अवनीश जैन
इंदौर के संवाद नगर के मुख्य मार्ग पर मकान नंबर-46 घर कम पेड़-पौधों के बीच छिपी कोई कुटिया अधिक नजर आती है। करीब 3000 वर्गफीट के इस प्लॉट का 2000 वर्गफीट एरिया खुला है। ये घर है जैविक कृषि के जानकार और गांधीवादी विचारक पद्मश्री कुट्टी मेनन का। मेनन के काम देखते हुए शासन ने उन्हें ये भूखंड उपलब्ध कराया था। इस पर घर बनाकर वे 1997 में रहने आए। घर के खुले भाग में 250 तरह के पेड़-पौधे, बेल और झाड़ियां लगी हैं। इनसे निकलने वाली पत्ती, टहनियां और किचन से निकलने वाला सब्जी, फल-फूल का कचरा कभी घर से बाहर नहीं फेंका जाता।
कस्तूरबा गांधी के नाम पर स्थापित कस्तूरबा ग्राम में टी जी के उर्फ थाचेरील गोविंदन कुट्टी मेनन को उनके जैविक खेती और पर्यावरण मित्र सिंचाई में किये गए योगदान के लिए 1989 में प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1991 में चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से।
आज यदि पूरे देश में जैविक खेती के क्षेत्र में इंदौर का नाम रोशन है तो उसकी पहल का श्रेय श्री कुट्टी मेनन के ही खाते जाता है। 1989 से लेकर 1996 -97 तक कई बार उनसे कस्तूरबा ग्राम और अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों में मुलाकात होती रही और उनसे बहुत कुछ सीखने को भी मिला।
मूलतः केरल के थ्रीशुर जिले के कोडुंगलुर कस्बे में 1940 में जन्में श्री मेनन एक बार इंदौर आये तो फिर यहीं के होकर रह गए। आज सुबह उन्हें हार्ट अटैक आया और दिनभर अचेतन अवस्था में रहने के बाद कुछ देर पहले वे हमारे इंदौर को सदा के लिए छोड़ गए लेकिन इंदौर के नाम स्वर्णाक्षरों में लिख गए। मैं समस्त पर्यावरण प्रेमियों,जैविक खेती समर्थकों और शहर के आम नागरिकों की और से पद्मश्री कुट्टी मेनन को तहेदिल से श्रध्धांजली देता हूँ और प्रभु से कामना करता हूँ कि उन्हें अपने श्री चरणों में विराजित करें।
नमन