किसी को सही सही नही पता है कि वेक्सीन बीमारी का ट्रांसमिशन रोकने में कितनी सक्षम है, बल्कि यह भी कहा जाता हैं. वेक्सीन लेने वाला वायरस का सायलेंट कैरियर हो सकता है. लेकिन उसके बावजूद भी कही भी आने जाने की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन कर के वेक्सीन सर्टिफिकेट को अनिवार्य किया जा रहा है. कुछ सालों पहले जो कथानक हम विज्ञान फंतासी फिल्मो में देखते आए थे वो सच हो गया है, वेक्सीन पासपोर्ट की व्यवस्था न केवल विदेश जाने में बल्कि देश/राज्य/शहर के अंदर घूमने में भी लागू कर दी गई है.
अबु धाबी शहर के नागरिकों को अब सार्वजनिक स्थानों पर बिना ग्रीन पास जाने की इजाजत नहीं होगी. ये नियम 15 जून से सोलह साल और उससे ऊपर उम्र के लोगों पर लागूकर दिया गया है. इस ग्रीन पास को वहाँ Alhosn ऐप पर रखना जरूरी होगा. शॉपिंग मॉल्स, बड़े सुपरमार्केट, जिम, होटल, पार्क, बीच, सिनेमा, एंटरटेंमेंट सेंटर्स, म्यूजियम, रेस्तरां आदि में तभी प्रवेश मिलेगा जब आप अपने फोन में इस एप्प पर डिजिटल QR कोड प्रदर्शित करेंगे.
चीन ने भी अपना डिजिटल वैक्सीन पासपोर्ट जारी किया, जिसे एक ऐप के माध्यम से एक्सेस किया जा सकता है. इसके अलावा न्यूजीलैंड में बार और रेस्तरां जैसे ज्यादा जोखिम वाले स्थानों पर क्यूआर कोड स्कैनिंग अनिवार्य करने पर विचार कर रहा है.
यूरोप के तमाम देशो में इंटरनल ट्रेवल के लिए ग्रीन पास की व्यवस्था लागू की गई है इसमे भी QR कोड तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, इजराइल में ग्रीन पास जारी किया जा रहा है. वैक्सीन पासपोर्ट’ को लेकर जापान सरकार ने नई नीति बनाने की घोषणा की है.
इस मामले में भारत भी पीछे नही है भारत से बाहर जाने वालों को अब अपना पासपोर्ट अपने वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट से लिंक कराना ही होगा। विदेश यात्रा करने के लिए वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट नई अनिवार्य आवश्यकता बन गई है.
कुछ सालो पहले तक पासपोर्ट को वैक्सीन सर्टिफिकेट से जोड़ने की सुविधा के बारे में सोचा भी नही जा सकता था लेकिन अब यह बेहद जरूरी है, कुछ दिनों में राज्य भी एक दूसरे राज्यों के नागरिकों के बीच वेक्सीन सर्टिफिकेट वाला भेदभाव करने लगेंगे.
इस बीच कैलिफोर्निया की इम्यूनबैंड नाम की स्टार्टअप कंपनी ने हाथ में पहनने जा सकने वाले ब्रेसलेट विकसित किेए हैं। इन ब्रेसलेट्स में किसी भी व्यक्ति का कोविड-19 वैक्सीन पासपोर्ट और उससे जुड़े वास्तविक प्रमाण पत्र डिजिटली सुरक्षित रखे जा सकते हैं। इस बैंड में व्यक्ति का नाम,पता, टीका लगने का समय, किस कंपनी की डोज लगाई गई है और कोरोना से जुड़ी अन्य जानकारियां जरुरत पडऩे पर इसे क्यूआर कोड से स्कैन की जा सकती हैं। ऐसे ही टैटू भी विकसित किये जा रहे हैं.
कुछ सालों मे आपको यह बैंड/टैटू अपने हाथों में लगाकर चलने ही होंगे. यानी डिजिटल गुलामी के एक नए युग की शुरू हो गया है. यह सब हुआ है विज्ञान के नाम पर, दरअसल यह सब हो गया और आप तमाम बुद्धिजीवी कुछ नही कर पाए क्योकि आप महामारी के भय से बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े रह गए. जिसने भी इसके विरुद्ध आवाज उठाई उसे आपने कांस्पिरेसी थ्योरिस्ट टैग लगा दिया और साइड कर दिया…..
पूरी दुनिया मे इस न्यू वर्ल्ड आर्डर का कड़ा विरोध हुआ लोगो ने प्रदर्शन किए लेकिन भारत के बुद्धिजीवीयो ने चुपचाप बेवकूफ बनना स्वीकार कर लिया…एक बात याद रखिएगा निकट भविष्य मे जब आपके बच्चे इस व्यवस्था का शिकार होकर डिजिटल गुलाम बन जाएंगे, ओर आप उन्हे अपनी 2020 से पहले जिंदगी के किस्से सुनाएंगे तो वो आपसे पूछेंगे कि यह सब जब हो रहा था तब आप क्या कर रहे थे.
आप क्या जवाब देंगे ?
Girish Malviya