ट्रांसफ़र पर नये ज़िले में गए हों या पदस्थापना के दौरान किसी काम से कहीं जाना पड़े रात रुकने के लिए सरकारी गेस्ट हाउस के तौर पर पी.डब्ल्यू.डी. विभाग के रेस्ट हाउस ही हमारे काम आते हैं। प्रशिक्षण अवधि में ट्रेनिंग हेतु मुझे पहली पदस्थापना में राजनांदगाँव जिले के कवर्धा ब्लॉक में जो अब छतीसगढ़ प्रदेश में जिला हो चुका है , बी.डी.ओ. के पद पर पदस्थ किया गया। मैंने एस.डी.ओ. साहब से दरख्वास्त की कि मुझे कहीं रहने की व्यवस्था करा दें।
एस.डी.ओ. साहब ने उसी समय तहसीलदार से व्यवस्था करने को कह दिया। तहसीलदार साहब ने, जो कि कुछ अधपकी उम्र के थे, मुझे अपनी मोटर साइकल पर बिठाया और कवर्धा के रेस्ट हाउस में ले आये। स्टेट टाइम के बने उस रेस्ट हाउस को देखकर मैं घबरा गया। मैंने कहा यहाँ तो किसी की हलचल भी नहीं दिख रही है, आप तो मुझे कहीं ऐसी जगह रुका दो जहाँ खाने-पीने की आसानी से व्यवस्था हो जाए। उन्होंने कुछ सोचा कहा चलिए। मैं साथ चल दिया , थोड़ी देर बाद हम बसस्टैंड पर आ गए कवर्धा बसस्टैंड के सामने ही एक रेस्ट हाउस था उसके एक कमरे में रुकने की व्यवस्था हो गयी , खाने और चाय पानी के लिए सामने बसस्टैंड पर ही ढेर होटल थी।
मैं बड़ा खुश होकर उन्हें धन्यवाद कर कमरे में जम गया । खाना खाने के बाद रात को सोने का समय आया तो प्रतीत हुआ कि बाकी तो सब ठीक है पर सोते ही बसों के तरह तरह के हॉर्न के कारण मुश्किल से नींद आयेगी। जैसे तैसे सुबह होते होते नींद लगी ही थी कि 6 बजे से किसी ने जोर जोर से दरवाजा पीटना आरंभ कर दिया । मैं झुंझला कर उठा कि इतने सबेरे कौन आ गया। दरवाजा खोला ही था कि बिना कुछ कहे सुने एक सज्जन मुझे ठेलते हुए अन्दर आये और टॉयलेट में घुस गए , मैं बड़ा ही नाराजगी में बाहर उनके निकलने की प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर बाद जब वो बाहर आये तो मैंने नाराजगी से उनसे पूछा कि आप कौन हो ?
बोले “यात्री हैं, फलां बस से जाना है जोर से लगी थी तो आ गए हम तो अक्सर यहाँ आते ही रहते हैं “, मैंने जैसे तैसे खुद को सम्हाला और उन्हें बाहर जाने के लिए कहा , और भुनभुनाता हुआ फिर लेट गया। अभी कुछेक पंद्रह मिनट ही हुए थे कि फिर किसी ने दरवाजा खटखटाया मैं फिर उठा और धीमे से दरवाजा आधा ही खोला तो देखा एक पति-पत्नी अपने छोटे से बच्चे के साथ खड़े थे। मैंने हैरानी से उन्हें देखा और इसके पहले कि कुछ पूछूं उन्होंने अधखुले दरवाजे से बच्चे को सरकाते हुए कहा देखना बेटा जल्दी से हो ले अंकल को तकलीफ़ न हो। उस दिन तैयार होकर सबसे पहले मैं तहसीलदार साहब से मिला और उनसे कहा कि ये आपने मुझे कहाँ ठहरा दिया ? बोले आपने ही तो कहा था कि चाय नाश्ता, ख़ाना पीना आसानी से मिल जाये और सुबह उठने का शर्तिया इन्तिजाम हो जाये तो ये जगह ऐसी ही है। मन ही मन उन्हें प्रणाम कर मैंने एस.डी.ओ. साहब दूसरी जगह रुकने का इंतिज़ाम किया।
कवर्धा के बाद मुझे बोड़ला विकास खंड का चार्ज मिल गया। बोड़ला छोटा सा क़स्बा था और वहाँ रेस्ट हाउस पर किसी क़िस्म की तकलीफ़ नहीं थी , सो ये ये परिवर्तन मुझे बड़ा मुफ़ीद लगा। बी.डी.ओ. आफ़िस बाज़ार में ही था सो दिन के खाने की तो कोई समस्या थी ही नहीं, और रात को मैं रेस्ट हाउस से पैदल बस स्टैंड खाने के लिए आ जाया करता था। एक दिन मुझे ब्लॉक के सब-इंजीनियर ने रात्रि में बस स्टैंड के रास्ते में देख लिया, देख कर गाड़ी रोकी और पूछा “ इतनी रात को कहाँ जा रहे हो “? मैंने बताया कि ख़ाना खाने बस स्टैंड जा रहा हूँ, उसने मुझे अपनी मोटर सायकल पर बिठाया और बस स्टैंड पर खाने की दुकान पर ले गया, ख़ाना खाने के बाद वापस जब रेस्ट हाउस छोड़ा तो मुझसे कहने लगा आप रात को पैदल बस स्टैंड मत जाया करो, ये जंगल से लगा इलाक़ा है और रात को यहाँ बाघ का मूवमेंट रहता है। आपको लगे तो मैं रोज़ आपको टिफ़िन भिजवा दिया करूँगा। मुझे लगा सलाह तुरंत मानने योग्य है, और मैंने उन्हें धन्यवाद देते हुए अपनी सहमति दे दी।