शशिकांत गुप्ते का जोरदार व्यंग
कौन बनेगा ………इस प्रश्न का विनोद पूर्ण जवाब तो यह हो सकता है,”झुकाने वाला चाहिए, दुनिया झुकती है”लोग जब बनने को लालायित है, तो बनाने वाले क्यो सक्रिय नही होंगे।
बहरहाल प्रश्न होते हैं,सामान्यज्ञान के?
प्रश्नों के जवाब की क़ीमत लाखों रुपयों में है। गुगलबाबा से बड़ा सदी का नायक हो गया है। नैतिकता के आधार पर, प्रश्न पूछने की पात्रता उसे होती है,जो प्रश्नों के उत्तर जानता है।यहाँ तो प्रश्नों के जवाब,निश्चित प्रोग्राम के तहत कंप्यूटर में मौजूद होते हैं। इसे सट्टा या पहेलियां बूझने का खेल नहीं कह सकते।जो भी हो प्रश्न होते हैं,सामान्य ज्ञान के लेकिन,आश्चर्यजनक की बात तो यह है,टी वी पर दिखाया जाने वाला यह खेल देश के सामान्य आदमी के लिए नहीं होता है।
सामान्यजनों के लिए ऐसा कोई खेल होना शायद सम्भव ही नहीं है।
एक कल्पना की जाए,यदि इस तरह का कोई खेल सामान्यजन के लिए होगा, तब उसका स्वरुप कैसा होगा? किसी आलीशान सर्व सुविधायुक्त सभा गृह में तो होगा नहीं।किसी जर्जर शासकीय विद्यालय या महाविद्यालय का कक्ष या कोई धर्मशाला वह भी यदि निःशुल्क मिल जाए तो ही सम्भव हो सकता है।
प्रश्न पुछने के लिए किसी स्कूल या कॉलेज का सेवानिवृत्त शिक्षक या जन सामान्य के लिए निरन्तर संघर्ष करने वाला कोई सामान्य व्यक्ति हो सकता है।
प्रश्न इस तरह के होंगे?भारत मे कितने प्रदेश हैं?370 के पूर्व कितने थे,अब कितने रह गए हैं।इन प्रदेशों में आवागमन के लिए सड़के भी हैं?
किस राज्य में किसानों की आत्महत्या के आंकड़े सबसे ज्यादा है,तथ्यात्मक आकड़ो में और सरकारी आकड़ो में कितना अंतर है?
देश में बेरोजगार की समस्या और बेरोजगारों के लिए रोजगार मुहैय्या कराने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र में स्रोत कितने हैं?सरकारी अस्पतालों में मरीजो की संख्या के अनुपात में चिकित्सकों की संख्या कितनी है?चिकित्सकों की नियुक्तियां क्यों नहीं हो रही है?
निजी दवाखानों के चिकित्सकों द्वारा करवाई जा रही विभिन्न प्रकार की जांच के लिए मरीज और उसके परिजनों के लिए यह जानने का हक़ कब मिलेगा कि,जांच किसी निश्चित जांच केंद्र पर ही करवाने के लिए क्यों बाध्य किया जा रहा है?
करवाई जाने वाली जांच की आवश्यकता भी है या नहीं?
जांच की मशीनों और उपकरणो की प्रामाणिकता को जांचने का भी कोई प्रावधान होगा?यह एक बहुत ही सामान्य ज्ञान का ही प्रश्न है,कोई भी मशीन कितनी चली है,उसके कलपुर्जे कितने घिसें है,यह सब जानना एक सामान्य प्रक्रिया है।कोई भी मशीन या उपकरण निरन्तर चलता रहता है तब उसके कलपुर्जे घिसते ही हैं।
दवाइयों,खाद्यपदार्थों और विभन्न प्रकार के शीतल और अन्य पेय हैं, इनमें मिलावट करने वालों में कितने लोगों को अभितक सजा दी गई या सबूतों के अभाव के कारण बरी कर दिया गया?
कुपोषण से मरने वालों की सही संख्या बताओ?
शिक्षा के नाम से जो दुकानें सजी है वहां पढ़ाई से ज्यादा कितने चोंचले हो रहे है?
ट्युवशन के नाम पर फैले उद्योग पर कभी अंकुश लगेगा?
महत्वपूर्ण प्रश्न तो यह है कि, विशालकाय ट्युवशन केंद्रों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को परीक्षा में पूर्ण सफलता प्राप्त होने की गारंटी की किस आधार पर दी जाती है?
क्या परीक्षा में प्राप्त अंको का प्रतिशत, पढेलिखे होने का मापदंड है, या ज्ञान का यह कैसे तय होगा?
धार्मिक बाबाओं की संख्या और धर्म की आड़ में उनकी वासना पूर्ति की गतिविधियों को साहस के साथ,उजागर करने की क्षमता किस के पास है?
आए दिन अंध विश्वास को बढ़ावा देने वाले विज्ञापनों पर कब रोक लगेगी?प्रचार माध्यम ऐसे बाबाओं के विज्ञापन तो जोरशोर से प्रकाशित करते हैं,साथ ही अंधश्रद्धा के विरोध में लेख भी प्रसारित करते हैं।यह दोहरा आचरण क्यों?
स्त्रियों को समान अधिकार यथार्थ में कब मिलेगा?
मोबलिनचिंग कब रुकेगी?साम्प्रदायिकता पर कब रोक लगेगी?
स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास से भावीपीढ़ी को कब अवगत कराया जाएगा?जिससे यह पीढ़ी समझ सके कि आजादी के लिए किनती बड़ी कुर्बानिया दी गई है?
हमारे देश के जनप्रतिनिधियों में संवेदनाएं कब जागृत होगी?सामान्यजन को लोकलुभावन वादों के भ्रम से कब छुटकारा मिलेगा?
ऐसे अनगिनत प्रश्न रूबरू पूछे जाएंगे?
यह लेख लिखते लिखते मैं कल्पना को त्याग कर वास्तविक मानसिकता में आया तब मुझे किसी सामान्य व्यक्ति ने समझाया,इनदिनों ऐसे प्रश्न पूछना अर्थात राष्ट्र विरिधि गतिविधियों मे संलग्न होने जैसा कृत्य करना है।
सावधान हो जाओ।
बहरहाल प्रश्न होते हैं,सामान्यज्ञान के?
प्रश्नों के जवाब की क़ीमत लाखों रुपयों में है। गुगलबाबा से बड़ा सदी का नायक हो गया है। नैतिकता के आधार पर, प्रश्न पूछने की पात्रता उसे होती है,जो प्रश्नों के उत्तर जानता है।यहाँ तो प्रश्नों के जवाब,निश्चित प्रोग्राम के तहत कंप्यूटर में मौजूद होते हैं। इसे सट्टा या पहेलियां बूझने का खेल नहीं कह सकते।जो भी हो प्रश्न होते हैं,सामान्य ज्ञान के लेकिन,आश्चर्यजनक की बात तो यह है,टी वी पर दिखाया जाने वाला यह खेल देश के सामान्य आदमी के लिए नहीं होता है।
सामान्यजनों के लिए ऐसा कोई खेल होना शायद सम्भव ही नहीं है।
एक कल्पना की जाए,यदि इस तरह का कोई खेल सामान्यजन के लिए होगा, तब उसका स्वरुप कैसा होगा? किसी आलीशान सर्व सुविधायुक्त सभा गृह में तो होगा नहीं।किसी जर्जर शासकीय विद्यालय या महाविद्यालय का कक्ष या कोई धर्मशाला वह भी यदि निःशुल्क मिल जाए तो ही सम्भव हो सकता है।
प्रश्न पुछने के लिए किसी स्कूल या कॉलेज का सेवानिवृत्त शिक्षक या जन सामान्य के लिए निरन्तर संघर्ष करने वाला कोई सामान्य व्यक्ति हो सकता है।
प्रश्न इस तरह के होंगे?भारत मे कितने प्रदेश हैं?370 के पूर्व कितने थे,अब कितने रह गए हैं।इन प्रदेशों में आवागमन के लिए सड़के भी हैं?
किस राज्य में किसानों की आत्महत्या के आंकड़े सबसे ज्यादा है,तथ्यात्मक आकड़ो में और सरकारी आकड़ो में कितना अंतर है?
देश में बेरोजगार की समस्या और बेरोजगारों के लिए रोजगार मुहैय्या कराने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र में स्रोत कितने हैं?सरकारी अस्पतालों में मरीजो की संख्या के अनुपात में चिकित्सकों की संख्या कितनी है?चिकित्सकों की नियुक्तियां क्यों नहीं हो रही है?
निजी दवाखानों के चिकित्सकों द्वारा करवाई जा रही विभिन्न प्रकार की जांच के लिए मरीज और उसके परिजनों के लिए यह जानने का हक़ कब मिलेगा कि,जांच किसी निश्चित जांच केंद्र पर ही करवाने के लिए क्यों बाध्य किया जा रहा है?
करवाई जाने वाली जांच की आवश्यकता भी है या नहीं?
जांच की मशीनों और उपकरणो की प्रामाणिकता को जांचने का भी कोई प्रावधान होगा?यह एक बहुत ही सामान्य ज्ञान का ही प्रश्न है,कोई भी मशीन कितनी चली है,उसके कलपुर्जे कितने घिसें है,यह सब जानना एक सामान्य प्रक्रिया है।कोई भी मशीन या उपकरण निरन्तर चलता रहता है तब उसके कलपुर्जे घिसते ही हैं।
दवाइयों,खाद्यपदार्थों और विभन्न प्रकार के शीतल और अन्य पेय हैं, इनमें मिलावट करने वालों में कितने लोगों को अभितक सजा दी गई या सबूतों के अभाव के कारण बरी कर दिया गया?
कुपोषण से मरने वालों की सही संख्या बताओ?
शिक्षा के नाम से जो दुकानें सजी है वहां पढ़ाई से ज्यादा कितने चोंचले हो रहे है?
ट्युवशन के नाम पर फैले उद्योग पर कभी अंकुश लगेगा?
महत्वपूर्ण प्रश्न तो यह है कि, विशालकाय ट्युवशन केंद्रों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को परीक्षा में पूर्ण सफलता प्राप्त होने की गारंटी की किस आधार पर दी जाती है?
क्या परीक्षा में प्राप्त अंको का प्रतिशत, पढेलिखे होने का मापदंड है, या ज्ञान का यह कैसे तय होगा?
धार्मिक बाबाओं की संख्या और धर्म की आड़ में उनकी वासना पूर्ति की गतिविधियों को साहस के साथ,उजागर करने की क्षमता किस के पास है?
आए दिन अंध विश्वास को बढ़ावा देने वाले विज्ञापनों पर कब रोक लगेगी?प्रचार माध्यम ऐसे बाबाओं के विज्ञापन तो जोरशोर से प्रकाशित करते हैं,साथ ही अंधश्रद्धा के विरोध में लेख भी प्रसारित करते हैं।यह दोहरा आचरण क्यों?
स्त्रियों को समान अधिकार यथार्थ में कब मिलेगा?
मोबलिनचिंग कब रुकेगी?साम्प्रदायिकता पर कब रोक लगेगी?
स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास से भावीपीढ़ी को कब अवगत कराया जाएगा?जिससे यह पीढ़ी समझ सके कि आजादी के लिए किनती बड़ी कुर्बानिया दी गई है?
हमारे देश के जनप्रतिनिधियों में संवेदनाएं कब जागृत होगी?सामान्यजन को लोकलुभावन वादों के भ्रम से कब छुटकारा मिलेगा?
ऐसे अनगिनत प्रश्न रूबरू पूछे जाएंगे?
यह लेख लिखते लिखते मैं कल्पना को त्याग कर वास्तविक मानसिकता में आया तब मुझे किसी सामान्य व्यक्ति ने समझाया,इनदिनों ऐसे प्रश्न पूछना अर्थात राष्ट्र विरिधि गतिविधियों मे संलग्न होने जैसा कृत्य करना है।
सावधान हो जाओ।