अजय त्रिपाठी
मशहूर शायर निदा फाजली का एक चर्चित शेर है—
दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजिए रिश्ता,
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए
ये तो चेहरे का फकत अक्स है तस्वीर नहीं
इस पर कुछ रंग अभी चढ़ाते रहिए
मध्यप्रदेश की सियासत में यह शेर बीते दो दिन में ही हकीकत बनता दिखाई दिया। पार्टी के गुना सांसद केपी यादव सोमवार को उन महाराज की वर्चुअल रैली में नहीं दिखाई पड़े, जिनके आगे इस समय पार्टी नतमस्तक है और जिन्हें हराने का चमत्कार करके केपी यादव साधारण कार्यकर्ता से सांसद बन गए। सियासी हवाओं ने थोड़ा रंग दिखाया लेकिन 24 घंटे में ही उन्हें रंग बदलना पड़ गया क्योंकि सोमवार की रैली में अलग अलग रहे महाराज और यादव मंगलवार की रैली में साथ साथ थे। सियासत की रंग बदलती तस्वीर पर अभी और रंग चढना बाकी है।
प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए नए नए महाराज बने ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने जब पूरी पार्टी नतमस्तक नजर आ रही हो… ऐसे में पार्टी के गुना सांसद केपी यादव का क्षेत्र में महाराज की वर्चुअल रैली में नहीं दिखाई पड़ना तमाम सवाल खड़े कर गया। महाराज ने सियासत का बड़ा दांव खेलकर एक बार फिर अपने नाम के पहले सांसद विशेषण जुड़वा लिया, लेकिन उनकी निगाहें उनके खिदमत में बिछ जाने वाली भाजपा के उस शख्त को खोजती रहीं, जिस अदने से शख्स ने उन जैसे अपराजेय योद्धा के नाम के साथ पूर्व सांसद जैसा अकल्पनीय विशेषण जुड़वा दिया था। लोकसभा चुनाव के एक साल पहले तक महाराज के सियासी सिपाही कहलाने वाले केपी यादव ने लोकसभा चुनाव में वह कर दिखाया जिसकी कल्पना भी नहीं थी। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर गुना संसदीय सीट से अपराजेय महाराज को पराजित कर दिया। तब से लेकर आज तक इस जम्हूरियत के बादशाह का सामना सचमुच के बादशाह से नहीं हो पाया। सिंधिया के भाजपा में आ जाने और गुना क्षेत्र में फिर सक्रिय हो जाने से दोनो का सामना होना तय माना जा रहा था, इसलिए इसी सोमावर को क्षेत्र के मुंगावली और बमोरी में हुई वचुर्अल रैली में दोनों को एक साथ देखने के लिए कैमरों की निगाहें लगी हुई थीं। महाराज तो आए पर यादव नहीं दिखाई पड़े। इसके चलते तमाम सियासी सवाल हवाओं में तैरने लगे, लेकिन 24 घंटे बाद ही मंगलवार को अशोकनगर की वचुर्अल रैली में दोनो नेता साथ दिखाई पड़ गए। दोनों ने एक दूसरी की तारीफ कर निदा फाजली के शेर को चरितार्थ किया। अब सिंधिया के समर्थक दावा कर रहे हैं महाराज के मन में कभी किसी के लिए भेदभाव नहीं रहता है। अब वे भाजपा के कार्यकर्ता हैं और उनका उद्देश्य भाजपा के हर कार्यकर्ता के कंधे से कंधा मिलाकर पार्टी को आने वाले उपचुनाव में विजयी बनाना है।
एक दौर में केपी यादव मुंगावली विधानसभा क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि हुआ करते थे। वक्त के बदलाव ने लोकसभा चुनाव में उन्हें प्रतिद्वंदी बना दिया और वक्त ने ही केपी को सांसद और सिंधिया को पूर्व सांसद बना दिया। लेकिन बहुत जल्द फिर वक्त ने पलटी मारी और 22 विधायकों के साथ कांग्रेस से बगावत कर सिंधिया ने मप्र में बीजेपी की सरकार बनवा दी। इसके चलते समूची बीजेपी उनके आगे नतमस्तक सी हो गई। लेकिन सिंधिया की बीजेपी में एंट्री होने के बाद से सांसद केपी यादव की सियासी ताकत कमजोर हुई है और वो साइलेंट मोड में चले गए थे। तब से प्रतीक्षा की जा रही थी कि दोनों प्रतिद्वंदी कब एक होते हैं। आखिरकार मंगलवार को यह दृश्य दिखाई ही पड़ गया। इस दौरान बीजेपी के दोनों नेताओं ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के साथ अपने पुराने संबंध को भी याद किया। सिंधिया ने केपी यादव को सराहा तो केपी यादव ने सिंधिया के सानिध्य में आगे काम करने की बात कही। दोनों ने एक दूसरे की तारीफ में कसीदे पढ़े। इससे भाजपा भले ही खुश दिख रही हो लेकिन कांग्रेस को इस कसीदाकारी पर भरोसा नहीं है। उसे सियासी की एक अलग ही रंग वाली तस्वीर दिखाई पड़ रही है।
सिंधिया ने भले ही केपी यादव की जमकर तारीफ की हो और केपी यादव ने फिर से महाराज के साथ काम करने को अपना सौभाग्य बताया हो,,लेकिन यह तय है कि सियासत की यह डगर बहुत फिसलन वाली है। मुंगावली के उपचुनाव में सिंधिया और भाजपा के प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह तथा अशोकनगर प्रत्याशी जसपाल सिंह जज्जी की जीत हार इस सियासत की राह के सारे समीकरण तय करेगी। इसलिए उपचुनाव तक न सिर्फ इंतजार करना होगा बल्कि इसी तरह के कसीदे भी पढ़ने पड़ेंगे। उसके बाद वक्त के बदलाव का असली असर दिखाई पड़ेगा। सिंधिया जी भाजपा में एक दम नए हैं उन्हें यह मानकर चलना होगा…
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
यह नए मिजाज का शहर है जरा फासले से मिलाकर करो