इंदौर। शुरु से ही उनकी रुचि शिक्षा जगत में कुछ नया और बेहतर करने की थी। छोटी सी यूनिवर्सल कोचिंग संस्थान से शुरुआत कर उन्होंने शिक्षा जगत में कदम रखा, और उनका यह सफर निरंतर चलता ही गया. अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प के बूते उन्होंने महज कुछ सालों में ही टैगोर शिक्षा महाविद्यालय और रिपन पब्लिक स्कूल बनाने तक का सफर तय कर लिया। वह एक अच्छे शिक्षक के साथ बहुत जिंदादिल इंसान थे, लोगों के प्रति उनका हमेशा हेल्पिंग नेचर था. जब कॉविड के दौरान वह हॉस्पिटल में थे तब वहां भी वह अपने बेड से उठकर दूसरे मरीजों की सेवा करते रहते थे. आज प्रोफेसर स्व संजय जी पारिख की द्वितीय पुण्यतिथी पर उनकी पत्नी डॉ दीपा जैन ने स्व प्रोफेसर संजय जी पारिख के जीवन के कुछ पहलू साझा किए।
वह बताती हैं कि उनके पति प्रोफेसर संजय पारिख सबसे पहले एक बेहतर शिक्षक थे, उन्होंने एमएससी मैथमेटिक्स के बाद पीएचडी की पढ़ाई पूरी की थी। शिक्षा जगत में पांव रखते हुए उन्होंने 1996 में यूनिवर्सल कोचिंग संस्थान से शुरुआत की और यह सफर निरंतर चलता रहा। वह जल्द ही शहर में यूनिवर्सिटी लाने के लिए प्रयासरत थे। वह गुजरात के एक अच्छे घराने से थे, इंदौर आने के बाद उन्होंने सब अपने संघर्ष और मेहनत के दम पर शुरू किया। महज़ कुछ सालों में उन्होंने टैगोर शिक्षा महाविद्यालय की स्थापना की इसके बाद सीबीएसई रिपन पब्लिक स्कूल की स्थापना शहर में की। वह बोर्ड ऑफ मेंबर भी रहे हैं। उनका सपना शहर में शिक्षा के क्षेत्र में और बेहतर करने का था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था, 2021 में कॉविड की दूसरी लहर में उनका जाना हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है, जिसकी शायद भरपाई नहीं हो सकती हैं।
हमारी शादी के बाद से मैने उनके स्वभाव को और करीब से जाना वह बहुत हंसमुख, मिलनसार और मेहनती थे।आज में उन्हीं के सिद्धांतो पर कार्य कर रही हूं। वह दोनों बच्चों को बहुत प्यार दुलार करते थे. बेटी दीक्षा जैन और बेटे आदि जैन से अक्सर कहा करते थे, कि काम ऐसा करना जो समाज और देश हित में हो. हमेशा एक विजन लेकर चलते थे कि मुझे अपनी और से शिक्षा में जितना हो सके योगदान देना है जिसका फायदा युवाओं को मिले। उनके अंदर सारी अच्छाई मौजूद थी, कोई कमी उनमें नहीं थी। मेरे लिए वह मेरे एक अच्छे दोस्त, मोटीवेटर और सब कुछ थे। वह बच्चों के साथ बच्चें जैसे हो जाते थे, उनकी हर ख्वाहिश पूरी करते थे। वह जाने से पहले मुझे इतना मजबूत कर गए कि आज में इन सब चीजों को संभाल सकूं।
उनके जाने के बाद हमेशा उनकी कमी तो रहती हैं, लेकिन यह सोचकर हिम्मत आती हैं कि उनका प्यार और आशीर्वाद हमारे साथ हैं। यही एहसास हमें हर क्षण ताकत और साहस प्रदान करता हैं। मेरे पेरेंट्स के साथ मेरे सारे रिश्तेदार हमारे लिए हमेशा खड़े रहते हैं। जब भी वह याद आते हैं तो यही आवाज़ कान में गूंजती हैं कि उठो जागो, संघर्ष करो, आपको रोना नहीं है, और ना ही हिम्मत हारना हैं। वह एक अच्छे इंसान के साथ साथ प्रकृति प्रेमी भी थे। कॉलेज के साथ शहर में प्लांटेशन के लिए कार्य करते रहते थे। उन्हें पेड़ पौधों से काफी लगाव था। नगर निगम और अन्य संस्थान के सानिध्य से सिद्धार्थ नगर में गार्डन में कार्य और प्लांटेशन करवाया था।