सुशांत केस : विवेचना और राजनीति

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एन के त्रिपाठी

सुप्रीम कोर्ट ने सुशांत की मृत्यु से संबंधित मुम्बई पुलिस के प्रकरण को CBI को देने का निर्णय दिया है।यह निर्णय रिया चक्रवर्ती के द्वारा दायर की गई उस याचिका पर दिया गया है जिसमें उसने बिहार में दायर FIR को मुंबई पुलिस को देने के लिए निवेदन किया था। यह केस पूर्व में ही बिहार सरकार के अनुरोध पर CBI द्वारा लिया जा चुका है।बिहार पुलिस की FIR और बिहार सरकार द्वारा इसे CBI को भेजने के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने विधि सम्मत पाया है। मुंबई पुलिस द्वारा सुशांत की संदेहास्पद मृत्यु के लिए जाँच धारा 174 CRPC के अंतर्गत की जा रही है और उसने अभी तक कोई FIR दायर नहीं की है। सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई पुलिस की अभी तक की जाँच को ठीक पाया है परन्तु बिहार पुलिस के IPS अधिकारी के साथ किए गए क्वारंटीन के दुर्व्यवहार को अनुचित पाया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि संभव है कि भविष्य में मुंबई पुलिस इस प्रकरण में F IR कर देती, अत: मुंबई पुलिस की वर्तमान जॉंच और भविष्य की संभावित FIR को एक ही स्थान पर जाँच के लिए CBI को सुपुर्द कर दिया गया है। कोई मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के प्रकरण तथा इसे CBI को दिए जाने को वैध ठहराया है तथा मुंबई पुलिस की जाँच को CBI के सुपुर्द करने के आदेश दिये है। यह पूरी तरह से उचित एवं तर्क संगत है। सुप्रीम कोर्ट किसी न्यायिक बिंदु पर विचार नहीं कर रहा था और केवल व्यावहारिकता तथा जनमत के आधार पर अपने विशेषाधिकार से यह निर्णय दिया है।

अब प्रश्न सुशांत की आत्महत्या/ हत्या के वास्तविक या काल्पनिक अभियुक्तों को सजा दिलाने का नहीं रह गया है। अगली कार्रवाई पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित होगी इसलिए पूर्व की भाँति सभी चैनल अपनी व्यवस्थाओं के अनुसार जन भावनाओं को भड़काती रहेंगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव पूर्व एक बड़ा तोहफ़ा है।केंद्र सरकार को उद्धव ठाकरे सरकार को झटका देने का एक अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है। CBI की विवेचना की गति, दिशा और विषयवस्तु केंद्र सरकार तय करेगी। आदित्य ठाकरे का क्या करना है यह केंद्र सरकार की इक्षा पर निर्भर करेगा। सभी राजनीतिक पार्टियों की प्रतिक्रिया अथवा मौन उनके तात्कालिक हितों के अनुसार होगा।

महाराष्ट्र पुलिस के विरुद्ध अक्षम होने का माहौल बनाया गया है, जबकि अब तक की उसकी जाँच को सुप्रीम कोर्ट ने ठीक पाया है। महाराष्ट्र पुलिस अपनी सरकार के अनर्गल बयानों और इशारों के कारण आलोचना का पात्र बनी है।सभी राज्यों में राजनीतिक नेताओं के हस्तक्षेप से पुलिस के विवेचना का स्तर धरातल की ओर जा रहा है। अपेक्षाकृत सक्षम मुम्बई पुलिस की सक्षमता को अब संदेह के कटघरे में खड़ा कर दिया गया है।

देश का विशाल जनमत तथा उसे मानसिक आहार देने वाली हमारी चैनलें इस मूल मुद्दे पर नहीं जाएंगी कि महाराष्ट्र बिहार और केंद्र की तीनों सरकारें अपनी पुलिस और CBI के माध्यम से राजनीति कर रही है। इस समस्या के निदान के लिए कोई बहस नहीं होगी। भविष्य में और भी ख़तरनाक तरीक़े से पुलिस का राजनीतिक दुरुपयोग जनता की भावनाओं के नाम पर होना अवश्यम्भावी है। सुशांत की मृत्यु के न्याय से अधिक भारतीय न्याय व्यवस्था दांव पर है।