सॉरी शुक्ला जी, इंदौर वैसा नहीं बन पाया, जैसा आप चाहते थे

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दोपहर 11 बजे के बाद इंदौर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 1 के सामने से कभी कोई गुजरा है। यदि नही गुजरा तो ये उसका सौभाग्य है..। यहां महज 50 मीटर की दूरी तय करने में यदि 15 मिनिट से कम समय नही लगता। यहां जनता को तकलीफ देने के लिए कोई और नही बल्कि वो जिम्मेदार है जिसको शुरू जनता की सुविधा और समय बचत के लिए किया गया था।

यहां 60 फिट चौड़ी सड़क के दोनों ओर सिटी बसों की कतार हमेशा लगी रहती है। ये बसे राग दरबारी के पहले पैरा की उस लाइन “ट्रक(यहां सिटी बस) खड़ा था जिसका जन्म सड़को के साथ बलात्कार करने के लिए हुए था। सत्य की तरह इसके भी दो पहलू है, जनता इन्हे खड़ा देखकर कह सकती है, की ये सड़क के बीच खड़ी है और ड्राइवर के मुताबिक किनारे पर खड़ी रहती है।”

यहां सड़क के कोनो पर दुकानें ओर उसके बाद सिटी बस लगभग एक तिहाई सड़क को लील जाती है बचे एक चौथाई से ही पूरा ट्रैफिक जिसमे उपनगरीय बसे, रिक्शा के अलावा बाकी वाहनों को गुजरना होता है। इसके कारण यहां जो स्थिति बनती है उसमें आम आदमी खुद को कोसता ही रहता है कि वो क्यो इस ओर आ गया। इंदौर में सिटी बस 26 जनवरी 2006 को सड़क पर उतरी थी। उस समय इसके जनक चन्द्रमौलि शुक्ला ने इनके लिए जो नियम तय कोई थे, उसमें सबसे अहम था कि ये केवल अपने स्टॉप पर खड़ी होंगी, सड़क पर बिल्कुल भी खड़ी नही रहेंगी।

लेकिन “सॉरी शुक्ला जी” आज ये ही शहर में जाम लगने का सबसे बड़ा कारण है। आपकी सोच से निकली ये सुविधा शहर का बड़ा दर्द बन गई है। क्योंकि आपके बाद जिनके हाथ मे इनकी कमान रही उन्होंने इसे दूध देने वाली गाय तो माना, इसका जमकर दूध निकाला। लेकिन इसे खिलाने ओर देखभाल दुसरो के माथे छोड़ दी। ये शहर में किस कदर राहों को रोक रही है इस पर उस कम्पनी के अफसरों का ध्यान तक नही है जिसे शुक्ला जी आपने तैयार किया था। वे तो इसे केवल वसूली के लिए इस्तेमाल करते है। दिनभर पूरी शहर की सरकार के जिम्मेदार इसके दफ्तर में तो बैठे रहते है, लेकिन ये किस तरह से चल रही है वो देखने की इन्हें फुर्सत नही है। ऊपर से रही कसर इंदौर की कथित जिम्मेदार पुलिस पूरी कर देती है।

कहने के लिए 2 थाने ओर खुद पुलिस कमिश्नर ऑफिस यहां से चंद कदमो की दूरी पर है। लेकिन इसमें बैठकर शहर को सुरक्षित और सामान्य रखने का दावा करने वालो की सरपरस्ती में यहाँ न् सिर्फ अवैध ऑटो, मैजिक ओर बसों का स्टॉप बना हुआ है। बल्कि लगता है पुलिस ने इन्हें सड़क जाम करने का लाइसेंस दे रखा है। यहां कर्तव्यनिष्ठ पुलिस की कर्तव्य परायणता (किसके प्रति होती है समझ जाइएगा ) का साक्षात उदाहरण मिलता है। पुलिस यहाँ पूरी तरह गांधी के आदर्शों का पालन करती है, न कुछ देखती, न कुछ बोलती है और न यहाँ के बारे में कुछ सुनती है।

शायद पढती होगी। जनवरी में पूरे विश्व से आने वाले अतिथियों में से कोई यदि ट्रेन से इंदौर आ गया तो उसके सामने इंदौर की पूरी सच्चाई केवल स्टेशन से बाहर आते है ही आ जाएगी। फिर कितने भी पल्थन सरकार लगाते रहे लेकिन देश के सबसे साफ शहर की ट्रेफिक ओर शोर की गंदगी उन्हें सब समझा देगी। मेरा सभी अतिथियों से विनम्र निवेदन है की वे कृपया कर इंदौर रेलवे स्टेशन की ओर से ना तो शहर में आये और ना ही यहां से जाएं।

बाकलम – नितेश पाल