कॉलेज प्राचार्य को स्टूडेंट ने पेट्रोल डालकर जलाया, अब मौत से संघर्ष

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नितिनमोहन शर्मा। ये कैसे साथी? ये कैसी संवेदनशीलता? ये कैसा रोष-आक्रोश? ये कैसा दुःख? ये केसी पीड़ा? एक तरफ एक ज़िंदगी जीवन मौत से संघर्ष कर रही हैं। दूसरी तरफ मुस्कान बिखेरते चेहरे। एक तरफ 80 फीसदी तक झुलसा बदन हैं। दूसरी तरफ हंसी ठठ्ठा हैं। एक तरफ विभत्स घटना हैं। दूसरी तरफ शर्मनाक हरकत हैं। एक तरफ शरीर पर फफोले हैं। दूसरी तरफ दांत दिखाते चेहरे हैं। चेहरे भी कोई अनपढ़-अनघड़-अंजान नही। सब पड़े लिखे। उच्च शिक्षित। डिग्रीधारी। जाने पहचाने।

आप स्वयं दखिये इस फोटो को। क्या कह रहा है ये फोटो? क्या ये फोटो किसी दर्दनाक हादसे से जुड़ा हुआ हो सकता है? पहली नजर तो क्या आखरी नजर तक दौडा लीजिये। फ़ोटो और उसमें नजर आ रहे चहरे देखकर कोई बता सकता है कि ये फोटो एक भयावह, दर्दनाक, विभत्स हादसे के बाद आक्रोशित समुदाय का हैं?

इस फोटो में जो चेहरे नजर आ रहे हैं, वे सब के सब उस प्राचार्य के साथी हैं, जो अस्पताल में जीवन मौत से संघर्ष रही हैं। सब के सब प्रिंसिपल हैं। ठीक उसी तरह, जैसी पेट्रोल छिड़ककर जला दी गई प्राचार्य हैं। बीएम फार्मसी कॉलेज की प्राचार्य विमुक्ता शर्मा के सब संगी साथी हैं। हम पेशा। हम बिरादर।

ये सब लोग अपनी साथी के साथ हुए दर्दनाक हादसे से बेहद आक्रोशित और उद्वेलित हैं। ऐसा ही बताकर ये सब प्राचार्य संभागायुक्त से मिलने मंगलवार को पहुंचे। घटना से दुःखी और आहत मन लेकर ये सब ज्ञापन लेकर कमिश्नर दफ्तर की सीढ़ियां तो चढ़ गए लेकिन अफसर को ज्ञापन देते वक्त फिसल गये। ये फ़िसलन हंसी, मुस्कान और खिलखिलाहट की है, जो ज्ञापन देते वक्त सबके चेहरे पर उभर आई। अफसर जरूर गम्भीर नजर आ रहे है लेकिन अपनी हम पेशा साथी के लिये आये तमाम प्रिंसिपल गेर गम्भीर नजर आ रहें हैं। एक भी प्राचार्य का चेहरा इस फोटो में ऐसा नही जो गमगीन हो। ग़मज़दा हो। इस कोने से उस कोने तक नजर दौड़ाइए, सब हंस रहे हैं।

एक प्राचार्य के साथ हुए हादसे से ” बेहद ग़मगीन ” अशासकीय कॉलेज संघ के प्राचार्यो की ” संवेदनशीलता ” की दास्तां यही नही रुकी। पढे लिखें प्राचार्यो ने में से कुछ ने इस फोटो को सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया ताकि सबको ये पता चले कि एक प्राचार्य के दुःख में, अन्य प्राचार्य भी कितने दुःखी हैं। न कोई शर्म। न कोई हया। मुस्कान किस बात पर आई? और आई ही क्यो? इस पर प्राचार्य नही, शहर चिंतन मन्थन करें।

वैसे शहर को भी क्या फर्क पड़ा? एजुकेशन हब का तमगा मिला है न इन्दौर को। फिर भी ये हालात। ऐसा कभी हुआ क्या इन्दौर में कि एक प्राचार्य को उसी के कॉलेज में सबके सामने पेट्रोल छिड़ककर आग के हवाले कर दिया गया? मालवा निमाड़ अंचक में ऐसी हिमाकत भी कभी देखने सुनने में आई कि एक स्टूडेंट ही, अपनी प्रिंसिपल को जिंदा जला दें? और घटना का अफ़सोस तक न हो? किसे फर्क पड़ा?

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फर्क पड़ता तो प्रदेश के सबसे बड़े और पढ़े लिखे शहर में क्या सिर्फ कालेजों के प्राचार्य की सड़क पर आते? वे महिला संगठन कहा है जो नारी अधिकारों की बात करते हैं? वे लेडीज क्लब कहाँ है, जिनके चेहरे बारह महीनों अखबारों के पन्नो पर सुर्खियां बटोरते हैं। देवी अहिल्या की नगरी है न ये? तो फिर कहा है यहां की महिला नेताएँ? विधायक है। मंत्री भी हैं। पूर्व महापौर-सांसद भी हैं। सब इसी शहर से है और शहर में भी हैं। जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों की तो फ़ौज है यहां पर। फिर क्या हुआ? इस विभत्स हादसे के बाद तो सरकार भी चुप हैं। बस उच्च शिक्षा से जुड़े लोग रोष जाहिर कर रहे हैं और वो भी हंसते हुए..!! ये सब जानकर, देखकर, क्या सोचेगा वो जिस्म, जो असहनीय पीड़ा के साथ अस्पताल में संघर्षरत हैं। शारीरिक पीड़ा से ज्यादा कष्टदायक दृश्य जो आत्मा को भी झुलसा दे।

कॉलेज नही, निजी दुकानें, कोई सुरक्षा नही

विमुक्ता शर्मा जिस कॉलेज की प्रिंसिपल थी, वहां सुरक्षा के इंतजाम लगभग शून्य ही हैं। ये कहना है शुरुआती पुलिसिया जांच का। जांच में सामने आया है कि कॉलेज में सीसीटीवी कैमरे ही नही थे। न केम्पस बाउंड्रीवाल किया हुआ। न कोई सुरक्षाकर्मी। ज्ञापन देने गए अन्य प्राचार्य भी जानते है कि उनके कालेजों में भी क्या हाल है। कहने को ये शहर एजुकेशन हब है लेकिन इस तमगे के पीछे का सच स्याह हैं। अधिकांश निजी कॉलेज, एक प्राइवेट दुकान की तर्ज पर चल रहे हैं। जहां कॉलेज से जुड़े नियम कायदे सिर्फ कागजों पर हैं। ये बात उच्च शिक्षा विभाग भी जानता है और महकमे के मंत्री भी। सरकार भी इस गोरखधंधे से वाकिफ हैं कि इन्दौर में कितने कॉलेज सिर्फ कागजों पर दर्ज हैं। मौके पर न मैदान। न बिल्डिंग। न फेकल्टी। न संसाधन। बस पास कराने की ग्यारंटी और एकमुश्त मोटी फीस। हादसे वाले कॉलेज का नाम आप हमसे से किसी ने सुना क्या? शहर के किस कोने में, कौन चला रहा है? इससे किसे लेना देना। ‘ “लेनदेन” है तो फिर क्या लेना देना।