जीएसटी लागू होने के बाद इस कानून में समय समय पर कई बदलाव होते रहे है | इस कारण से बुक्स ऑफ़ एकाउंट्स रखने और बैलेंस शीट बनाते समय कई बाते ध्यान में रखना जरुरी है | टीपीए द्वारा आयोजित कार्यशाला में जीएसटी विशेषज्ञ सीए शैलेंद्र पोरवाल ने कहा कि
जीएसटी में खाताबही रखने एवं नियमित कंप्लायंस को लेकर कड़े प्रावधान है | एक पंजीयत व्यवसायी को अपने प्रमुख व्यवसाय स्थल के साथ साथ सभी अतिरिक्त व्यवसाय स्थलो पर भी सम्बंधित खाते एवं रिकॉर्ड रखना जरुरी है |
उसे कई रजिस्टर जैसे आउटवर्ड, इनवर्ड, एक्सपोर्ट, एडवांस, रिवर्स चार्ज रजिस्टर के साथ साथ स्टॉक रजिस्टर रखना अनिवार्य है, जो ज्यादातर व्यवसायियों द्वारा नहीं रखे जा रहे है| आयकर अधिनियम में अगर खाते एवं रिकॉर्ड रखने से छुट दी हो, जैसे धारा 44-एडी में विकल्प लेने की दशा में, तो भी ऐसे व्यवसायी को जीएसटी में सारे रिकॉर्ड रखना एवं रिटर्न में इनकी जानकारी देना जरुरी है | टर्नओवर की गणना भी जीएसटी में सबसे कठिन है | एक प्रोप्राइटर फर्म की दशा में उसे व्यवसाय के अलावा निजी आय में से भी कई मदों को टर्नओवर में शामिल करना होता है | यहाँ सप्लाई या बिल बनाना या पेमेंट प्राप्त करना में से जो पहले हो, तब करदेयता आती है |
एक से अधिक राज्यों में पंजीयन की दशा में माल या सेवाओं की आपसी सप्लाई पर भी कर देयता है| अगर वर्ष 2022-2023 के जीएसटीआर – 3बी एवं जीएसटीआर – 1 में दर्शाए गए टर्नओवर में खाताबही से कोई अंतर है, तो उसको ३० नवम्बर के पूर्व भरे जाने वाले रिटर्न में सुधार कर लेना चाहिए | स्थायी सम्पति की खरीदी एवं बिक्री पर कर सम्बन्धी विशेष ध्यान देने की जरुरत है | रिलेटेड पार्टी के साथ में किए गए व्यवहारों पर भी जीएसटी में देयता आती है, जिसका ध्यान रखा जाना आवश्यक है |
इस अवसर पर संबोधित करते हुए टीपीए के अध्यक्ष सीए शैलेंद्र सोलंकी ने बताया कि जीएसटीआर – 3बी एवं जीएसटीआर-2ए में दर्शाई गई इनपुट टैक्स क्रेडिट में अंतर, जीएसटीआर – 3बी एवं जीएसटीआर – 1 में दर्शाए गए टर्नओवर में अंतर बड़ी मात्रा में सामने आ रहे है इसका मुख्य कारण बैलेंस शीट बनाते वक़्त जीएसटी के प्रावधानों को ध्यान न रखना है । टीपीए के उपाध्यक्ष सीए जे पी सराफ ने बताया की इ वे बिल में दर्शाए गए टर्नओवर और कर का जीएसटीआर – 3बी एवं जीएसटीआर – 1 मिलान अवशायक रूप से किया जाना चाहिए ।
एसजीएसटी सचिव सीए मनोज पी गुप्ता ने इस अवसर पर कहा की भरे गए विभिन्न रिटर्न एवं खाताबही का आपस में समुचित मिलान किया जाना चाहिए तथा अगर किसी कारण से व्यवसायी द्वारा कम कर जमा किया है या ज्यादा इनपुट टैक्स क्रेडिट ले लिया है तो स्वतः ही ऐसी राशि ब्याज सहित जमा कर दे, ऐसी दशा में पेनल्टी से बचा जा सकता है | विभाग द्वारा कार्यवाही होने पर देय राशि के बराबर पेनल्टी भी लगाई जा सकती है | इस अवसर पर सीए सुनील पी जैन, सीए भरत अग्रवाल , सीए एम पी अग्रवाल, सीए मनीष डफ़रिया, सीए राजेश सहलोत व अन्य कई कर सलाहकार बड़ी संख्या में मौजूद थे ।