सत्संग

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मुझे मेरे होने पर
अहंकार है
राग ,द्वेष ,ईर्ष्या ,क्रोध
मेरे अलंकार है ।

करू हर काम मे मनमानी
मैं जो ठहरा अभिमानी
देख दुसरो का दुःख
मुझे अच्छा लगता है
दुसरो को दुःख देना
मुझे अच्छा लगता है
परपीड़ा में आता मुझे
आनंद है
हँसते हँसाते चेहरे मुझे
नापसंद है
हम प्रजा हम ही सरकार है
राग ,द्वेष ,ईर्ष्या ,क्रोध
मेरे अलंकार है ।

दुसरो की बात मैं क्यों मानु
अपराध बोध मैं न जानु
स्वार्थसिद्धि मेरा लक्ष व धाम है
मुझे दुसरो से नही कोई काम है
पर निंदा में आता मुझे रस है
दुसरो को दबाने में ही जस है
ब्रह्मांड सा मेरा विस्तार है
राग,द्वेष,ईर्ष्या ,क्रोध
मेरे अलंकार है ।

कर ले तू मन मानी चाहे जितनी
मार ठोकर दुनिया को चाहे जितनी
समय का पहिया रहा है घूम
आज तू मद में चाहे जितना झूम
दब जाएगा मिट्टी में
जल जाएगा भट्टी में
कर ले तू अभिमान मूढ़
तू क्या जाने जीवन के गूढ़
प्रेम ,अहिंसा ,सदाचार
जीवन का सार है
स्नेह ,सहयोग ,भातृत्व पर
टिका संसार है
समय रहते कर मानवता से
प्यार है
शांति ,दया ,करुणा,सेवा
मानव के अलंकार है ।

धैर्यशील येवले, इंदौर