रविवारीय गपशप – ‘इंदौर जो पूरे प्रदेश के लिए जिज्ञासा का विषय था वहाँ से पुष्यमित्र सवा लाख मतों से जीते हैं।’

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बीते सप्ताह नगरीय और ग्रामीण निकायों के चुनावों के परिणाम मतगणना के पश्चात घोषित हुए , और जनता ने अपनी दैनन्दिन समस्याओं के निराकरण के लिए अपने प्रतिनिधि चुन लिए हैं । इंदौर जो पूरे प्रदेश के लिए जिज्ञासा का विषय था वहाँ से पुष्यमित्र सवा लाख मतों से ज़्यादा से जीते हैं । नगरीय निकायों में इन चुनावों में ई.व्ही.एम. का इस्तेमाल किया गया था , जिससे गणना में भी आसानी हुई और अस्वीकृत मतों से होने वाली झंझट से छुटकारा भी मिला , वरना जब मतपत्रों पर वोटिंग होती थी , तो रिजेक्टेड मतों पर होने वाले विवादों की स्थिति बड़ी विकट होती थी । इसी संदर्भ में मुझे इंदौर के सन 2009 के चुनावों की याद आ रही है , जब महापौर के पद पर कृष्ण मुरारी मोघे और पंकज संघवी के बीच बड़ा कड़ा मुक़ाबला था और मतदान मतपत्रों पर हुआ था । उन दिनों मैं इंदौर में अपर कलेक्टर के पद पर पदस्थ था और कलेक्ट्रेट में स्थानीय निर्वाचन का कार्य कलेक्टर की ओर से देखा करता था । काँटे की टक्कर वाले इस चुनाव में मतदान निर्विघ्न सम्पन्न हो चुका था और अब मतगणना की बारी थी ।

परम्परागत रूप से होने वाली मतगणना के स्थल नेहरू स्टेडियम में व्यवस्था के निरीक्षण के लिये कलेक्टर राकेश श्रीवास्तव , एस.एस.पी. विपिन माहेश्वरी और नगर निगम कमिश्नर सी.बी. सिंह के साथ हम सदलबल पहुँच गए । मतगणना स्थल पर गिनती की व्यवस्था कमरों में ही सीमित थी जहाँ विधानसभा की मतगणना हुआ करती थी । दस लाख से ज़्यादा मतपत्रों को गिनने में तो दो दिन से ज़्यादा समय लगने वाला था । चुनाव में मतगणना दलों का प्रबंध आदि मेरे ही ज़िम्मे आना था । मैंने अनुमान लगाया कि लगातार गिनती भी करें तो भी तीन शिफ़्ट के लिए तैय्यार दल छत्तीस घण्टों से ज़्यादा समय तक मतपत्र गिनेंगे । बिना किसी आराम के दल तो काम करने को फिर भी तैय्यार कर लें पर कलेक्टर , एस. पी. और बाक़ी अधिकारी तो उतने ही रहेंगे । मुझे एक उपाय सूझा , मैंने कलेक्टर से कहा कि क्यों न एक बड़ा टेण्ट लगाया जाये और 85 वार्डों के लिए अलग अलग टेबल लगा दी जायँ । पहले तो वे झिझके और बोले काउंटिंग प्लान तो आयोग को भेजा जा चुका है और इतना बड़ा टेण्ट कौन लगाएगा ? मैंने कहा कि आप जैसे सक्षम कलेक्टर और सी बी सिंह जैसे कुशल कमिश्नर नगर निगम के रहते ये असम्भव नहीं है , आप मेरी बात मानो एक दिन में गिनती पूरी हो जाएगी ।राकेश श्रीवास्तव ने वहीं से आयोग के अध्यक्ष से मोबाइल पर बात कर स्थिति बयान की और उन्होंने संभवतः कहा कि आप संशोधित प्रस्ताव भेज दो । राकेश श्रीवास्तव बोले अब तुम्हारी और दद्दू की बारी है , तैय्यारी करो । चतुर्भुज सिंह साहब को सब या तो सी.बी. बोलते थे या दद्दू । दद्दू नाम उन्हें इंदौर के तत्कालीन कलेक्टर सुलेमान साहब ने दिया थ। मैंने पहला पड़ाव तो जीत लिया था , पर अब बड़ा और महत्वपूर्ण काम बाक़ी था ।

कुछ दिनों बाद ही मतगणना थी , काम युद्ध स्तर पर प्रारम्भ हुआ और नगर निगम के द्वारा एक विशालकाय वाटर प्रूफ़ टेण्ट स्टेडियम में लगा दिया गया । आश्चर्य की बात यह थी कि यह वृहद् कार्य एक ऐसे ठेकेदार ने किया था , जो इस फ़ील्ड में एकदम नया था । जब टेण्ट बन कर तैय्यार हो गया और हम मतगणना दलों के प्रशिक्षण पूर्व उसे देखने आये तो सी.बी. सिंह साहब बोले ये तो इलाहाबाद के माघ मेले सा दृश्य लग रहा है । निर्धारित तिथि पर मतगणना प्रारम्भ हुई और थोड़ी ही देर में ज़ाहिर हो ग़या कि लगभग हर टेबल पर कश्मकश की स्थिति थी , ख़ास कर अस्वीकृत मतों को लेकर । संयोग से आयोग के निर्देश ऐसे मतों के लिए बड़े स्पष्ट थे , तथा मैं और मेरे साथी अपर कलेक्टर प्रकाश जांगरे हर टेबल पर स्वयं जाकर ऐसे मसले देख रहे थे , तो जद्दोजहद के बावजूद शांति बनी रही और रात दस बजे तक मतगणना समाप्त हो पायी । लगभग चार हज़ार मतों से मोघे चुनाव जीत रहे थे और अस्वीकृत मतों की संख्या थी , लगभग पचास हज़ार । बड़ा ही गहमागहमी का माहौल था , इस बीच कांग्रेस के उम्मीदवार पंकज संघवी की ओर से पुनर्गणना का आवेदन दिया गया । कलेक्टर राकेश श्रीवास्तव ने व्यवस्था में लगे हम सभी प्रमुख अधिकारियों को बुलाया , और आवेदन के बारे में हमारी राय जानी । मैंने कहा क़ानूनी स्थिति तो स्पष्ट है , कि हर राउण्ड की गणना के बाद मतगणना टेबल पर बैठे पार्टी के एजेण्ट को टेबल के तथा सहायक रिटर्निंग अधिकारी के टेबल पर बैठे एजेण्टों को चक्र के परिणाम सौंपे गये हैं कि यदि कोई आपत्ति हो तो बता सकें । मतगणना पूरी होने तक किसी चक्र के बारे में कोई आपत्ति नहीं आयी थी , इसलिए चाहें तो पुनर्गणना की माँग क़ानूनी रूप से ठुकराई जा सकती थी । बाक़ी लोगों ने भी अपने विचार रखे । श्रीवास्तव साहब ने सबकी बात ध्यान से सुनी और फिर पूछा ये बताओ रिजेक्टेड वोट सही रिजेक्ट हुए हैं ? मैंने कहा कि नब्बे प्रतिशत रिजेक्टेड वोट तो मैंने हर टेबल पर खुद देखे हैं और वे सौ फ़ीसदी सही निरस्त हुए हैं ।

राकेश श्रीवास्तव ने सबकी सुनी , कुछ देर मौन रह कर सोचते रहे , फिर बोले ठीक है आप लोग जाओ । थोड़ी देर बाद ही कलेक्टर ने निरस्त मतों की पुनर्गणना की घोषणा कर दी । कांग्रेस पक्ष के लोग बड़े उत्साह में थे क्योंकि यही तो वे चाहते थे । उन्होंने अगली माँग की कि सारे अस्वीकृत मत एक ही टेबल पर लाकर गिने जाएँ । राकेश श्रीवास्तव साहब ने मेरी ओर इशारा किया कि इसके लिए आनन्द ही निर्णय लेंगे । सारे के सारे नेताओं ने मुझे घेर लिया । मैंने धैर्य सहित इन्हें बताया कि गणना चूँकि टेबल वार होती है अतः पुनर्गणना भी टेबल वार ही होगी उसे एक जगह लाकर गिनना न तो व्यावहारिक है ना नियमानुसार ।

माइक पर घोषणा की गयी कि आधे घंटे में हर टेबल पर निरस्त मत पुनः गिने जाएँगे । और रात को दो बजते बजते पुनर्गणना के परिणाम आ गए । मात्र तीन मत दूसरे उम्मीदवार अर्थात् पंकज संघवी के पक्ष में गए थे और चार हज़ार के क़रीब मतों से मोघे की जीत सुनिश्चित हो चुकी थी । ब्रम्ह मुहूर्त में सुबह विजयी प्रत्याशी को जीत का प्रमाण पत्र वितरित कर हम सब अपने घरों को रवाना हुए । दूसरे दिन शहर और प्रदेश में प्रशासन और आयोग की निष्पक्षता की चर्चायें हर जगह हो रही थीं , और कलेक्ट्रेट में कलेक्टर चेम्बर में बैठे हम सब राकेश श्रीवास्तव को शांति से सम्पन्न चुनावों की बधाई दे रहे थे कि दिसम्बर माह होने पर भी अचानक मेघ घिर कर झमाझम बरसना शुरू हो गए । हमें लगा मानो प्रकृति ने भी हमारे प्रयासों पर अपने फ़ैसले से संतोष की मुहर लगा दी थी।