श्रीजी को आज पहनाएं जाते है लाल रंग के मलमल वस्त्र, बांधी जाएगी वंदनमाल, मुकुट-काछनी का होगा श्रृंगार

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आज सखी गोकुलचंद बिराजे ।
न्हेनी न्हेनी बूँदन बरखन लाग्यो मंद मंद घन गाजे ।।१।।
मोरमुकुट मकराकृत कुंडल वनमाला छबी छाजे ।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर प्रकटे भक्त हित काजे ।।२।।

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज का प्राकट्योत्सव (हांडी उत्सव)

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराजश्री का प्राकट्योत्सव है. आपका प्राकट्य वि.सं.1763 में नाथद्वारा में हुआ था. आप एक विद्वान साहित्यकार एवं भावनाशील कलाकार थे. आप विविध कीर्तनों की रचना से एवं अनेक मनोरथों द्वारा श्रीगोवर्धनधारी प्रभु को रिझाते थे. आपने ही प्रथम हांड़ी-उत्सव रौशनी में नंदालय की भावना से किया था और श्री ठाकुरजी को रत्नजड़ित मणि-माणक के हिंडोलने में झुलाया था.

आपश्री ने ही प्रथम बार नाथद्वारा में अन्नकूट मनोरथ पर सात स्वरूपों को पधराया था जिसमें श्री मथुराधीशजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री द्वारिकाधीशजी, श्री गोकुलनाथजी, श्री गोकुलचन्द्रमाजी, श्री बालकृष्णजी, श्री मदनमोहनजी आदि स्वरूप पधारे थे. नाथद्वारा में दो माह तक विविध मनोरथ हुए थे. विक्रम संवत 1796 के मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी के दिन दिव्य सप्तस्वरूपोत्सव किया और छप्पनभोग धराया.

श्रीजी का सेवाक्रम – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज का उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है. दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दीवला सोने के आते हैं.

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आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है. भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

माईरी श्यामधन तन दामिनी दमकत पीताम्बर फर हरे l
मुक्ता माल बगजाल कही न परत छबी विशाल मानिनीकी अरहरे ll 1 ll
मोर मुकुट इन्द्र धनुषसो सुभग सोहत मोहत मानिनी धुति थर हरे l
‘कृष्णजीवन’ प्रभु पुरंदरकी शोभा निधान मुरलिकाकी घोर घरहरे ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज गौचारण लीला के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें श्री ठाकुरजी ग्वाल-बाल सहित गौचारण कर पधारे हैं और गोपीजन उनका स्वागत हाथों में आरती लिये कर रही हैं. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. उत्थापन पीछे भोग आरती में रूपहली कटोरी वाली लाल मख़मल की पिछवाई धरायी जाती हैं.

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वस्त्र – श्रीजी को आज लाल (कसुमल) रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं गाती का पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी (डोरिया) के होते हैं.

श्रृंगार – वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के मिलवा – हीरे की प्रधानता के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल चांदी के काम का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. मुकुट पर माणक का सिरपैंच धराया जाता है.

श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. नीचे पदक ऊपर हार, माला धराये जाते हैं. आज दो पाटन वाले हार धराये जाते हैं. कमल के पुष्पों की कलात्मक थागवाली मालाजी धरायी जाती है. आज पुष्प की माला सभी समय एक-एक ही आती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल, गोटी सोने की जाली की व आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.