पिछडे वर्गों के जातिवाद के गंभीर परिणाम

Ayushi
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जब हमारा देश एक तरफ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा था तो दूसरी तरफ पिछड़े वर्ग की जातियो का एक बहुत बड़ा वर्ग अंदर ही अंदर समाज में सम्मान पाने की लड़ाई लड़ रहा था। इसमें कुम्हार, गडरिया, कहार,तेली, तमोली, लुहार, बढई, भडभूजा,कलवार, माली,सैनी, नाई, मल्लाह नुनिया, अहीर,कुर्मी, काछी, लोध, राजभर आदि आदि जातियां सम्मालित है।

ये पिछडी जातियां अपनी जाति सभाओं के संगठन में लगे रहे। इनमें से कुछ ने बाबा साहब डा भीमराव आंबेडकर के द्वारा धारा 340की व्यवस्था के कारण मिले आरक्षण का लाभ उठाकर पिछडे और अति पिछडो के बीच की एक दीवार खडी करने के अलावा कछ खास सफँयु नही मिला ,उनके समुदाय को भी सामाजिक बराबरी नहीं मिली अब उन्हें भी सत्ता के लाले पडनेवाले लक्षण दिखाई देने लगे हैं।

पिछडो ने इस युग के करीब 100 वर्ष 1920 से 1921तक का समय जाती सभाओं में सम्मान पाने में गुजार दिया इसमें इन लोगों ने अपनी काफी जनशक्ति और संपत्ति लगानी पडी। दस्तकारो और सेवा मे जुडी अति पिछडी जातियों को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। काश अपनी जनशक्ति और संपत्ति उन्होंने समाज में फैले हुए ऊंच-नीच की भावना के खिलाफ संघर्ष करने में लगाई होती तो देश में पिछड़ी जातियों का समाज बहुत शक्तिशाली समाज बन चुका होता है।

आज वे शिक्षा , राजनीति , नौकरी , व्यवसाय,खेल, वकालत, न्यायालय, प्रशासन आदि सभी क्षेत्रों में आगे होते। लेकिन हुआ इसके विपरीत पिछड़े वर्ग के बनावटी ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य बने लोग समाज में लुक छुप कर रह रहे हैं। वे असली ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य की तरह सिर उठाकर नहीं बल्कि कुत्ते और बिल्लियों की तरह अपनी आत्मा को मारकर जीवन बसर करत रहे हैऔर कितने तो उसी तरह का जीवन आज भी कर रहे हैं।

इसका परिणाम यह हुआ कि जाति व सामाजिक शोषण के खिलाफ जो शिक्षित वर्ग चेतना के आधार पर विवेक और बुद्धि की लड़ाई लड़ सकता है और अपने समाज की अगुवाई कर सकता है वह कुत्ते और बिल्ली की तरह अपने जमीर को मारकर केवल जिऐ जा रहा है। उसके आत्म सम्मान विहीन नेतृत्व को समाज इसीलिए स्वीकार नहीं कर पा रहा है। इस तरह पिछड़ी जातियों का लगभग 100 वर्ष का जीवन बनावटी सवर्ण जातियों के बनने में नष्ट होकर रह गया और पिछड़ा वर्ग जहां का तहां पड़ा रह गया।

पिछडी जातियों जब तक अपने जातीय घमंड से बाहर नहीं निकलती और एस सी ओबीसी के अन्तर को नहीं पाटती तब तक वह शसक्त नहीं बन सकती। हा यदा कदा कुछ जातियां जहाँ उनकी आबादी सघन है, कुछ समय तक धनबल का उपयोग कर आंशिक रुप से क्षणिक राजनीतिक सफलता तो मिल सकती है। लेकिन कुछ समय बाद इस जातिवाद का जब नगाड़ा फूटेगा तो सारी सफलता हवा हवाई ही सावित होता है। अतः वास्तविक सशक्तिकरण के लिऐ सभी एस सी,एसटी और ओबीसी को जातीय सीढियां गिरानी ही पडेगी।

डा वरदानी, गाजियाबाद