– लवीन राव ओव्हाल
लगता है कि कुछ लोग चाहते है कि जनता विद्रोह करें। लेकिन याद रखना यदि विद्रोह होता है तो उसमें जिम्मेदारी उन लोगों की भी होगी जो जनता के प्रतिनिधि बनकर भी अफसरों के आगे मौन है। क्या है कि हमने चुना ही गूंगी गुड़िया को था, इसलिए तो रातोंरात फैसले हो रहे कि कौन भरे पेट सोयेगा और कौन भूखे पेट।
शहर से लेकर गांव तक मौत का तांडव हर घर ने देखा है। हर कोई जानता है कि इस महामारी का अंजाम क्या है। कोई अपनी मर्जी से घर से बाहर नहीं निकलना चाहता, मजबूरी में ही निकला है। सबूत चाहिए तो उन 7 हजार लोगों से पूछ लेना जिन्हें 24 घण्टे हिरासत में रखा था। डेढ़ महीने में गिनती के लोग कथित रूप से लापरवाही करते मिले लेकिन उसकी सजा पूरे शहर को क्यों?
मामाजी अब आपसे निवेदन है कि अपने सपनों के शहर की सुध लेना बंद कर दो। यदि आपकी सुध लेने से शहर के लोगों के लिए 2 वक्त की रोटी की जुगाड़ भी मुश्किल है तो फिर हम बेसहारा ही अच्छे हैं। अब तक भी जी ही रहे थे। शहर में 5 लाख लोग ऐसे भी है जो रोज कमाने-खाने वाले हैं। राशन दुकान कितनी राहत देती है, यह आप भी अच्छे से जानते हो। अब काम करके ही कोरोना से लड़ना पड़ेगा। क्योंकि अब काम नहीं किया तो कोरोना से बाद में, पहले भूख से मर जाएंगे।
कभी कहते हो लॉकडाउन से कुछ नहीं होगा, कभी कहते हो लॉकडाउन से चैन टूटेगी। पहले तय कर लो करना क्या है। कब तक इंदौर को प्रयोगशाला बनाकर रखोगे। तुम्हारे चैन तोड़ने के चक्कर में कहीं सांसों की डोर ना टूट जाए।
हर घर शोक और दहशत का शिकार है। अब घर बैठ कर कब तक मातम मनाएंगे। कभी ना कभी तो घर से बाहर निकलना ही पड़ेगा।
बस, अब इतना मजबूर मत करो कि मजबूरी के बजाय विद्रोह करके घर से बाहर निकलना पड़े। क्योंकि अब सहनशीलता खत्म हो रही है। इंदौर के लोग सहिष्णु है, शिष्ट है, नंबर 1 है लेकिन बगावत पर उतर आए तो जेलें छोटी पड़ जाएगी। इंदौर को प्रयोगशाला बनाना बंद कर दो, 10-15 लोग मिलकर जनता की भूख का फैसला लेना बंद कर दो।