ये सच है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में शिव और राज ये दोनों शब्द एकदूसरे के परस्पर बन चुके हैं, जहाँ शिव हैं वहीं उनका राज़ है यही वजह है कि चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले शिवराज की तीसरी आंख का अंदाज़ा लगा पाने में अच्छे अच्छे सियासतदार मात खा गए । जो शिवराज दिल्ली कमान की आंखों के तारे हैं उन्हें आंखों का कचरा समझने वाले फिर एक बार मुँह के बल गिर पड़े। कई असंतुष्ट और खाली बैठे नेताओं ने तो सामाजिक मीडिया पर एक केंद्रीय मंत्री और एक पूर्व मुख्यमंत्री की मुलाकात की तस्वीर वायरल कर दी, तो एक और असंतुष्ठ धड़े ने पूर्व बीजेपी सुप्रीमो अमित शहं’शाह’ से हुई ‘शिव”राज’ की मुलाकात के मायने एमपी की सत्ता से जोड़कर रख दिये लेकिन हुआ वही जो हर बार होता है और प्रदेश में ‘शिव’ भी कायम हैं और शिव का ‘राज’ भी कायम है ।
सच कहता हूं मुझे लगता है कि प्रदेश के सभी असंतुष्ट और खाली बैठे नेता शायद उतने शातिर नहीं जितने उन्हें होना चाहिए या वो शिवराज की “तीसरी आंख” यानी “त्रिनेत्र” से वाकिफ नहीं जो बार-बार मुख्यमंत्री की कुर्सी का किस्सा मशहूर कर देते हैं । ऐसे में सत्ता की मलाई भी वही खाएंगे जो शिव की आंखों के तारे होंगे और विष्णु की लिस्ट के सितारे होंगे । भगत की भक्ति में डूबे चेहरों को भी अवसर मिल सकता है बशर्ते वो हितों को साधने वाले हों यानी होगा वही जो शिव-विष्णु-भगत और हितों का ध्यान रखेंगे । बाकी महाराज यानी सिंधिया को साधना और सिंधिया को पार्टी की साधना अब मजबूरी है फिर भी सिंधिया के समर्थकों को कुर्सी देना जरूरी है शेष संघ जाने !
ऐसे में ये इशारा उनके लिए काफी है जो बार-बार केंद्र के कानों में ‘शिव’ और ‘राज’ की बुराई-भलाई कर आते हैं और त्रिनेत्र में कैद हो जाते हैं । मगर, हर बार कोई फर्क नहीं अलबत्ता की तर्ज पर शिव अपनी साधना में कायम रहते हैं । बावजूद इसके अब त्रिनेत्र खुलने पर उन तमाम विघ्नसंतोषी चेहरों की खैर नहीं लगती जो हर बार ‘सत्ता’ के शीर्ष पर बैठे ‘शिव’ को सावन के महीने में चुनौती दे रहे हैं और खाली हाथ मलते नज़र आ रहे हैं, अब इंतज़ार है ‘शिव की सत्ता’ को ललकारने वालों पर त्रिनेत्र के प्रकोप का…
– हरीश फतेहचन्दानी –