माला सिंह ठाकुर
जीजामाता की राष्ट्रधर्म स्थापना के संकल्प के साथ, शिवा की हिंदवी साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज तक की यात्रा, के साक्षी श्री गणपति महाराज, के माहतम्य का उल्लेख शास्त्रों में तो है ही, किंतु अति सामान्य व्यक्ति से राजे – रजवाड़ों तक के अपने हृदयवासी देव गणपति.. गणेशोत्सव की ही देन है। इतिहास में उल्लेख मिलता है की जीजामाता ने देशकाल परिस्थिति को भांपकर कस्बा गणपति की स्थापना लगभग 1630 ई के आसपास की थी।
इतिहास के अनुसार गणपति जी शिवाजी महाराज के कुलदेवता हैं। पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया और इसका भव्य स्वरूप भी उन्हीं की कल्पना थी। अति प्राचीन समय से देवाधिदेव के सुपुत्र के रूप में मंगलकर्ता और विघ्नहरता गणनायक की प्रथम पूजनीय परंपरा को हम सभी मानते आ रहे हैं। यह भगवान गणेश के प्रति हम सभी की आस्था और विश्वास है।
इसी भाव को प्रगाढ़ करते हुए लोकमान्य तिलक जी ने गणेशोत्सव का संकल्प किया। जब अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो की नीति फलीभूत हो रही थी, ऐसे विषम समय में आम जनमानस में संस्कृति संरक्षण और सामाजिक समरसता के भाव जागरण के साथ राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के भान को लेकर चिंतित लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने 1893 से सार्वजनिक गणेशोत्सव की नींव रखी। यह परंपरा संपूर्ण देश में (कुछ राज्यों को छोड़कर) अनवरत चली आ रही है।
उस समय केवल धार्मिक आयोजन नहीं अपितु स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत करने, छुआछूत को समाप्त करने, संपूर्ण समाज को अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट करने के आंदोलन के रूप में सार्वजनिक गणेशोत्सव की प्रथा प्रारंभ हुई। इस एकजुटता के साथ ही ब्रिटिश हुकूमत की रातों की नींद उड़ गई। इस प्रकार प्रथम पूज्य गणेश जी, राष्ट्रीय एकता और स्वाभिमान के प्रतीक बन गए। चाहे महाराष्ट्र के मंगलमूर्ति हों या दक्षिण के कला शिरोमणि, उत्तर के विघ्नहर्ता हो या पूरब के गणनायक.. सभी रूपों में गणपति बप्पा सर्वविद्यमान रूप में प्रमुखता से पूजे जाते हैं।
पेशवाई परंपरा के आधार पर पहले वर्ष 1893 में गणेश जी की प्रतिमा को मंदिर से बाहर लाकर सार्वजनिक पूजन किया गया। पुनः प्रतिमा मंदिर में स्थापित की गई। सर्वसम्मति से ये तय हुआ की गणपति जी की पूजित प्रतिमा को बार – बार पूजन स्थल से हटाना उचित नहीं होगा। अतः मिट्टी की प्रतिमा बनाना भाद्रपद मास की चतुर्थी को स्थापित करना, विधिवत पूजन, आरती, सांस्कृतिक कार्यक्रम करना और उन्हीं आयोजनों को आधार बनाकर स्वतंत्रता आंदोलन की आगामी रणनीति पर विचार विमर्श और जागरण करना और दस दिन बाद चतुर्दशी के पश्चात धूमधाम से विसर्जित करना।
यह सांस्कृतिक आंदोलन आज भी उतना ही प्रासंगिक प्रतीत होता है। विभिन्न रूपों में सामाजिक सरोकार के संदेश देते गणपति जी की स्थापना और विधिवत पूजन नई ऊर्जा और नए प्रतिमानों को गढ़ने में सदैव विशिष्ट रहे हैं। भाव के भूखे भगवान की कल्पना को, गणपति जी की भावपूर्ण आराधना से साकार होते हम सभी ने देखा और महसूस किया है।
यही भाव एक समय स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा बना और ब्रिटिश हुकूमत के हौंसले पस्त करने में सफल भी रहा। आजादी की लड़ाई में गणेशोत्सव की महती भूमिका अंग्रेजी शासकों द्वारा बनाई गई रॉलेट समिति की रिपोर्ट के आधार पर भी ध्यान में आती है। इतिहास में संकलित उक्त समिति की रिपोर्ट के हिंदी अनुवाद के अनुसार “गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम – घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती है व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते है। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आव्हान होता है।
इन युवकों के भाषणों में अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया गया है।” इस प्रकार अंग्रजों से लोहा लेने में सार्वजनिक गणेशोत्सव की कल्पना और रचना सफल रही। वीर सावरकर जी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, बेरिस्टर जयकर, पंडित मदन मोहन मालवीय जी, मौलिक चंद्र शर्मा जी, बेरिस्टर चक्रवर्ती जी, दादा साहेब खापर्डे, सरोजनी नायडू जैसे कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का उल्लेख गणेशोत्सव के संदर्भ में इतिहास में मिलता है।
इसी रूप में संस्कृति और परम्पराओं के संरक्षण आंदोलन के रूप में आज भी गणेशोत्सव प्रासंगिक हैं। जंहा एक ओर बड़े – बड़े सांस्कृतिक आयोजन, लोक कलाओं और परम्पराओं को सहेजने के माध्यम बने हैं वंही दूसरी ओर बस्तियों, गली – मोहल्लों में विराजने वाले गणपति बप्पा सामाजिक समरसता की मिठास घोलते हैं।
विगत दो वर्षों से अवश्य वैश्विक महामारी के कारण हम अपने बप्पा का स्वागत भव्य रूप में नहीं कर पाए, किंतु मुझे विश्वास है जल्द ही परिस्थितियां सामान्य होंगी और हम देश संस्कृति को जोड़ने वाले गणपति जी की आराधना के उत्सव को धूमधाम से मनाएंगे। तब तक बप्पा से सभी के स्वस्थ, सुखी, निरोगी और निर्विघ्न जीवन की प्रार्थना के साथ…. जय श्री गणेश