प्रभात झा
(पूर्व राज्य सभा सांसद )
महान भारतीय संस्कृति और परंपरा में कृषि को मानव कल्याण का साधन माना गया है। यजुर्वेद में कहा गया है-
‘कृष्यै त्वा क्षेमाय त्वा रय्यै त्वा पोषाय त्वा’।
अर्थात राजा का मुख्य कर्त्तव्य कृषि की उन्नति, जन कल्याण और धन-धान्य की वृद्धि करना है। अन्न उत्पादन द्वारा अभाव तथा दारिद्रय को दूर करके राष्ट्र व समाज को समृद्धि प्रदान करने के कारण ही वेद में कृषक को अन्न पति और क्षेत्र पति कहकर स्तुति की गई है-
‘अन्नानां पतये नमः क्षेत्राणां पतये नमः’।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के किसानों को छोड़कर अंबानी, अडाणी और देश के उद्योगपतियों के साथ खड़े होंगे, यह उतना ही बड़ा झूठ है जितना बड़ा कोई यह कहे कि सूर्य पूर्व से नहीं पश्चिम से उग रहा है। भारत कृषि और ऋषि प्रधान देश है। आजादी के बाद देश में अनेक सरकारें केन्द्र में आयी, पर अटलजी को छोड़कर किसी प्रधानमंत्री ने गांव, गरीब और किसान की ओर ध्यान नही दिया। भाषण सभी देते रहे कि भारत कृषि प्रधान देश है पर ‘किसानों’ के खेत खलिहान की चिंता वर्षों बाद भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है, भारत में किसान जो भारत की मिट्टी की शान है को गर्त में डालकर कोई चाहे कि वह सरकार में बना रहेगा, यह संभव ही नहीं है। यही कारण है कि अपने छः वर्षों के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के हित में जितने फैसले लिए उतने पूर्व की सरकारों ने कभी नहीं लिए। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देश का अटूट विश्वास है। दुनिया में कोई ऐसी तराजु नही बनी है जो नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार को तौलने की ताकत रखती हो। जो नरेंद्र मोदी यह कहते हैं कि किसान शक्ति ही राष्ट्र की शक्ति है, उनके बारे में ऐसा सोचना ही पाप है।
अपने अन्नदाता और माटी के भाग्य विधाता की जिंदगी को बदलने के लिए लाए गए तीनों कृषि बिल का सच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सामने संसद और सड़क दोनों पर खुलकर रखा है। उन्होंने किसानों से कहा कि हम किसानों से हाथ जोड़कर विनम्रता पूर्वक कहते हैं कि वे सरकार के साथ संवाद करें, और बतायें कि इन तीनों कानूनों में कौन सा भाग उनके खिलाफ है, हम संशोधन के लिए तैयार हैं। इससे अधिक और देश के प्रधानमंत्री क्या कह सकते हैं। बावजूद इसके किसानों का अपनी बातों पर अड़े रहना क्या उचित कहा जा सकता है? विश्व भर में युद्ध हो या आंदोलन जितनें दिन भी चलें हों, अंत में चर्चा (संवाद) से ही टेबल पर समाप्त हुए हैं।
किसानों का इस तरह ‘अड़ना’ क्या उचित कहा जा सकता है। क्या सरकार को किसान यूनियन को अपने संशोधनों के बारे में नहीं बताना चाहिए? आज प्रत्येक भारतवासी के जुबां पर एक ही बात है कि नरेंद्र मोदी सरकार किसानों का अहित कभी नहीं कर सकती। किसानों का अहित यानि राष्ट्र का अहित। जो प्रधानसेवक अपनी जिंदगी का हर पल भारतमाता के लिए जीता हो, वह अन्नदाताओं की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कैसे कर सकता है। नरेंद्र मोदी को आज देश का बच्चा-बच्चा सलाम करता है कि पिछले छह वर्षों में विश्व में भारत की तस्वीर और तकदीर बदल दी। किसानों को अपने प्रधानमंत्री पर अटूट विश्वास है और आगे भी रखना चाहिए। हमें यह पता है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते किसानों पर अन्याय कोई नहीं कर सकता। नरेंद्र मोदी किसानों के सबसे बड़े रक्षक और हितैषी हैं। यदि कुछ लोगों ने भ्रम फैलाया भी है तो सरकार उस भ्रम के निवारण के लिए चौबीस घंटे खड़ी है। विपक्ष को भी चाहिए कि वह भोलेभाले किसानों को गुमराह करने के बजाय उन्हें उचित राह बताएं।
पूरा देश जानता है कृषि क्षेत्र का कायाकल्प करने और किसानों की तकदीर बदले के उद्देश्य से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा नए कृषि कानून लाये गए। ये तीन कानून हैं ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण)कानून 2020’, ‘कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020’ और ‘आवश्यक वस्तु संशोधन कानून 2020’। इन कानूनों के विरोध में एक महीना से अधिक समय से देश के किसान दिल्ली के बॉर्डरों पर धरना देकर बैठे हुए हैं। कड़ाके की इस सर्दी में किसानों के साथ उनके परिवार से आये महिलायें, बच्चे और बुजुर्ग भी हैं। यह कष्टपूर्ण ही नहीं, हम सबके के लिए असह्य है। किसान हितैषी केंद्र की सरकार पहले दिन से संवेदनशील है। धरना को टालने के लिए सरकार की ओर से केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय रेल तथा वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पियूष गोयल और वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने किसान संगठनों से बात की। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपनी ओर से किसान संगठनों से धरना समाप्त करने का निवेदन कर चुके हैं।
जहां एक ओर कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने देश के किसानों के नाम 8 पन्नों का पत्र लिखकर सकारात्मक पहल की, वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने व्यक्तिगत रूप से किसान संगठनों से मिलकर हल निकालने का सार्थक प्रयास किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को खुशहाल देखना चाहते हैं, आत्मनिर्भर कृषि से आत्मनिर्भर भारत का संकल्प पूरा करने को संकल्पित है। लेकिन वे इस संकल्प को देश की 130 करोड़ जनता को विश्वास में लेकर पूरा करना चाहते हैं। किसान संगठनों की आशंकाओं के निवारण को लेकर वे कितना गंभीर और संवेदनशील हैं वह इस बात से प्रमाणित होता है कि इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं उनके साथ अब तक सरकार की सात दौर की वार्ता हो चुकी है और आठवें दौर की वार्ता 8 जनवरी को होने जा रही है। सातों दौर की वार्ता समाप्त होने के बाद किसान संगठनों के नेताओं ने स्वयं मीडिया में आकर कहा कि सरकार हमारी आशंकाओं को लेकर गंभीर है और चार में से दो मुद्दों का समाधान हो गया है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो किसानों के धरना-प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे हैं, और यही तो हमारे देश के मर्यादित अन्नदाताओं का परिचय है जिस पर राष्ट्र को गौरव है।
स्वतंत्र भारत में दशकों के दोषपूर्ण नीतियों के कारण देश की कृषि और किसानी का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया। सबसे अधिक नुकसान उन किसानों का हुआ जिनके पास न तो ज्यादा जमीन थी और न ज्यादा संसाधन। देश में ऐसे 80 प्रतिशत से अधिक किसान हैं जिनकी संख्या 10 करोड़ से भी अधिक है। इन छोटे किसानों को बैंकों से पैसा नहीं मिलता था, क्योंकि उनके पास तो बैंक खाता तक नहीं था। पहले के समय में जो फसल बीमा योजना थी, उसका लाभ भी इन छोटे किसानों को नहीं मिल पाता था। खेत सींचने के लिए न पानी मिलता था, न बिजली मिलती थी। अपना खून-पसीना लगाकर वो खेत में जो पैदा भी करते थे, उचित दाम नहीं मिल पाता था। इन किसानों का सुध लेने वाला कोई नहीं था परिणाम स्वरूप इनकी स्थिति दयनीय बनी रही। चुनाव होते रहे, सरकारें बनती रहीं, आयोग बनते रहे, रिपोर्ट्स आती रहीं, लेकिन हमारे देश के इन अन्नदाताओं की स्थिति नहीं बदली, गरीब किसान गरीब होता गया। यह अन्याय ही नहीं घोर अन्याय था।
2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब केंद्र में सरकार बनी, देश के किसानों को बदहाल स्थिति से खुशहाल स्थिति में लाने के लिए नये तरीके के साथ काम शुरू किया गया। देश के किसान की छोटी-छोटी दिक्कतों और कृषि के आधुनिकीकरण, उसे भविष्य की जरूरतों के लिए तैयार करने, दोनों पर एक साथ ध्यान दिया गया। विश्व के देशों के कृषि क्षेत्र में आई क्रांति के अनुभवों और स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए काम शुरू किया गया। सॉयल हेल्थ कार्ड, यूरिया की नीम कोटिंग, लाखों की संख्या में सोलर पंप, ये सब योजनाएं एक के बाद एक शुरू की गईं। सरकार ने प्रयास किया कि किसान के पास एक बेहतर फसल बीमा सुरक्षा हो। आज देश के करोड़ों किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ हो रहा है। मामूली प्रीमियम पर किसानों को पिछले एक साल में 87 हजार करोड़ रुपए क्लेम राशि मिली है। मुसीबत के समय ये फसल बीमा उनको काम आया। सरकार ने इस लक्ष्य पर भी काम किया कि देश के किसान के पास खेत में सिंचाई की पर्याप्त सुविधा हो। पीएम किसान सम्मान योजना के तहत अब तक 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा किसानों के खाते में पहुंच चुके हैं।
सरकार ने प्रयास किया कि देश के किसान को फसल की उचित कीमत मिले। लंबे समय से लटकी स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार लागत का डेढ़ गुना एमएसपी किसानों को दिया। पहले कुछ ही फसलों पर एमएसपी मिलती थी, उनकी भी संख्या बढ़ाई गई। फसल बेचने के लिए किसान के पास सिर्फ एक मंडी नहीं बल्कि उसको विकल्प मिलना चाहिए, बाजार मिलना चाहिए। सरकार ने देश की एक हजार से ज्यादा कृषि मंडियों को ऑनलाइन जोड़ा। एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार किसानों ने किया है। किसानों ने फसलों की ऑनलाईन बिक्री शुरू की है। सरकार ने एक और लक्ष्य बनाया कि छोटे किसानों के समूह बनें ताकि वो अपने क्षेत्र में एक सामूहिक ताकत बनकर काम कर सकें। आज देश में 10 हजार से ज्यादा किसान उत्पादक संघ- एफपीओ बनाने का अभियान चल रहा है, उन्हें आर्थिक मदद दी जा रही है।
कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी आवश्यकता है गांव के पास ही भंडारण, कोल्ड स्टोरेज की आधुनिक सुविधा कम कीमत पर देश के किसानों को उपलब्ध हो। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने इसे भी प्राथमिकता दी। आज देशभर में कोल्ड स्टोरेज का नेटवर्क विकसित करने के लिए सरकार करोड़ों रुपए का निवेश कर रही है। नीतियों में इस पर भी बल दिया गया कि खेती के साथ ही किसान के पास आय बढ़ाने के दूसरे विकल्प भी हों। सरकार 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुनी करने को प्रतिबद्ध है। सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया कि देश के बैंकों का पैसा देश के किसानों के काम आए। 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार सरकार बनी, कृषि क्षेत्र के लिए 7 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया जो उस समय एक रिकॉर्ड था, और आज यह लगभग 14 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है, यानि दोगुना। क्यों किया गया? ताकि कृषि और किसान के विकास में संसाधन बाधा न बने। बीते केवल कुछ महीनों में करीब ढाई करोड़ छोटे किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड से जोड़ा गया है और यह अभियान तेजी से चल रहा है। ये सब पहले भी किया जा सकता था, क्यों नहीं किया गया? ऐसे सवाल आज भी किसानो के मध्य गूंज रहे हैं।
नए कृषि कानून किसानों के हक में है और किसानों को दशकों से चली आ रही शोषक व्यवस्था से मुक्ति मिलने वाली है। लगभग सभी कृषि विशेषज्ञों की यही राय है। यहां तक की बड़ी संख्या में किसान संगठनों ने इन नए कानूनों को लेकर सरकार को धन्यवाद ज्ञापन भी दिया है। किसानों को आतंकवादी या टुकड़े-टुकड़े गैंग कहना किसी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता, लेकिन जिस तरह से देश विरोधी ताकतें किसानों के मंच को बदनाम करने की साजिश कर रहे हैं, किसान और किसान संगठनों को सचेत रहने की जरूरत है। किसानों की नजरों में गिर चुके राजनीतिक दल और उनके नुमाइंदें किसानों को गुमराह करने के लिए किसी भी स्तर तक जा रहे हैं। राहुल गांधी एक दिन के फोटो सेशन की अपनी सक्रियता से किसानों के मसीहा बनने का ढोंग कर नव वर्ष की छुट्टी मनाने विदेश चले गए। ये किसानों के कितने हितैषी रहे हैं और आज कितने हैं पूरा देश जानता है।
चाहे हम किसानों के संगठन का नेतृत्व कर रहे हों या जनप्रतिनिधि हों, प्रधानमंत्री संवैधानिक पद है, उनके बारे में नए कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर अपमानजनक और आपत्तिजनक शब्द कहना क्या जायज ठहराया जा सकता है? इस तरह के लोग न किसान हैं, न किसान हितैषी। ये राष्ट्र विरोधी ताकते हैं जो भारतीय लोकतंत्र में मिले वाक स्वतंत्रता के अधिकार का घोर दुरूपयोग कर रहे हैं। विपक्षी दलों का इन कानूनों को लेकर जो विरोध है, पोल देश के सामने खुल चुकी है। शरद पवार जब मनमोहन सिंह सरकार में कृषि मंत्री थे तो इन सुधारों के पक्ष में मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था। कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में इन कानूनों को लाने की बात की थी। जहां कम्युनिस्ट शासित केरल में एमएसपी लागू नहीं है, वहीं कांग्रेस शासित पंजाब और राजस्थान के किसानों को एमएसपी मूल्य पर अपने राज्य में फसल की खरीद नहीं होने पर भाजपा शासित हरियाणा और मध्य प्रदेश का रुख करना पड़ रहा है।
ये वही लोग हैं जिन्होंने स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया था। किसानों की आर्थिक हालत को बेहतर करने के उद्देश्य से 2004 में केंद्र सरकार ने एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स का गठन किया था। 4 अक्तूबर, 2006 को स्वामीनाथन कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मनमोहन सिंह सरकार को सौंपी थी लेकिन अगले 7 वर्ष तक सरकार में रहने के बावजूद इन लोगों ने सिफारिशों को लागू नहीं किया। इनका विरोध ढोंग से अधिक कुछ नहीं है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 में सरकार बनने के बाद पहले दिन से इस दिशा में कदम उठाया गया। इन तीन नए कानूनों के माध्यम से स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को अंजाम तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है तो फिर विरोध कैसा? किसानों की आशंकाओं का निवारण करना सरकार का धर्म है और सरकार अपना धर्म पूरी ईमानदारी से निभा रही है।
किसानो को समझना चाहिए कि संवाद दुनिया की हर समस्या का श्रेष्ठ समाधान है। समाज का गठन ही संवाद से होता है। भारतीय चिंतन परंपरा में संवाद का व्यापक महत्व रहा है। संवाद भारतीय दर्शन का अत्यंत सहिष्णु पक्ष रहा है जिसके कारण भारत विश्वगुरु कहलाया। इतिहास साक्षी है विश्व में जितने भी युद्ध हुए हैं, चाहे पहला विश्व युद्ध हो या दूसरा विश्व युद्ध, दो देशों या दो समुदायों के बीच विवाद या युद्ध, समाधान टेबल पर संवाद से ही निकला है। युद्ध और विवाद स्वयं में समाधान नहीं है। हिंसक विरोध-प्रदर्शन से समस्या का संकट गहरा सकता है, समाधान नहीं निकल सकता। नए कृषि कानूनों के विरोध से उत्पन्न संकट का समाधान भी संवाद से ही निकलेगा। सात दौर की वार्ता समाप्त होने तक 50 प्रतिशत से आगे समाधान हो चुका है। पूर्ण उम्मीद है 8 जनवरी को आठवें दौर की वार्ता में 100 प्रतिशत समाधान निकलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार पूरी श्रद्धा और ईमानदारी से दिन-रात कृषि क्षेत्र के कायाकल्प और किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण के पुण्य कार्य में लगी हुई है। किसान और किसान संगठनों को भी बड़े दिल के साथ संवाद कर कृषि क्षेत्र में हो रहे सूर्योदय का स्वागत करना चाहिए। सरकार का काम तो कानून बनाना ही होता है। वह जो भी कानून बनाती है वह राष्ट्रहित में ही बनाती है। रही बात किसान संगठनों कि तो उन्हें अब संशोधनों के साथ नए कानूनों को कृषि और किसानों के हित में मान लेना चाहिए।