कहो तो कह दूँ – ऐसा न हो अब कपूर, अजवाइन, और लोंग ब्लेक में मिलने लगें

Ayushi
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chetanya bhatt

चैतन्य भट्ट

कोरोना ने और कुछ किया हो या न किया हो पर हर दूसरे हिंदुस्तानी को “डॉक्टर” जरूर बना दिया है, जितनी संख्या में कोरोना के वायरस चीन से भारत आये हैं उससे चार गुने डॉक्टर इंडिया में जन्म ले चुके हैं जिससे भी कोरोना के बारे में बात करो तत्काल एक नुस्खा वो सामने वाले को पकड़ा देता है अब सामने वाला भी तो कोई कमजोर तो होता नहीं है तो वो बदले में एक दूसरा नुस्खा पहले वाले की जेब में डाल देता है l

पिछले बरस जब कोरोना का प्रकोप हुआ था तब भी सैकड़ों तरह के इलाज सोशल मीडिया में तैरने लगे थे, इस बार जैसे कोरोना की तीव्रता ज्यादा तेज हुई हैं उससे मुकाबले करने और उसे हराने के उपाय भी उतनी ही गति से बढ़ गए हैं, हाल ये है कि कोई बतला रहा है की “उलटे तवे पर रोटी सेंकों, फिर उसको कुकर में डाल कर दो सीटी लगने दो, फिर कढ़ैया में भूंज कर खाओ कोरोना छू भी नहीं सकता l कोई बतला रहा है कि एक टांग पर दूसरी टांग रखो उसके भीतर से अपना सर निकालो फिर उस सर को कानों से छुओ उन कानों में हाथ लगाओ फिर नाक से उसे धीरे धीरे सहलाओ यानि पूरी तरह से “अष्टावक्र” हो जाओ आपका ऐसा भयानक आसन देखकर कोरोना दूर से ही छू मंतर हो जाएगा l

एक भाई साहेब ने सुझाया कि आधे घंटे तक किसी नदी में डुबकी लगाए रहो कोरोना का बाप भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा हां दम घुटने और डूबने से मौत हो जाए तो अपनी जिम्मेदारी नहीं है यानि तरह तरह के उपाय l इधर हर आदमी को लगने लगा है कि उसकी सांस फूलने लगी है, उसकी ऑक्सीजन कम होती जा रही है तो लो उसके लिए भी तमाम उपाय मार्किट में अवेलेबल हैं बाबा रामदेव के चेले चपाटी योग बतला रहे हैं, तो कोई ऑक्सीजन का लेबल बढ़ाने के लिए पेट के नीचे तकिया, ठुड्डी के नीचे तकिया, पंजो के नीचे तकिया लगाकर सो जाने की सलाह देकर कह रहा हैं कि ऑक्सीजन का लेबल सौ से भी ऊपर न पंहुच जाए तो कहना, यानि ये तकिये, तकिये न होकर “ऑक्सीजन सिलेंडर” हो गए हैं l

एक और उपाय मार्किट में बड़ी सुर्खिया बटोर रहा हैं वाट्सअप यूनिवर्सिटी के एक स्कॉलर का दावा है कि एक कपडे में कपूर की टिकिया, अजवाइन और लोंग मिलाकर उसकी पुड़िया बाँध लो इस कपडे में बंधी पुड़िया को दिन में बीसेक बार सूंघते रहो मरने के बाद भी ऑक्सीजन लेबल काम नहीं होगा न कोरोना आपके पास फटक पायेगा l एक और उपाय भी चर्चा में है वो है “प्याज में सेंधा नमक” मिलाकर खाते रहो कोरोना की सात पुश्त आपके सामने हाथ जोड़े खड़ी रहेगी कि हे भगवान, आपने ऐसा क्या खा लिया है कि हमारी फ़ौज के सारे अस्त्र शस्त्र आपके सामने बेदम हुए जा रहे हैं वैसे भी अपने देश में “हुआ, हुआ”, का राज चलता है आप किसी पुल पर खड़े होकर सिर्फ पुल से नीचे देखने लगो थोड़ी ही देर में उस जगह पर पचासों लोग इकठ्ठे हो जाएंगे और पुल के नीचे झाँकने लगेंगे ,

दरअसल सब फुरसतिया हैं काम धाम तो बचा नहीं है तो बैठा आदमी क्या करे, ऐसे ही मन बहलाते रहते हैं और फिर डॉक्टरी तो हर इंडियन के खून में है इधर उपाय भी ऐसे ऐसे हैं कोई कह रहा है सात दिन नीम के पेड़ की सबसे ऊँची डगाल पर बैठे रहो, तो कोई कह रहा है कि बबूल के कांटें अपने शरीर में चुभा लो, कोई गिलोय की बेल से लटकने के लिए कह रहा है तो कोई कलींदे को बिना छीले और काटे खाने की सलाह दे रहा है अपने को तो लगता है की जिस गति से कपूर, अजवाइन और लोंग की मांग बढ़ रही है वो दिन दूर नहीं जब इनका भी ब्लेक होने लगेगा और सरकार को बहुत जल्द इन्हें अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम के तहत लाना पड़ेगा l

सत्ता क्या गई देहरी पर बैठना पड़ गया

ईश्वर किसी को सत्ता पर न बैठाये और यदि बैठा ही दिया है तो उसे आजीवन उसे सत्ता पर बिठा कर रखे क्योकि सत्ता से हटते ही नेताओं ही क्या दुर्दशा होती है ये बात किसी से छिपी नहीं है, अब देखो न जबलपुर के दो कांग्रेसी विधायक जो कमलनाथ मंत्रीमंडल में केबिनेट रेंक के मिनिस्टर थे जिसके एक फोन पर पर जिले के तमाम आला अफसर सर के बल चल कर उनके दरबार में आकर खड़े हो जाते थे अब वे ही अधिकारी उन्हें घास भी नहीं डाल रहे हैं कोरोना के संकट और एक निजी अस्पताल के खिलाफ कार्यवाही के लिए पूर्व केबिनेट मंत्री तरुण भनोट और लखन घनघोरिया अपने अन्य कांग्रेसी विधायकों के साथ जबलपुर कलेक्टर के दफ्तर पंहुच गए पर कलेक्टर साहेब किसी काम से कंही और गए थे

अब ये नेता क्या करते तो अपने और साथी विधायकों के साथ कलेक्टर साहेब के ऑफिस की देहरी पर बैठ गए, दो घंटे देहरी पर बैठे बैठे भी जब कलेक्टर साहेब के दर्शन उन्हें नहीं हुए तो लौटने लगे फिर शायद कलेक्टर साहेब को दया सी आई होगी और वे प्रगट हो गए और इन नेताओं से बात चीत की, अब ये नेता जो मांग लेकर गए थे वे पूरी हुई की नहीं इस बारे में अपन अभी कुछ कह नहीं सकते लेकिन ये बात तो है कि अफसर अफसर ही होते है उन्हें भी मालूम है कि ये तमाम नेता सत्ता विहीन हो चुके है और अपना कुछ नहीं बिगाड सकते इसलिए इन्हें ज्यादा तवज्जो देना ठीक नहीं हैl किसी ने सच ही कहा है की नेताओं को सबसे ज्यादा कष्ट उस वक्त होता है अब उनके के नीचे से सत्ता और सरकार चली जाती है इसलिए अपनी एक एक ही सलाह है कि सत्ता के चक्कर में न रहो नेताओ ये तो आनी जानी है, “कुर्सी” कब किसकी हुई है जो आपकी होकर रह जाएगी l

सुपर हिट ऑफ़ द वीक

अपने देश में ज्ञान बांटने वाली “टॉप यूनिवर्सिटियों” का नाम बताएं श्रीमान जी से इंटरव्यू करने वाले ने पूछा

“पान का ठेला”

“नाई की दूकान”

“दारू पिया हुआ आदमी”

“ट्रैन का जनरल कोच” और “वाट्सअप” श्रीमान जी का उत्तर था और उनका सिलेक्शन भी हो गया