दिनेश निगम ‘त्यागी’। भोपाल दौरे के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सही समय पर मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे। जबकि मुख्यमंत्री चौहान ने कहा था कि मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर कोई जल्दी नहीं है। इन दो प्रमुख दिग्गजों के बयानों के बाद मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चर्चा फिलहाल थम गई दिखती है। इसका मतलब यह कतई नहीं कि मंत्रिमंडल विस्तार ठंडे बस्ते में चला गया है। भाजपा के अंदर मंत्रिमंडल विस्तार के साथ निगम-मंडलों एवं अन्य सरकारी संस्थाओं में होने वाली राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर मंथन जारी है। यह सच है कि मुख्यमंत्री चौहान विस्तार एवं नियुक्तियों की जल्दबाजी में नहीं रहते लेकिन अब हालात बदले हुए हैं। सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में आ चुके हैं। वे नहीं चाहेंगे कि मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले उनके समर्थक विधायकों एवं राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए पुनर्वास की आस में बैठे पूर्व विधायकों को और इंतजार करना पड़े। उनके दबाव की वजह से मंत्रिमंडल विस्तार और उनके अन्य समर्थकों के पुनर्वास में ज्यादा देरी नहीं की जा सकती। यही वजह है कि भोपाल से लेकर दिल्ली तक इस मुद्दे पर विचार-विमर्श का दौर चल रहा है। सवाल यह है कि मंत्रिमंडल विस्तार में शिवराज इस बार अपने पसंद की टीम बना पाएंगे या ‘शिव’ को फिर ‘विष’ पीना पड़ेगा’। पिछली बार अपने समर्थकों को जगह न दे पाने के कारण यह कह कर ही उन्होंने अपनी पीड़ा का इजहार किया था कि विष तो शिव को ही पीना पड़ता है।
दिसंबर के पहले सप्ताह में विस्तार संभव
– सिंधिया की सक्रियता की वजह से मुख्यमंत्री चौहान को दिसंबर के पहले सप्ताह में मंत्रिमंडल का विस्तार करना पड़ सकता है। यह भी संभव है कि मंत्रिमंडल के पूरे विस्तार से पहले इस्तीफा देने वाले दो सिंधिया समर्थकों गोविंद सिंह राजपूत एवं तुलसी सिलावट को मंत्री पद की शपथ दिला दी जाए। इसके साथ कुछ राजनीतिक नियुक्तियां कर मंत्री पद के दावेदारों को एडजस्ट कर दिया जाए। नियुक्तियों में सिंधिया समर्थक तीन मंत्रियों इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया एवं एंदल सिंह कंसाना का पुनर्वास किया जा सकता है। बता दें, ये तीनों मंत्री रहते हुए विधानसभा उप चुनाव हार गए हैं। सिंधिया इनके पुनर्वास की कोशिश में बताए जाते हैं। इमरती देवी ने सिंधिया के कहने पर ही मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया है जबकि वे इंकार कर चुकी थीं।
हर नेता तैयार कर रहा समर्थकों की सूची
– कांग्रेस की तरह भाजपा में भी बड़े नेताओं की कमी नहीं है, बल्कि अब भाजपा में कांग्रेस से ज्यादा बड़े नेता हैं। इनकी अपनी लाबी या गुट हैं। मंत्री बनने के दावेदार विधायक एवं राजनीतिक नियुक्तियों के इंतजार में बैठे नेता अपने इन आकाओं के चक्कर लगाने लगे हैं। इन बड़े नेताओं में मुख्यमंत्री चौहान, सिंधिया के अलावा नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, वीडी शर्मा, राकेश सिंह, नरोत्तम मिश्रा आदि शामिल हैं। सभी अपने समर्थकों की सूची तैयार कर रहे हैं। जिन्हें ये मंत्री बनवाना चाहते हैं या सरकार में राजनीतिक नियुक्ति दिलाकर उपक्रत करना चाहते हैं।
अपनी मर्जी नहीं चला पाएंगे मुख्यमंत्री
– मार्च में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शिवराज सिंह चौहान अपनी मर्जी का मंत्रिमंडल नहीं बना पाए थे, क्योंकि सत्ता में वे सिंधिया की मदद से आए थे। उन्हें कहना पड़ गया था कि ‘विष तो शिव को ही पीना पड़ता है’। उनके नेतृत्व में उप चुनावों में भाजपा ने अच्छी जीत हासिल की है। नतीजे आने के बाद भाजपा अब अपने खुद के बहुमत के बूते सरकार में है। बावजूद इसके लगता नहीं कि मुख्यमंत्री चौहान अब भी अपनी पसंद का मंत्रिमंडल बना पाएंगे और अपनी पसंद के नेताओं को निगम-मंडलों में नियुक्तियां दे पाएंगे। सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय, वीडी शर्मा जैसे नेता उन्हें ऐसा नहीं करने देंगे। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी प्रदेश में राजनीतिक संतुलन के लिए सबको महत्व देता दिख रहा है।