भोपाल। सरदार सरोवर के विस्थापितों के पुनर्वास के सभी बाकी कार्यों की दखल लेकर उन्होंने गुजरात शासन से करीबन 400 करोड रु. की वित्तीय सहायता की मांग की है ताकि भूअर्जन और पुनर्वास के कार्य पूरे हो जाए। उन्होंने यह भी मंजूर किया है कि, मध्यप्रदेश को इस परियोजना से कानूनन हिस्से की बिजली न मिलने से 904 करोड रु. का नुकसान भुगतना पड़ा है जिसकी क्षतिपूर्ति की भी मांग की है। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की 14 वी रिव्हयू कमिटी की बैठक में यह बात रखी गयी है तो इसका स्वागत है।
वही, इस वक्तव्य से दो बाते स्पष्ट होती है, एक- बांध पूरा करने के पहले और आज तक भी पुनर्वास का कार्य पूरा नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री ने जो कार्य अधूरा बताया है, उसमें बांध के विविध जलस्तर पर प्रभावित, परिवारों के पुनर्वास संबंधी कानूनी अधिकार प्राप्त न हुए, घर, खेती, डूब में आये परिवार शामिल हैं। इन सबके लिए सर्वोच्च अदालत के आदेश ट्रिब्यूनल का फैसला तथा राज्यस्तरीय आदेशों के अनुसार घर प्लाँट, विविध अनुदान आदि, के साथ जमीन की पात्रता रखे सैंकडो परिवारों को 60 लाख तथा 15 लाख रु. देना बाकी है।
भूअर्जन के बिना प्रभावित खेती के लिए कही भूअर्जन और कई गावों के लिए पूल, रास्ते बनाना 2 सालों से प्रस्तावित है, मंजुरी व निर्माण नहीं हुआ है। पुनर्वसाहटों के विस्तार के लिए भूमी अर्जन या खरीदी और पुनर्वसाहटों में बचे हुए निर्माण कार्य भी महत्त्व के है और बडी मात्रा में करने पड़ेंगे। बैकवाटर लेव्हल्स गलत साबित होने से अब मध्य प्रदेश को कई गावों – मकानों के बारे में सोचना होगा। इन सबके लिए 328 करोड रु. लेने से कार्य पूरा नहीं हो सकता है। प्रदेश की पूर्व की कमलनाथ शासन के वक्त अधिकारीयों ने आकलन किया था, जिसको मुख्यमंत्री ने आधार मानना जरुरी होगा अन्यथा अधूरी बात, विस्थापितों के एवम राज्य के अहित में होगी।
दूसरी बात यह है कि, मध्य प्रदेश को सरदार सरोवर से एक बूंद पानी न मिलते हुए, एकमात्र लाभ, 56% बिजली का है और उसके लिए 193 गावों की हजारों हेक्टर कृषिभूमी (10000 हेक्टर से अधिक मात्रा हो गयी है), जंगल और आबादी ,शतको पुराने तीर्थ, मंदिर-मस्जिदे, लाखों पेड़, सांस्कृतिक और पुरातत्वीय अवशेष की बलि चढाकर, 6000 करोड से अधिक का पूंजीनिवेश और नर्मदा नदी पर गंभीर असर भुगतना पडा है। हम वर्षों से लाभ – हानि के हिसाब पर सवाल उठाने के बाद अब मध्य प्रदेश शासन जान चुकी है कि गुजरात से उन्हें न्यूनतम लाभ में भी नुकसान पहुंचाया गया। बता दे कि, यह बात 2017 तक भी उठायी नही गयी तो अब 904 करोड की क्षतिपूर्ति गुजरात से मध्य प्रदेश शासन लेके रहेगी या फिर झुकेगी, मध्यस्थता की (arbitration की) प्रक्रिया में ,यह देखना होगा।
बता दे कि, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को भी डूब में आयी कुल 2800 और 6488 हेक्टर जंगल जमीन की कोई भरपाई राशि आज तक प्राप्त नहीं हुई है। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने इन तमाम मुद्दों पर कोई निष्पक्ष जाँच और रिपोर्ट न देते हुए बांध को पूरा करने में हां में हा भरी और झूठे शपथ पत्र राज्य के भी कई अधिकारीयों ने पेश किये। आज मध्य प्रदेश की जनता और शासन इसका नतीजा भुगत रही है| विस्थापितों के 35 सालों के संघर्ष से उठे मुद्दों की सच्चाई गुजरात की कच्छ- सौराष्ट्र जनता तक, बांध के नीचेवास।
मध्य प्रदेश के विस्थापित तो संघर्षरत है और निर्माण में भी सहयोगी रहेंगे लेकिन ‘विकास’ के नाम पर अत्याचार या भ्रष्टाचार सरकार खत्म करे और पुनर्वास का कार्य तथा पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति होने तक कानूनी बंधन मानकर, सरदार सरोवर का जलस्तर 122 मी. पर रखने का निर्णय कल की बैठकमें सुनिश्चित करे तो वही राज्यहित की बात होगी और घाटी के प्रभावितों के हित की भी!