शशिकांत गुप्ते
यकायक एक बोध कथा का स्मरण हुआ।एक संत नदी में नहा रहे थे।उन्होंने देखा एक बिच्छू नदी में गिर गया है।तुरंत संत ने बिछू को अपने हाथों से पकड कर पानी से बाहर निकालने की कोशिश की,बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया।संत के हाथ से बिच्छू पुनः पानी में गिर गया।पुनः संत ने बिच्छू को पकड़ कर बाहर निकालने की कोशिश की बिच्छू ने पुनः संत को डंक मारा,यह सिलसिला देख रहे एक सज्जन ने संत से पूछा यह बिच्छू बार बार आपकों डंक मार रहा है,आप बार बार उसे पानी से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हो।संत का जवाब था बिच्छू का प्राकृतिक स्वभाव है,डंक मारना,और मेरा मानवीय कर्तव्य है,उसे बचाना।दोनों अपने अपने स्वभाव का निर्वहन कर रहे हैं। इसी तरह सच बोलने वाला अपना स्वभाव नहीं छोड़ता है,और डंक मारने वाला अपनी आदत से बाज नहीं आता है।
बिच्छू एक विचित्र जंतु है।बिच्छू का प्रजनन भी बहुत ही भिन्न प्रकार के होता है।मादा बिच्छू गर्भ धारण करती है तब उसके पेट में लगभग सौ अंडे पनपते हैं।इन सौ अंडों के अंदर से धीरे धीरे बिच्छू के बच्चें जन्म लेते हैं।यह बच्चें स्वयं को विकसित करने के लिए अपनी जननी को ही खाते हैं।इस तरह मादा बिच्छू के मृत शरीर से सौ बच्चें बाहर निकलतें हैं। अर्थात अपनी माँ का ही मांस खाकर और रक्त पीकर यह बच्चें जन्म लेते हैं। जननी को खाकर जन्म लेकर भूमि पर चलते हैं।
यह बिच्छू का प्राकृतिक गुण है।इसी तरह का अवगुण मानव रूपी बिच्छू में विद्यमान होता है। इनदिनों इस तरह के बिच्छूओं की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है। संत और बिच्छू की बोध कथा यथार्थ में परिलक्षित हो रही है।
सत्य बोलने वाले भले ही तादाद में कम है,ये हमेशा तादाद में कम ही होतें हैं।(द्वापरयुग में भी पांडव सिर्फ पांच ही थे और कौरव सौ थे।) सच बोलने वाले अपना स्वभाव नहीं छोड़ते हैं, और डंक मारने वालों की कमी नहीं है। सच कड़वा होता है।इसका मतलब यह नहीं कि,झूठ मीठा होता है।झूठ पर मीठे होने का कितना भी मुल्लमा चढ़ाया जाए,झूठ करेले जैसा कड़वा ही रहेगा। मराठी में करले को लेकर एक कहावत है, करल्या ला किती ही तुपात तळा किंवा साखरेत मळा कारल कडुच राहणार अर्थात करेले को कितना भी घी में तलों या शक्कर में गुंथो करेला कड़वा ही रहेगा।
यह उसका प्राकृतिक गुण है। नाटक या फ़िल्म में किसी अभिनेता द्वारा भगवान का किरदार निभाने के लिए,कोई व्यक्ति कितना भी मेकअप करले, मेकअप उतरने के पश्चात किरदार निभाने वाले की वास्तविकता किसी से छिपती नहीं है। बिच्छू अंतः बिच्छू ही होते हैं। बिच्छू अपनी ओकात दिखा ही देता है। बिच्छूओं को यह समझना चाहिए कि, जिसमे सच बोलने की हिम्मत होती है उसमें बिच्छू के डंक को तोड़ने का भी साहस होता है। सच बोलने वाला सभ्य होता है,उसकी सभ्यता को उसकी कमजोरी समझना नादानी है।
सच बोलने वाले कभी भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता है और कभी छोड़ेगा भी नहीं।बिच्छू कितने डंक मारेगा? सच बोलने वाला हमेशा यही बोलता है।
सर फरोशी की तमन्ना
अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना
बाजुएं क़ातिल में है