इसलिए दौड़ में पीछे रह गए केदार शुक्ल

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

– विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए जितने योग्य गिरीश गौतम हैं, केदारनाथ शुक्ल उससे कम नहीं। फिर भी कम्युनिष्ट पृष्ठभूमि का होने के बावजूद गिरीश गौतम का विधानसभा अध्यक्ष बनना तय हो गया और केदार शुक्ल दौड़ में पीछे रह गए। इससे पहले भी कई बार शुक्ल का नाम विधानसभा अध्यक्ष तथा मंत्रिमंडल के लिए चला लेकिन अंतिम समय मे बाजी कोई और मार ले गया। वजह साफ है, शुक्ल पार्टी के अंदर वह भरोसा पैदा नहीं कर सके जो गौतम ने भाकपा से आने के बावजूद बना लिया। कम्युनिष्ट होने के नाते गौतम विरोधी तेवरों के लिए जाने जाते रहे हैं। उन्होंने 2003 में विंध्य के सफेद शेर नाम से चर्चित तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी को हराकर विधानसभा में प्रवेश किया था। भाजपा में आने के बाद उन्होंने कभी बगावती तेवर नहीं अपनाए। इसके विपरीत शुक्ल पार्टी नेतृत्व के फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं। गौतम का नाम तय होने पर भी वे चुप नहीं रहे। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि मुझमें क्या कमी रह गई, यह पार्टी नेतृत्व से ही पूछिए। इसके साथ उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि सीधी जिले को मंत्रिमंडल में स्थान जरूर मिलेगा। भाजपा नेतृत्व ऐसे बगावती तेवर पसंद नहीं करता। इसी कारण अजय विश्नोई दौड़ में पीछे हैं और केदार शुक्ल भी।

बसों के खिलाफ अभियान, धर्मसंकट में गोविंद….
– सीधी बस हादसे के कारण परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत विपक्ष के निशाने पर हैं और सत्तापक्ष के नेताओं को लेकर धर्मसंकट में। बस हादसे के बाद राजपूत अवैध ढंग से चल रही बसों के खिलाफ सड़कों पर उतरे। विभाग को पूरे सप्ताह अभियान चलाने का निर्देश दिया। उन्हें क्या मालूम था कि ऐसा करने से नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। वे सड़कों पर उतरे तो बसों पर कार्रवाई न करने के लिए भाजपा नेताओं के फोन घनघनाने लगे। कुछ सिफारिशें ऐसे ताकतवर नेताओं की थीं, जिन्हें इंकार करना संभव नहीं था। गोविंद भाजपा में नए-नए आए हैं। पार्टी में रच-बस रहे हैं। ऐसे में सिफारिशों को माने या खारिज करें, यह बड़ा धर्मसंकट। उन्हें समझ में आ गया कि भाजपा 15 साल सत्ता में रही है, इसलिए अधिकांश बस मालिक भाजपा से ही जुड़े हैं। धर्मसंकट से बचने के लिए उन्होंने ‘सांप मारे न लाठी टूटे ‘ की तर्ज पर दो रास्ते निकाले। एक, पहले दिन के बाद वे फिर सड़कों पर नहीं उतरे। दो, परिवहन विभाग को उन्होंने अभियान जारी रखने के निर्देश दे दिए। ऐसे हालात में भाजपा नेतृत्व एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भाजपा से जुड़े बस मालिकों को संदेश देना चाहिए कि वे बसों के संचालन में नियमों का पालन करें वर्ना उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी। कम से कम माफिया के खिलाफ ईमानदार कार्रवाई के लिए यह जरूरी भी है।

शिवराज जी, जनता को भी काटते हैं मच्छर….
– लिफ्ट कांड के बाद सीधी सरकिट हाउस का मच्छर कांड खासा चर्चा में है। घटनाएं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से जुड़ी हैं। मंत्रालय की लिफ्ट में शिवराज फंसे तो वहां एक के खिलाफ कार्रवाई हुई। सीधी सरकिट हाउस में मच्छरों के काटने से मुख्यमंत्री सो नहीं पाए तो उप यंत्री को निलंबित कर दिया गया। यह होना भी चाहिए। यदि मुख्यमंत्री के मामले में ऐसी लापरवाही हो सकती है तो कौन सुरक्षित रहेगा। सवाल यह है कि लिफ्ट में सिर्फ शिवराज नहीं फंसे, न ही मच्छरों ने सिर्फ मुख्यमंत्री को काटा। आए दिन लोग खराब लिफ्टों में फंसते हैं। रविवार को ही भोपाल में लिफ्ट गिरने से पांच घायल हो गए। मच्छरों के कारण बड़ा वर्ग डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियों का शिकार है। मुख्यमंत्री के लिफ्ट में फंसने और मच्छरों के काटने पर जैसी कार्रवाई हुई क्या आम लोगों की परेशानी पर भी ऐसी ही सक्रियता नहीं दिखाई जा सकती? शासकीय-अशासकीय इमारतों की खराब लिफ्टों को ठीक कराने का अभियान नहीं चलाया जा सकता? मच्छरों को खत्म करने के लिए प्रदेशव्यापी अभियान नहीं चल सकता? संबंधित विभाग सिर्फ खानापूर्ति करते नजर आते हैं। मुख्यमंत्री चाहें तो सब संभव है। क्या मुख्यमंत्री जनता को राहत के लिए ऐसे कोई कदम उठाएंगे?

लात-घूंसों ने याद करा दी कांग्रेस की संस्कृति….
– बैठकों के दौरान लात-घूंसे चलने, कपड़े फाड़ने, कुर्सियां तोड़ने जैसे उपद्रवों के लिए कांग्रेस जानी जाती रही है। पार्टी की इस संस्कृति के दर्शन तब ज्यादा होते थे जब कांग्रेस दिल्ली से लेकर अधिकांश राज्यों में सत्तासीन थी। इस संस्कृति के वाहक पार्टी के अंदर अब भी हैं। इसके उदाहरण यदा-कदा देखने को मिलते रहते हैं। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में प्रदेश बंद की तैयारी के सिलसिले में हुई बैठक में भी यह नजारा दिख गया, लात-घूंसे चल गए। इसके अगुवा खुद भोपाल शहर कांग्रेस अध्यक्ष कैलाश मिश्रा एवं उनके बेटे रहे। एक कार्यकर्ता ने कोई बात कही तो दोनों भड़क गए। कैलाश ने अभद्र भाषा का उपयोग किया और बेटा गुंडागर्दी पर ही आमादा हो गया। कम से कम कैलाश मिश्रा जैसे नेता से ऐसी उम्मीद किसी को नहीं थी। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ अब भी पार्टी के अंदर अपनी पकड़ नहीं बना पाए। घटना से साफ है कि वे बेबस हैं। पार्टी कार्यालय में इतना बड़ा कांड हो गया। अखबारों की सुर्खियां बन गया लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। साफ है, सरकार गंवाने और विधायकों के बड़ी तादाद में पार्टी छोड़ने के बावजूद कमलनाथ अपनी प्रभावी पकड़ नहीं बना पाए हैं। अनुशासन को लेकर किसी के अंदर कोई डर नहीं है।

कमल जी, अफसरशाही पर नकेल आसान नहीं….
– कमल पटेल जब मंत्री नहीं थे, प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी, तब अवैध उत्खनन को लेकर उन्होंने अपने गृह जिले हरदा के कलेक्टर के खिलाफ मोर्चा खोला था। मामले ने इतना तूल पकड़ा था कि कमल अपनी ही सरकार के मुकाबले खड़े नजर आ रहे थे। शिवराज और उनके बीच दूरी की खबरें सुर्खियां बन रही थीं। राजनीति में उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। कमल पटेल अब शिवराज के नेतृत्व वाली अपनी पार्टी की सरकार में मंत्री हैं और फुल फार्म में भी। फुल फार्म में इसलिए क्योंकि वे चौतरफा बल्लेबाजी करते नजर आ रहे हैं। लिहाजा, अब उन्होंने अवैध उत्खनन को लेकर नरसिंहपुर कलेक्टर पर तीखे आरोप लगाए हैं। इसे लेकर संभागायुक्त को पत्र भी लिखा है। मजेदार बात यह है कि पत्र लिखने के कई दिन बीत जाने के बावजूद कलेक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। कमल के निशाने पर अफसरशाही है लेकिन उनके कदम से भाजपा सरकार भी कटघरे में है। मैसेज जा रहा है कि मुख्यमंत्री के दावों के बावजूद अवैध उत्खनन रुक नहीं पा रहा। संभवत: अब कमल पटेल को अहसास हो रहा होगा कि अफसरशाही खासकर आईएएस लॉबी के खिलाफ कार्रवाई इतनी आसान नहीं है।