सुमित्रा महाजन ने दी महापौर की परिभाषा, बोली- महापौर ऐसा हो जो सभी के साथ समन्वय कर सके

Akanksha
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इंदौर। इंदौर हमेशा से एक अच्छा उदाहरण देते हुए आया है। शहर की विभिन्न सामाजिक संस्थाओं का सरोकार शहर के जनप्रतिनिधियों से हमेशा रहा है। निगम में कई गांवों को शामिल किया गया है। अत: निगम में जो नए नियम, अधिनियम बने, उसकी जानकारी महापौर सहित सभी पार्षदों को होना चाहिए। हमारी नई परिषद ऐसी हो जो शहर की सामाजिक संस्थाओं और आम नागरिकों के साथ विकास से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के बाद ही उस कार्य क अंतिम रूप दें। आने वाले समय में इंदौर नगर निगम में कई संस्थाएं जुड़ जाएंगी और उसका दायरा और उसका बजट भी बढ़ जाएगा। अत: हमें ऐसा महापौर चाहिए जो क्वालीफाइड होने के साथ-साथ सभी विभागों के साथ समन्वय कर सके। महापौर को राजनीति से उठकर जनता से बात कर योजनाओं पर कार्य करना चाहिए। यह विचार पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन के हैं, जो उन्होंने संस्था सेवा सुरभि और इंदौर प्रेस क्लब द्वारा इंदौर नगर निगम चुनाव – 2021 को लेकर कैसी हो परिषद हमारी? विषय में परिचर्चा पर अध्यक्षीय उद्बोधन बतौर व्यक्त किए।
महाजन ने अपने सारगर्भित भाषण में इंदौर नगर निगम के कत्र्तव्य और अधिकारों को रेखांकित करते हुए कहा कि हमारा पार्षद क्वालीफाइड होने के साथ सेवाभावी भी होना चाहिए और उसे अपने वार्ड के बारे में जानकारी भी होना चाहिए। नर्मदा का पानी हमें एक लीटर कितने में मिल रहा है और हम उसे जनता को कितने में दे रहे हैं, यह भी जनता को बताना चाहिए, यह कार्य पार्षद का है और उसे रेवेन्यू जनरेट करने के लिए नगर निगम का सहयोग करना चाहिए। आने वाली परिषद नकारात्मक सोच के साथ नहीं सकारात्मक सोच के साथ अपनी शुरुआत करे। इंदौर के हित में सोचने वाली प्रेस, सामाजिक संस्थाएं उनके पास अब डेढ़-दो माह ही बचे हैं नई परिषद के चुनाव होने में। इसलिए हमें यह राजनीतिक दलों को बताना होगा कि हमें अपना पार्षद कैसा चाहिए, हमें इस बात पर बल देना होगा कि हमारा प्रतिनिधि ईमानदार हो। यह दबाव बनने पर राजनीतिक दलों को भी इस बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा। इंदौर की जनता से जिसका संवाद रहेगा वही हमारा पार्षद होगा।
विषय प्रवर्तन करते हुए उच्च न्यायालय के अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि इंदौर एक ऐसा शहर है, जहां 1870 में पहली बार नगर संरचना बनी। 1906 में पहली बार बिलावली तालाब का फिल्टर प्लांट बना और 1912 में यहां के लोगों ने चुनकर नगर पालिका का गठन किया। 1956 में नगर पालिका से वह नगर निगम बनी। श्री भार्गव ने आगे कहा कि इंदौर में सबसे पहले ग्लोबल सिटी का कान्सेप्ट आया,जहां पर आईआईटी के साथ आईआईएम दोनों हैं। यह शहर शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र भी है। इंदौर का रेवेन्यू कैसे बढ़े, हाईराईज बिल्डिंगों का डेवलपमेंट कैसा हो? और टेंडर प्रक्रिया कितनी पारदर्शी हो, इसकी चिंता नई परिषद और महापौर को करना जरूरी है। नई परिषद को इंदौर की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन के बारे में भी विस्तार से प्लान करना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि हमारा शहर 550 किलोमीटर में फैला है, जहां सैकड़ों गलियां है और इसकी आबादी 40 लाख के करीब है। अत: इतने बड़े शहर के विकास के लिए हमारे महापौर के पास विकास का बेहतर विजन होना चाहिए। जो नगर पालिका अधिनियम है, उसी के माध्यम से परिषद का संचालन हो सकता है तो उसी को दृष्टिगत रखते हुए हमें अपने नगर परिषद चुनना है। एक शहर की परिषद वहां की सरकार होती और महापौर वहां एक तरह से सीएम होता है। यह परिषद कैसे कार्य करेगी यह सबसे महत्वपूर्ण है। पुरानी सेक्शन 37 के अधिकारों को समझने वाला कोई व्यक्ति मेयर इन कौंसिल के हिसाब से कार्य नहीं करते है तो उस कमिश्नर को हटाने का अधिकार है। परिषद का संचालन और परिषद की सोच ये दोनों कैसे संभव हो यह महत्वपूर्ण विषय है।
इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने स्वागत भाषण में कहा कि इंदौर शहर ने स्वच्छता में लगातार चार बार नंबर वन का खिताब हासिल किया है और इसके अलावा भी कई तरह के विकास के कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इन सबके बावजूद यह देखने में आया कि जनतंत्र में जनता की आवाज और उनकी सहभागिता की तरफ ध्यान देने में निगम परिषद का रवैया कम सकारात्मक रहा। इंदौर के विकास में ताई का हमेशा से सकारात्मक सहयोग और योगदान रहा है। नई परिषद में भी ताई का मार्गदर्शन लिया जाना चाहिए। शहर के विकास में सामाजिक संस्थाओं का हमेशा से योगदान रहा है। नगर निगम चुनाव को लेकर कैसी हो परिषद हमारी विषय पर यह परिचर्चा सेवा सुरभि और इंदौर प्रेस क्लब द्वारा रखी गई है।
वरिष्ठ भाजपा नेता गोविंद मालू ने कहा कि शहर में विकास की संभावनाएं और क्षमताएं दोनों ही बहुत हैं, आवश्यकता है उसे निखारने की। शहर की बेहतरी के लिए हमें ऐसी निगम परिषद चाहिए, जहां पर बैठा व्यक्ति राजनीति और पूर्वाग्रहों से उठकर विकास के कार्य करे। नई परिषद में अच्छे पार्षद चुनकर आएं और उन्हें परिषद को यह बताना चाहिए कि उनके क्या कार्य है, और क्या अधिकार हैं। राजस्व एकत्रीकरण में भी पार्षद को नगर निगम का सहयोग करना चाहिए। हर कार्य के लिए समय सीमा निर्धारित करना चाहिए। स्मार्ट सिटी के साथ स्मार्ट सिटीजन इस शहर का नारा होना चाहिए।
पूर्व विधायक सत्यनारायण पटेल ने कहा कि नगर निगम को एक ऐसा ऐप बनाना चाहिए जिसमें आम जनता से जुड़े सभी कार्यों का उल्लेख हो। सभी वार्डों में हॉकर जोन बने। मास्टर प्लान लागू करने से पहले नई परिषद को चाहिए कि वह बुद्धिजीवियों से विचार-विमर्श के बाद ही परिषद द्वारा अनुमोदित होने के बाद ही उसे लागू किया जाए।
पूर्व महापौर उमाशशि शर्मा ने कहा कि हमारी परिषद को आम जनता से जुडऩे के लिए सबसे पहले तो मीडिया के साथ बैठकर संवाद करे। साथ ही शहर के प्रबुद्धजनों के साथ बैठकर जो योजनाएं आती है, उस पर इनकी राय लेना चाहिए। हर माह में प्रत्येक वार्ड में एक महापौर परिषद लगे और उस वार्ड की समस्याओं को हल करे। परिषद को महापौर पर भी कंट्रोल रखना चाहिए, ताकि शहर का विकास सही दिशा में हो सके। शहर की सबसे बड़ी समस्या जल और ड्रेनेज है, अत: इन दोनों का अलग से विभाग होना चाहिए, ताकि आमजन अपनी समस्याओं का समाधान एक विशेष स्थान पर जाकर करवा सके।
निगम सभापति अजयसिंह नरूका ने कहा कि हमारी परिषद ने स्वच्छता में बहुत कार्य किया है और इंदौर देश में चार बार नंबर वन आया है। यातायात सुधार में भी इंदौर आगे है। वर्ष 2004-05 में एक शहरी विकास के लिए एक सेटअप बना था, जिसमें तमाम तरह की चुनौतियां भी थीं। इन सभी को नियंत्रित करने के लिए इस सेटअप प्लान को तत्कालीन लोक प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने पूरे प्रदेश में क्रियान्वित किया था। परिषद अधिकार संपन्न होना चाहिए, यदि सारे कार्य करने में आसानी हो। स्मार्ट सिटी में नगर पालिका निगम मात्र सिर्फ नोडल एजेंसी है, जिसमें अधिकार सीमित हैं। इंदौर को आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने के लिए नगर निगम में रेवेन्यू कैसे जनरेट हो, इसके लिए नई परिषद को समग्र दृष्टि से चिंतन करना होगा। सारे अधिकारी किसी एक व्यक्ति के पास न होकर उनका विकेंद्रीकरण होना चाहिए। निगम में संसाधनों की भी कमी है, जिसमें आत्मनिर्भरता की आवश्यकता है।
वरिष्ठ पार्षद छोटे यादव ने कहा कि शहर के विकास की जवाबदारी किसी एक विशेष राजनीतिक दल की नहीं होकर सभी दलों की है। हमारे पार्षद विकास कार्य करना चाहते हैं, किंतु अधिकारी नियमों की आड़ लेकर कार्य नहीं करने देते। शहर में नाला टेपिंग के नाम पर करोड़ों रुपए के कार्य हमारे अधिकारी कर रहे हैं, जिसमें बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार भी हो रहा है, लेकिन जानकारी के अभाव में निगम परिषद उसे रोक नहीं पाती। हमारे यहां कई योजनाएं कागजों पर क्रियान्वित हो रही हैं और इसकी जानकारी भी पार्षदों को नहीं लग पाती। सारा दोष पार्षद में नहीं होता सिस्टम कहां जा रहा है यह देखना चाहिए। नगर निगम में अधिकारी  किस क्षेत्र का विशेषज्ञ है और कार्य क्या कर रहा है। इसके लिए जनप्रतिनिधि के साथ ही अधिकारियों की भी जवाबदारी तय होना चाहिए। परिषद में सिर्फ मोहर लगाना होता है इसके लिए कोई भी दल की परिषद हो। सभी राजनीतिक दलों को तय करना चाहिए कि वे टिकट किसे दें। पार्षद का टिकट पढ़े-लिखे और विशेषज्ञों को देने की जिम्मेदारी राजनीतिक दलों की है। दोनों दलों को चाहिए कि अपने प्रतिनिधि को बैठाकर बताए कि आपका काम है सिर्फ अपने वार्ड का विकास करना और उन्हें परेशानी आने पर उनका मार्गदर्शन करना चाहिए।
पार्षद टीनू जैन ने कहा कि निगम जोन की बजाय वार्ड स्तर पर कार्यालय बने, जिससे आम जनता को अपने कार्य कराने में सहूलियत रहे और उनके काम वार्ड कार्यालय पर ही हो जाएं। नई परिषद ऐसी होना चाहिए जहां विकास और सुधार के लिए भी विरोध हो तो उसे स्वीकार करना चाहिए।
पद्मश्री भालू मोंढे ने कहा कि इंदौर में अभी काफी हेरीटेज बिल्डिंग का रिनोवेशन हो रहा है, जिसमें राजबाड़ा, गोपाल मंदिर, गांधी हॉल और लालबाग शामिल हैं। जिला कोर्ट भी यहां से जा रहा है, इसके जाने के बाद यहां क्या किया जाएगा इस बारे में कोई सोचता ही नहीं, इसकी जानकारी आम जनता को भी नहीं है। नगर परिषद को इन सब बातों को जनता के सामने रखना चाहिए। शहर की धरहर के रिनोवेशन में कितना बजट लग रहा, इसकी डिजाइन कैसी है आदि बातों की जानकारी आम जनता को भी होना चाहिए। शहर के विकास के लिए स्थानीय कलाकारों विशेषज्ञों से बातचीत कर इसकी प्लानिंग करना चाहिए। शहर में पेड़ों की गिनती तो होती हैं, कितने पेड़ लगना है यह घोषणा भी हो जाती है, लेकिन लगे कि नहीं इसक कोई मॉनिटरिंग नहीं होती है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता ईश्वर बाहेती  ने कहा कि शहर में विकास की गंगा तब बही जब महापौर श्री कैलाश विजयवर्गीय थे। इसके पहले शहर में सड़कों पर धूल उड़ती थी, आज पूरा शहर स्वच्छ है। शहर में सीमेंट की सड़कों का विकास हुआ है। सिटी बसों का संचालन अच्छा हो रहा है, लेकिन उसकी व्यवस्था ऐसी हो कि आम आदमी अपने निजी वाहन की जगह सिटी बस से जाने की सोचने लगे। बस का परिचालन ऐसा हो कि जिसकी जानकारी आम नागरिकों मिले, ताकि उनकी यात्रा सुगम व सरल हो। शहर में कुछ स्थान ऐसे भी होना चाहिए जहां पूरे शहर के लिए बसें उपलब्ध हों।
सामाजिक कार्यकर्ता अशोक कोठारी  ने कहा कि इंदौर की पहली परिषद ने 1925 में पेट्रिक गिडिस ने पहले मास्टर प्लान की योजना बनाई थी। नगर पालिका ने कपड़ा मिलों की स्थापना में बहुत योगदान दिया है, आज सभी मिलें बंद हैं। अत: मिलों की खुली पड़ी जमीनों का सदुपयोग शहर के इन्फ्रास्ट्रक्चर में किया जाना चाहिए। इंदौर नगर निगम को महानगर घोषित किया जाए इसके लिए ट्रैफिक इंजीनियरिंग की बहुत जरूरत है। हमें शहर को स्वच्छता में नंबर वन बनाने के साथ ट्रैफिक में भी नंबर वन बनाना होगा। शहर के अमन-चैन और शांति में नागरिकों का उपयोग करना चाहिए। नगर निगम में एक स्वागत कक्ष होना चाहिए जहां वरिष्ठजन बैठने की सुविधा और इन्हें संबंधित कार्य के लिए पूरी जानकारी मिल सके।
सामाजिक कार्यकर्ता रामेश्वर गुप्ता ने कहा कि श्री कैलाश विजयवर्गीय ने महापौर होते हुए प्रदेश सरकार से सामंजस्य बैठाकर इंदौर का विकास किया, यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। पीपीपी के माध्यम से शहर का विकास हो ऐसी सूझ-बूझ भी हमारे प्रतिनिधियों में होना चाहिए। नई परिषद जनभागीदारी के साथ जोनल प्लान बनाकर विकास कार्य करे।
वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने कहा कि नई परिषद में क्या नहीं होना चाहिए इसकी भी हमें चिंता करना है। जैसे पूर्व महापौर निगम कार्यालय में बहुत कम उपलब्ध रहीं, लेकिन शहर में राजनीति करती रहीं। हमें ऐसी परिषद नहीं चाहिए कि शहर को सुंदर तो बनाए, लेकिन उजाड़े गए लोगों पुनर्वास के लिए काम नहीं करे। ठेलों वालों को तो हटा दिया जाए, लेकिन उनके लिए हॉकर जोन व्यवस्था नहीं की। निर्माण के नक्शे तो धड़ल्ले से पास करे, लेकिन निर्माण कैसा हुआ इसकी मॉनिटरिंग नहीं हुई। बैसमेंट में पार्किंग की जगह दुकाने बन गई। निगम में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दलों का महापौर रहा, लेकिन दोनों ही दल एक महापौर कक्ष का निर्माण नहीं कर पाए। महापौर को आम जनता को समय देना चाहिए।
मालवा चेंबर्स ऑफ कॉमर्स के सुरेश हरियाणी ने कहा कि ट्रैफिक की सबसे बड़ी समस्या है वह नगर निगम की जिम्मेदारी बनती है। ठेले वालों और खोमचे वालों से पूरा ट्रैफिक गड़बड़ हो जाता है। नई परिषद को चाहिए कि इन दोनों के लिए अलग से व्यवस्था करे।
सामाजिक कार्यकर्ता राजेश बिड़कर ने कहा कि महापौर परिषद ऐसी होना चाहिए कि प्रत्येक वार्ड में हॉकर जोन बने। जिससे करीब 20 हजार ठेले और खोमचों वालों की समस्या का समाधान हो सकता है।
पूर्व पार्षद पद्मा भोजे ने कहा कि हमारी परिषद ऐसी हो, जो 50 साल की सोच के साथ काम करे। सारा काम कम्प्यूटरीकृत होना चाहिए, जिससे शहर में कौनसा कार्य कहां हुआ है, कहां से कौनसी लाईन गई है, वह एक क्लिक में सामने आना चाहिए। शहर में पानी के लिए आरो के प्लांट होना चाहिए, जिससे आम जनता नाममात्र के शुल्क का भुगतान कर स्वच्छ जल प्राप्त कर सके। परिषद और महापौर की सोच जनता के हित में होना चाहिए।
मुरली दम्मानी ने कहा कि परिषद में जो भी हमारे द्वआरा पार्षद या महापौर चुना जाए वह राजनीति से ऊपर उठकर काम करें। परिषद में बैठक में मुद्दों से भटककर हंगामे होते हैं और बैठक मूल मुद्दों से भटककर राजनीतिक रूप ले लेती है। परिषद में ऐसी स्थिति न बने इसके लिए सभी को आम सहमति से कार्य करना चाहिए। शहर के राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे शहर के विकास के लिए सोचे न की अपने स्वार्थ के लिए।
स्कूल पैरेंट्स एसोसिएशन अध्यक्ष अनुरोध जैन ने कहा कि स्कूल ऐसा विषय है जो नगर निगम में नहीं आता है। परिषद को एक पायलेट प्रोजेक्ट लाकर सरकारी स्कूलों का पुनरुद्धार किया जाए, ताकि गरीब वर्ग के बच्चे भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें। मोहल्ला क्लीनिक हर वार्ड में होना चाहिए। देर रात तक कामकाजी महिलाएं काम कर सकें, उनकी सुरक्षा की चिंता नई परिषद को करना चाहिए। शहर में कैमरे लगाकर सुरक्षित इंदौर, सुरक्षित वार्ड से शुरुआत करना चाहिए।
उद्योगपति प्रमोद डफरिया ने कहा कि नई परिषद में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी को इतना स्ट्रांग किया जाए कि नागरिकों की समस्या से जुड़ी ऑनलाइन रिक्वेस्ट का तत्काल समाधान हो सके। जैसे पानी की अनउपलब्धता पर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी के माध्यम से वहां टैंकर पहुंच सके। आम आदमी को हर कार्य के लिए पार्षद के पास जाने की जरूरत न पड़े और पार्षद भी इन छोटे कार्यों से हटकर विकास के अन्य कार्यों पर ध्यान दे सके। परिषद को फूड सेफ्टी पर भी उतना ही ध्यान दिया जाना चाहिए, जितना स्वच्छता आदि पर दे रहे हैं।


सामाजिक कार्यकर्ता माला ठाकुर ने कहा कि पार्षद एक वार्ड का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है और वह गली-मोहल्ले से संबंधित होता है। पार्षद को राजनीतिक कार्यकर्ता कम और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यादा होना चाहिए। स्कूल-कॉलेजों में चुनाव नहीं हो रहे हैं जिसके कारण शहर में लीडरशिप का अभाव है। पीपीपी मॉडल से हम फंडिंग कैसे कार्य कर सकते हैं, इस पर विचार करना चाहिए। सरकार की बहुत सारी योजनाएं हैं, जिसकी बस्तियों के लोगों को जानकारी नहीं होती है, इसके लिए पार्षद को उन योजनाओं का लाभ लोगों को दिलाए। इंदौर में 5 हजार से ज्यादा बच्चे यहां आकर अध्ययनरत हैं, इस कारण से इंदौर की संस्कृति का विकृतिकरण हो रहा है, हमारे शहर की संस्कृति को बचाए रखने के लिए नई परिषद को पहल करना चाहिए। हम स्मार्ट सिटी और मेट्रो सिटी की ओर बढ़ रहे हैं। इसके लिए विशेषज्ञों से बात कर आगे की योजनाएं क्रियान्वित करना चाहिए, ताकि शहर का धन व्यर्थ बर्बाद न हो।
देवेन्द्र बंसल ने कहा कि आज शहर में जो शौचालय बनाए गए हैं, उसकी ऐसी व्यवस्था नहीं है कि वह स्वच्छ दिखें। ऐसी परिषद बने जो सभी वार्डों का ख्याल रखे। स्वच्छ इंदौर तो देख रहे हैं, लेकिन कॉलोनियों में गंदगी देखी जा सकती है, इसके लिए परिषद को ध्यान रखना चाहिए।


सामाजिक संस्था सेवा सुरभि के अध्यक्ष ओमप्रकाश नरेडा ने बताया कि सभी वक्ताओं के अलावा अनिल भोजे, यशवर्धन, शिवाजी मोहिते आदि ने भी नई परिषद को लेकर लिखित में अपने सुझाव दिए। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम संयोजक अतुल सेठ ने किया। आभार माना पर्यावरणविद डॉ. ओ.पी. जोशी ने। अंत में सेवा सुरभि और इंदौर प्रेस क्लब की ओर से अतिथियों को कमल कलवानी और संजय त्रिपाठी ने स्मृति चिह्न प्रदान किए गए। कार्यक्रम में म.प्र. मराठी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष अश्विन खरे, सावरमल शर्मा, बृहन महाराष्ट्र मंडल के अध्यक्ष मिलिंद महाजन, नेताजी मोहिते, डॉ. दिव्या गुप्ता, पार्षद कंचन गिदवानी, ज्योति तोमर, समाजसेवी अलका सैनी, इंदौर प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी, कोषाध्यक्ष संजय त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार चंद्रप्रकाश गुप्ता, राजेंद्र कोपरगांवकर, लक्ष्मीकांत पंडित, प्रवीण जोशी सहित बड़ी संख्या में गणमान्यजन उपस्थित थे।