Bhopal Gas Tragedy : भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल पूरे हो गए हैं। 1984 में हुई इस भयंकर घटना के बाद जो बच्चे उस समय पैदा हुए थे, वे अब 40 साल के हो चुके हैं, और जो पहले से 40 साल के थे, वे अब 80 की उम्र में पहुंच चुके हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग इस हादसे के शिकार हुए थे, और आज भी वे दर्द और पीड़ा का सामना कर रहे हैं। इस दुर्घटना की छाया भोपाल और वहां के लोगों के जीवन पर अब भी मंडरा रही है। लोग चाहकर भी इस हादसे को भूलने की कोशिश करते हैं, लेकिन इसके कारण, प्रभाव और जख्म इतने गहरे हैं कि भुलाया नहीं जा सकता।
हादसे की भयावहता
3 और 4 दिसंबर 1984 की रात, भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। यह गैस हवा के साथ शहर के बड़े हिस्से में फैल गई। इस घटना ने सैकड़ों और हजारों लोगों की जान ले ली। हादसे के समय गैस के प्रभाव से लोग सड़कों और गलियों में बेहोश हो गए थे, और जब कुछ समय बाद गैस का प्रभाव कम हुआ, तब घायलों को अस्पतालों में भर्ती किया गया। लेकिन उस समय अस्पतालों में संसाधनों की भारी कमी थी—बेड, डॉक्टर, दवाएं, सभी कुछ कम थे। पोस्टमार्टम हाउस में शवों को रखने के लिए जगह नहीं थी, और शव एक-दूसरे के ऊपर रखे गए थे। डॉक्टरों को भयंकर दुर्गंध के बीच दिन-रात शवों का पोस्टमार्टम करना पड़ा।
सरकारी आंकड़े बनाम वास्तविकता
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस त्रासदी में 3787 लोगों की मौत हुई थी। हालांकि, गैर-सरकारी संस्थाओं और विभिन्न रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह संख्या कहीं अधिक थी। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार यह आंकड़ा 15,000 से 33,000 तक का था। इसके अलावा, लगभग पांच लाख लोग सीधे तौर पर गैस के प्रभाव में आए थे। यह त्रासदी विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक मानी जाती है। हालांकि हादसा पुराना हो चुका है, लेकिन इसका असर आज भी भोपाल के लोगों की जिंदगी पर है।
आज भी जारी है प्रभाव
संभावना ट्रस्ट द्वारा किए गए एक शोध में कहा गया है कि आज भी भोपाल के लोग गैस त्रासदी के दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं। बीते कई सालों में ट्रस्ट ने 16,000 से ज्यादा पीड़ितों और 8,000 से ज्यादा गैर-प्रभावित लोगों पर शोध किया। शोध के परिणामों के अनुसार, श्वसन संबंधी बीमारियां, डिप्रेशन, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और समय से पहले मेनोपॉज जैसे मामलों में कई गुणा वृद्धि हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन बीमारियों का इलाज करने के लिए विशेष चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता है, लेकिन सरकार की ओर से इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
पेंशन, मुआवजा और स्वास्थ्य सुविधाएं
पहले, अस्पतालों में गैस त्रासदी के पीड़ितों के इलाज के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे, लेकिन अब आयुष्मान भारत योजना और राज्य सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं के तहत इन्हें जोड़ा जा रहा है। हालांकि, विधवा महिलाओं को मिलने वाली पेंशन अब भी उन्हें नहीं मिल रही है। इसके अलावा, जिन लोगों को किडनी, कैंसर जैसे गंभीर रोगों के लिए मुआवजा मिलना था, वह भी समय के साथ भुला दिया गया। अफसर और नेता धीरे-धीरे इस मुद्दे से मुंह मोड़ते जा रहे हैं।
हादसे के बाद यह भी तय किया गया था कि कारखाने के जहरीले कचरे का निस्तारण विशेष विधियों से किया जाएगा, लेकिन अब तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। पूरी तरह से खतरनाक कचरा आज भी एक तालाब में पड़ा हुआ है। इसका प्रभाव आसपास के पानी और ज़मीन पर पड़ रहा है, जिससे कैंसर जैसी बीमारियों के खतरे को बढ़ावा मिल रहा है। कचरे में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो शरीर पर बुरा असर डाल सकते हैं।
अप्रत्यक्ष पीड़ितों की बढ़ती संख्या
इस त्रासदी के प्रत्यक्ष पीड़ितों के अलावा, अप्रत्यक्ष पीड़ितों की संख्या भी बहुत अधिक है। जो बच्चे हादसे के बाद पैदा हुए हैं, वे भी इस हादसे का असर झेल रहे हैं, भले ही उन्हें इसका एहसास न हो। उनके स्वास्थ्य पर इसका असर पड़ा है, लेकिन इसका कोई आंकड़ा नहीं है और न ही कोई सरकारी रिकॉर्ड है। इन बच्चों का जीवन और स्वास्थ्य संकट में है, और वे अनजाने में इसके शिकार हो रहे हैं।