दिनेश निगम ‘त्यागी’
कांग्रेस महासचिव व पार्टी के प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की मेहनत से प्रदेश में पार्टी की सत्ता में वापसी हुई थी तो उनके प्रभार में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित विधायक टूटे और कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई। आरोप था कि बाबरिया की बड़े नेताओं के साथ पटरी नहीं बैठती। इस शिकायत को दूर करने व प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के उद्देश्य से पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ट्रंप कार्ड चला।
बाबरिया के स्थान पर अपने खास महामंत्री मुकुल वासनिक को प्रदेश कांग्रेस का प्रभारी महासचिव बनाकर भेज दिया। वासनिक को प्रभारी बने लगभग चार माह हो गए पर वे कोई कमाल नहीं दिखा सके। वे कांग्रेस विधायक दल की बैठक में हिस्सा लेकर गए। इसके बाद तीन विधायक और कांग्रेस छोड़कर चले गए। संगठन को मजबूत करने होने वाली गतिविधियां ठप पड़ी हैं और सोनिया गांधी के ट्रंप कार्ड नदारद। उप चुनाव की तैयारी में भी भाजपा के मुकबाले कांग्रेस पिछड़ती दिख रही है। साफ है, बाबरिया की भरपाई वासनिक नहीं कर पा रहे हैं।
कोई कमाल नहीं दिखा पा रहे वासनिक….
दीपक बाबरिया की पटरी बड़े नेताओं से भले न बैठती थी, वे उनसे नाराज रहते रहे थे लेकिन इसका असर बाबरिया के कामकाज पर कभी नहीं पड़ा। उन्होंने किसी की परवाह किए बगैर प्रदेश में अपनी सक्रियता जारी रखी। वे सात-सात दिन तक भोपाल तथा प्रदेश के दौरे में रहकर पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहते थे। उम्मीद थी कि वासनिक उनसे अच्छा काम करेंगे लेकिन अब तक वे कोई कमाल नहीं दिखा पाए। 27 विधानसभा सीटों के उप चुनाव सिर पर हैं और पार्टी नेता ही उन्हें असफल प्रभारी ठहराने लगे हैं।
न अंतर्कलह रुकी, न समन्वय बन सका….
मुकुल वासनिक को संगठन की दृष्टि से मजबूत नेता माना जाता है। उम्मीद की जा रही थी कि उनके प्रभारी बनने के बाद प्रदेश कांग्रेस नेताओं के बीच अंतर्कलह पर विराम लगेगा। नेताओं व कार्यकर्ताओं के बीच अच्छा समन्वय बन सकेगा और पार्टी के अंदर भगदड़ रुकेगी। यह उप चुनावों की दृष्टि से भी जरूरी है, पर वासनिक एक भी मामले में खरे नहीं उतरे। उमंग सिंघार, सज्जन सिंह वर्मा, लक्ष्मण सिंह तथा डा. गोविंद सिंह के बीच बयानबाजी अंतर्कलह का प्रमाण देती रही। बुजुर्ग व युवा नेताओं के बीच तालमेल बैठाने की कोई कोशिश नहीं हुई। इसके साथ पार्टी नेताओं का टूटना भी जारी रहा। इसकी वजह यह भी है कि वासनिक प्रदेश में दिखाई ही नहीं देते। सवाल यह है कि जब उनके पास समय नहीं था तो उन्हें इस महत्वपूर्ण प्रदेश का प्रभार क्यों दिया गया।
उप चुनाव में कैसे मुकाबला करेगी कांग्रेस
विधानसभा की 27 सीटों के उप चुनाव जितने भाजपा को लिए महत्वपूर्ण हैं, उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस के लिए। आखिर, भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता छीनी है। कांग्रेस की योजना पार्टी छोड़कर गए विधायकों को उप चुनाव में हराकर सत्ता में वापसी करना है। इसमें प्रदेश का प्रभारी प्रमुख कड़ी के तौर पर काम करता है। लेकिन वासनिक के पास प्रदेश के लिए समय ही नहीं है। ऐसे में कांग्रेस उप चुनाव में भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुकाबला कैसे कर पाएगी, पार्टी के अंदर ही यह सवाल उठने लगे हैं। कमलनाथ सहित पार्टी के कुछ नेता यह मानकर खुश हैं कि कांग्रेस छोड़ने वाले विधायकों के खिलाफ माहौल है, इसलिए हम जीत कर सत्ता में वापसी करेंगे। कांग्रेस की यह उम्मीद दिवास्वप्न साबित हो सकती है।