राजनीति में कई बार ‘बे-सिर-पैर’ के फरमान सुनने को मिल जाते हैं। राज्य मंत्रिमंडल की हाल की बैठक में भी ऐसा कुछ हुआ। मुख्यमंत्री ने मंत्रियो की ‘रेटिंग’ के साथ एक ‘गाइडलाइन’ जारी कर दी। इसके तहत मंत्रियों को अपने प्रभार के जिले के किसी गांव में रात गुजारना होगी। यह फरमान ‘बे-सिर-पैर’ का इसलिए है क्योंकि मुख्यमंत्री ने अब तक अपने मंत्रियों को प्रभार के जिले ही नहीं बांटे, तो वे प्रभार के जिलों के गांवों में रात कैसे गुजार सकते हैं। इसलिए मंत्री आपस में चर्चा करते नजर आए कि पहले जिलों के प्रभार बांट देते, इसके बाद रात गुजारने की बात करते तो अच्छा होता। मंत्रियों के ‘परफारमेंस’ का आंकलन करने के लिए ‘रेटिंग’ की बात भी मुख्यमंत्री ने कही। इसके लिए कोई मापदंड तय ही नहीं किए गए। मंत्री असमंजस में हैं कि रेटिंग उनके मीडिया के सामने आकर बयान देने से ज्यादा बनेगी, कार्यकर्ताओं व लोगों से ज्यादा मिलने पर फोकस करना होगा या विभागीय कामों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा। इससे मंत्रियों में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी यह तो तय है लेकिन प्रतिस्पर्द्धा किन मामलों में हो, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा।
महाराज के ‘राइट-लेफ्ट’ भी नजरअंदाज….
– भाजपा सत्ता में न आती तो कांग्रेस सरकार सिंहस्थ, ई-टेंडरिंग, व्यापमं जैसे कई घोटालों की जांच करा रही होती। कटघरे में होते भाजपा सरकार के कई मौजूदा ताकतवर मंत्री। इसके लिए भाजपा नेतृत्व को ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं उनके समर्थकों का अहसानमंद होना चाहिए। विडंबना देखिए, जिन्होंने भाजपा के मंत्रियों को दु:ख एवं मुसीबत से बाहर निकाला, उन्हें ही इंतजार करना पड़ रहा है। सिंधिया के ‘राइट-लेफ्ट’ माने जाने वाले गोविंद सिंह राजपूत एवं तुलसी सिलावट तक की पूछपरख बंद है। राजपूत और सिलावट ने उप चुनाव के बीच 6 माह पूरे होने के कारण मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। दोनों रिकार्ड वोटों के अंतर से चुनाव जीते हैं। माना जा रहा था कि पूरा मंत्रिमंडल विस्तार हो या न हो लेकिन उप चुनावों के तत्काल बाद ये दोनों जरूर मंत्री पद की शपथ ले लेंगे। पर इन्हें भी नजरअंदाज किया जा रहा है। भाजपा सरकार आराम से चल रही है। उसे मंत्रिमंडल विस्तार की कोई जल्दी नहीं है। कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा की बनवाने वालों के भाग्य में घर बैठकर इंतजार करना आया है। इतनी अहसान-फरामोसी भी ठीक नहीं। चर्चा है, भाजपा ने सिंधिया और समर्थकों को अहसास कराना शुरू कर दिया है कि यहां पार्टी सबकुछ है, नेता की कोई हैसियत नहीं।
उफ़, यह कैसी फजीहत और किरकिरी….
– प्रदेश सरकार की जितनी फजीहत, किरकिरी कोरोना महामारी के लिए जारी गाइडलाइन को लेकर हो रही है, शायद ही किसी अन्य मामले में हुई हो। पहला सवाल यह कि जब तक चुनावी रैलियां हुर्इं, तब तक कोराना गायब रहा। जैसे ही चुनाव निबटे, कोरोना प्रकट हो गया। दूसरा, सरकार ने रात 10 से सुबह 6 बजे तक कफ्यू लगाने का निर्णय लिया है। इस समय आमतौर पर लोग घर पहुंच कर सो जाते हैं। सोशल मीडिया में सरकार का मजाक उड़ रहा हैं कि रात में निकले तो कोरोना की चपेट में आ जाओगे, दिन में जो मर्जी हो करो, कोरोना किसी को नहीं छेड़ेगा। तीसरा, बाजार रात 8 के बाद न खुलने के निर्देश हैं लेकिन शराब की दुकानें 10 बजे तक खुली रह सकती हैं। अर्थात शराब की बोतल दिखाकर कोई भी नाइट कर्फ्यू तोड़ सकता है। भोपाल में रेस्टोटेंट एवं खाने-पीने के होटल रात 10 बजे तक खुले रहेंगे जबकि रात का कर्फ्यू भी 10 बजे से ही लागू हो जाएगा। अर्थात रात 10 बजे होटल से खाना खाकर निकलने वाला व्यक्ति कर्फ्यू तोड़ने के आरोप में कार्रवाई का शिकार हो सकता है। शादी समारोहों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या तय कर दी गई लेकिन राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए कोई सीमा तय नहीं। गाइडलाइन के नाम पर इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है?
क्या अक्षम्य है मंत्री की यह हरकत….
– प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री विजय शाह रगंमिजाजी के कारण कई बार सुर्खियां बटोरते हैं। एक बार तो उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह को लेकर एक टिप्पणी कर दी थी और अपना मंत्री पद गंवा बैठे थे। एक टीचर को लेकर भी वे चर्चा में आ चुके हैं। इस बार तो उन्होंने हद ही कर दी। फिल्म इंडस्ट्री की प्रसिद्ध अभिनेत्री विद्या बालन के कारण निशाने पर आ गए। विद्या फिल्म शेरनी की शूटिंग के लिए प्रदेश के बालाघाट जिले में हैं। विजय शाह वन विभाग के मंत्री हैं। शाह ने विद्या बालन से मिलने का समय मांगा। मुलाकात हुई तो विद्या को डिनर के लिए आमंत्रित कर डाला। बताते हैं, मंत्री जी की इमेज की जानकारी विद्या को थी, लिहाजा उन्होंने डिनर का आमंत्रण ठुकरा दिया। नतीजा, वन विभाग ने बालाघाट के जंगल में फिल्म की शूटिंग रुकवा दी। मामले ने तूल पकड़ा। बात ऊपर तक पहुंची। तब शूटिंग प्रारंभ हो सकी। संभव है मामला वैसा न हो जैसा बताया जा रहा है और विजय शाह अपनी जगह ठीक हों, लेकिन डिनर का आमंत्रण ठुकराने के बाद जो हुआ, इससे मंत्री जी की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। इस चर्चा को मंत्री जी की इमेज से भी हवा मिली। कांग्रेस ने तत्काल मामले को लपका और शाह को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग कर डाली।
कांग्रेस जाए भाड़ में, ‘हम नहीं सुधरेंगे’….
– कमलनाथ सरकार और संगठन नहीं संभाल सके। नतीजा, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा बड़ा नेता पार्टी छोड़ गया। चंबल-ग्वालियर अंचल में कांग्रेस की पहचान सिंधिया ही थे। अंचल में उनसे अलग किसी दूसरे नेता की इमेज है तो डा. गोविंद सिंह की। गोविंद का रिकार्ड है कि वे सिंधिया व रावतपुरा सरकार जैसे संतों के विरोध के बावजूद कभी चुनाव नहीं हारे। उनकी गिनती दबंग नेताओं में होती है। भाजपा भी आज तक उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकी। चंबल-ग्वालियर में डा. सिंह कांग्रेस को खड़ा करने में भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। भितरघात का आरोप लगाकर भिंड जिला कांग्रेस अध्यक्ष ने उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कर नेतृत्व को भेजा और उन्हें पार्टी से निकालने की मांग कर डाली। किसान कांग्रेस के एक पूर्व पदाधिकारी ने आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। डा. सिंह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद के प्रबल दावेदार हैं। साफ है, उन्हें इस पद तक पहुंचने से रोकने के लिए साजिश के तहत यह मुहिम छेड़ी गई है। संकट के इस दौर में जब कांग्रेस नेताओं को एकजुट होकर पार्टी की मजबूती के लिए काम करना चाहिए, तब भी विरोध की यह राजनीति। विडंबना यह है कि इस मुहिम के पीछे कमलनाथ खेमे का हाथ बताया जा रहा है। साफ है, नेताओं ने तय कर लिया है ‘पार्टी जाए भाड़ में, हम नहीं सुधरेंगे’।