उनके पास बैठा, तो कहने लगे कि मैं अपनी राजनीति अपने भरोसे करता हूं, मैं किसी का गुलाम नहीं हूं, बड़े नेताओं को सम्मान भी देता हूं। तभी पता चला कि एक बार अर्जुनसिंह मुख्यमंत्री थे और महेश जोशी मंत्री, किसी तबादले को लेकर मुख्यमंत्री निवास से फाइल लौट गई, तो जोशी ने अर्जुनसिंह को फोन लगाया, उनसे बात नहीं हुई। थोड़ी देर बाद दोबारा फिर लगाया, अर्जुनसिंह लाइन पर थे, जो हमेशा महेश जोशी को महेशभाई कहते थे, लेकिन काका तो काका ठहरे, बोले अर्जुनसिंह, महेश जोशी की फाइल रोकते हो, जानते हो कौन है वो, कार्यकर्ता के कहने पर मैंने तबादला किया है और फिर फोन रख दिया। उसी दिन से अर्जुनसिंह से उनकी पटरी नहीं बैठी। लोकसभा चुनाव की बात चली तो एक बात और याद आ गई।

जोशी चुनाव हार गए। परिणाम आने के दूसरे दिन सुबह-सुबह आठ बजे फोन लगाया तो कहने लगे कि मैं तेरे फोन का इंतजार कर रहा था। अब तुम पूछोगे कि मैं कैसे हारा, अरे तुमको तो सब मालूम है किसने हरवाया। मैंने कहा आप अपनी प्रतिक्रिया दे दो, तो बोले लिख दो, मैं चुनाव हार गया हूं, लेकिन जो मेरे यहां आएगा, उसका काम कराऊंगा। विकास की बात करें तो इंदौर में रामबाग मुक्तिधाम के पास वाली डीआरपी लाइन के पीछे की जो रोड जाती है, वो महेश जोशी की देन थी। महेश जोशी के पास जब से भोपाल में बंगला है, तब से उनके घर पर यदि हम ये कह दें कि रोज लंगर चलता था, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उनके घर पर भोजन और ठहरने की व्यवस्था होती थी। हजारों बार ऐसे मौके आए होंगे जब महेश जोशी ने कार्यकर्ता को वापस अपने घर जाने के लिए बस के टिकट के पैसे भी दिए। जोशी ने अपने स्टाफ को कह रखा था कि मैं रहूं या न रहूं, मेरे घर पर जो आया है, उसे भोजन करा कर ही भेजना। एक बार उनके स्टाफ के कर्मचारी ने कुछ कार्यकर्ताओं को भोजन का मना कर दिया, पता चलते ही उसकी लू उतारी और भगा दिया।

महेश जोशी ने अंबिका सोनी और राजीव गांधी का कैसा स्वागत कराया था, वो लोगों को आज भी याद है। यदि महेश जोशी समय रहते दिल्ली पहुंच जाते, तो देश के बड़े नेताओं में उनका नाम गिना जाता। जोशी की वफादारी का किस्सा भी उन्होंने मुझे सुनाया था। माधवराव सिंधिया ने महेश जोशी से बोला कि दिग्विजयसिंह का साथ छोड़कर आप मेरे साथ आ जाओ। बोले मैं महेश जोशी हूं, वफादारी से रहता हूं, किसी के साथ दगा नहीं करता। प्रदेश में पहली बार दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री बने और चुनाव परिणाम के बाद ये कहा जाने लगा कि अर्जुनसिंह, सुभाष यादव को मुख्यमंत्री बनाएंगे, तो इस चक्कर में यादव भोपाल में महेश जोशी के बंगले पहुंचे। बोले कि महेश भाई कभी हमारी भी मदद कर दिया करो, मैं आपका जीवन भर अहसान मानूंगा, तो कहने लगे मैं दिग्विजयसिंह को मुख्यमंत्री बनवाने का कमिटमेंट कर चुका हूं, उनको धोखा नहीं दे सकता और सुन लो सुभाष यादव मत चक्कर में पड़ो, तुम मुख्यमंत्री नहीं बन पाओगे। जब अश्विन जोशी पहली बार चुनाव लड़े, तो बोले कि मैंने भाई को वचन दिया था, वो मेरे पिता समान हैं, इसलिए अश्विन को चुनाव लड़वा रहा हूं। इसे एक बार जिता दो, उसके बाद वो राजनीति करता रहेगा। जब अभी दो साल पहले विधानसभा चुनाव हुए और पिंटू जोशी भी तीन नंबर विधानसभा टिकट मांग रहे थे और कमलनाथ, अश्विन जोशी के पक्ष में थे, तब कमलनाथ ने महेश जोशी को मनाने की जवाबदारी दिग्विजयसिंह को दी। दिग्विजयसिंह ने महेश जोशी को मनाया और कहा कि पिंटू को अगली बार चुनाव जरूर लड़वाएंगे, अभी आप बात मान जाओ। जोशी मान गए। जोशी के बारे में आखिरी बात बताकर हम विराम लेंगे। दूसरी बार जब दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री बने और वो लोकसभा चुनाव हार चुके थे, तब महेश जोशी राज्यसभा सदस्य बनना चाहते थे। यदि उस समय वो दिल्ली चले जाते, तो कांग्रेस के राष्ट्रीय पदाधिकारी होते। इंदौर में ओडीए प्रोजेक्ट के तहत गरीब बस्तियों में सीवरेज लाइन डालने का काम महेश जोशी ने ही मंजूर कराया था। विधानसभा तीन में आज भी जोशी को चाहने वाले हजारों परिवार मिल जाएंगे, जिनमें से अधिकांश ये कहते सुने जाएंगे कि जोशी ने हमारी तकलीफ में मदद की। जब एक बार इंदौर विकास प्राधिकरण से प्लाट बांटने की बात आई, तो अकेले कांग्रेस ही नहीं भाजपा और समाजवादी पार्टी के नेताओं को भी बुला-बुलाकर प्लाट दिए। इंदौर में ऐसा कोई नहीं होगा, जो ये कह दे कि महेश जोशी ने किसी काम के बदले में कुछ लिया हो, लेकिन दूसरों को जरूर कुछ न कुछ दिलवाया करते थे।