रविवारीय गपशप : प्रशासनिक अधिकारी के लिए जो एक निहायत जरूरी बात होती है , वो है काम के दौरान अपने सार्वजानिक व्यवहार का ध्यान रखना

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लेखक – आनंद शर्मा

प्रशासनिक अधिकारी के लिए जो एक निहायत ज़रूरी बात होती है , वो है काम के दौरान अपने सार्वजानिक व्यवहार का ध्यान रखना । मुझे एक बड़ी पुरानी कहावत याद आ रही है कि कानो सुनी नहीं बल्कि आँखों देखी पर यकीन करना चाहिए , लेकिन आज के जमाने में तो मैं कहूँगा कि आँखों देखी पर भी तब तक न यकीन करो , जब तक उसके बारे में बाकी संदर्भों से भी तस्दीक न हो गयी हो । मुझे इसी संदर्भ में एक पुरानी घटना याद आ रही है । बात बड़ी पुरानी है , तब मैं राजनांदगांव जिले की डोंगरगढ़ तहसील में में एस.डी.एम. के रूप में पदस्थ था और मेरे कलेक्टर थे अजय नाथ जो मध्यप्रदेश के अपर मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत हुए हैं ।

उन दिनों डोंगरगढ़ नया नया अनुविभाग बना था । मैं तब कुंवारा ही था , तो एक नए बने जी टाइप के मकान में ही मैंने अपना निवास बना लिया । मेरे पड़ोस में डोंगरगाँव के विधान सभा के विधायक हीराराम वर्मा का निजी निवास था । वर्मा जी यदा कदा हमें चाय पानी का पूछते रहते थे और कभी कभार राजनांदगाँव मीटिंग में जाने पर अपनी फिएट कार में लिफ्ट भी दे देते । उन दिनों सूखा राहत के कार्यों का बड़ा ज़ोर रहा करता था । सूखा घोषित होने पर , विकास कार्यों का बहुत सारा कार्य इसी मद से संपन्न होता था । इस वजह से और और भी अनेक वजहों से आनावारी यानि कुल फसल कितने प्रतिशत पैदा हुई है इसका निर्धारण अनेक शिकायतों , दबाओं और परीक्षणों से होता था । उन दिनों ज़िलों में शासकीय कार्यों की निगरानी के लिए एक समिति हुआ करती थी जिसे बीस सूत्रीय समिति कहते थे ।

एक बीस सूत्रीय समिति की बैठक इसी दौरान हुई , जिसमें फसल प्रयोगों की रिपोर्ट पर चर्चा होनी थी । बैठक की सुबह मुझे वर्मा जी ने कहा कि चलिए आप भी साथ राजनांदगांव जाना हो तो । इतने प्यार से लिफ्ट मिल रही थी तो मैंने ले ली , बैठक में जब फसल आनावारी की बात शुरू हुई तो वर्मा जी बोले की मेरी विधान सभा क्षेत्र में तो फसल कटाई प्रयोग हुए ही नहीं हैं , पटवारियों ने अपने मन से कागज में पैदावार लिख दी है और फसल तो ख़राब हो चुकी हैं जिन्हें अच्छा बता दिया है , राहत काम नहीं खुल पाएंगे ,आदि आदि । मै अवाक् देख रहा था कि रास्ते में बड़े प्यार से इधर उधर की बातें करने वाले इन सज्जन ने ये बात तो मुझे रास्ते में बताई ही नहीं । मैंने प्रतिरोध किया पर माहौल बन चुका था । कलेक्टर ने कहा कि सुबह एक दल के साथ जाकर मौक़ा निरीक्षण होगा जिसमें विधायक भी होंगे ।

दुसरे दिन हम सब गाड़ियों में भर के पूरे अमले समेत करीब पांच सात प्रमुख गाँव में गए , जहाँ जहाँ हम जाते , नेता जी पूछते गाँव वाले बताओ क्या पटवारी गाँव में आया था , क्या तुम्हारे खेत में ये फसल कटवाई गई उनके सामने ? नहीं , नहीं नहीं । बस यही प्रतिउत्तर सुनने मिलता । मुझे बड़ा गुस्सा आया , दौरा ख़त्म होने के बाद मैं बड़े क्रोध और निराशा में अपने कार्यालय पहुंचा , सारे सम्बंधित स्टाफ को तलब किया जिनकी ड्यूटी थी उन्हें भी और जिन्हें निगरानी करना था उन्हें भी । सब समवेत स्वरों में कहते रहे की वे सब बाकायदा गए थे और प्रयोग भी हुए हैं पर मैं तो खुद देख के आया था , मैंने सबके ख़िलाफ़ रिपोर्ट बनायी और लेकर सुबह सुबह कलेक्टर के बंगले पर पहुँच गया । अजय नाथ साहब जैसे ही बाहर निकले मैंने उन्हें रिपोर्ट की प्रति दिखाते हुए कल का वाकया बयान किया और अत्यंत गुस्से में कहा कि सर बड़ी लापरवाही की है इन लोगों ने मैं इन सभी लोगो के निलम्बन का प्रस्ताव लाया हूँ ।

अजय नाथ साहब ने मुझे देखा और बोले क्यों निलंबन करना चाहिए इनका ? तो मैंने कहा सर इन्होने गंभीर लापरवाही की है , वे बोले तो फिर तो तुम्हे ही क्यों न निलंबित कर दूँ मैं ? मैं सन्न रह गया । फिर वे बोले “देखो कल तुम भीड़ के बीच सबके साथ गए थे और भीड़ में जो वार्तालाप हुआ उसे ही तुम सच समझ ये जांच ले आये हो तुमने वाकई जांच तो की ही नहीं है , ये भी तो लापरवाही हुई “ । तुम पुनः स्वतन्त्र रूप से गाँवों में जाओ , खेत देखो , पूछताछ करो और तब यदि पाओ कि वाकई पटवारी की गलती है तो निलंबित क्यों नौकरी से सीधे बर्खास्त करेंगे । मैं फिर लौट वापस उन्ही सब गाँवों में गया , लोगों को बुलाया , और पूछताछ की ।

सबने कहा हाँ पटवारी आया था और कटी फसल भी सुखाने अलग रखाई थी । मैंने चकित होकर पूछा तो फिर कल जब हम आये थे और पूछा था तो बताया क्यों नहीं ? छत्तीसगढ़िया आदमी सीधा होता है , बोले अरे हुजुर सब कह रहे थे कि ऐसा बोल दोगे की पटवारी नहीं आया था तो गाँव में नया तालाब बनेगा , पड़ोस के गाँव की सड़क बन जाएगी तो हम कह दिए । मैंने बयान लिए रिपोर्ट बनाई और जब दुसरे दिन अजय नाथ साहब से मिला तो पूरा विवरण सुनने के बाद बोले “देखा मैं न कहता था केवल एकबारगी देखे सुने से यकीन न कर लो अपने तईं खुद तस्दीक कर लो” ये सबक जो मेरे सौभाग्य से मुझे बहुत पहले मिल गया वो मैंने ऐसा गाँठ बांधा है कि आज भी याद रखता हूँ ।