इंदौर। दर्शनशास्त्र के वरिष्ठ ज्ञाता, विचारक एवं लेखक डॉ. डी.डी. बंदिष्टे का 98 वर्ष की आयु में शुक्रवार रात्रि में निधन हो गया। वे इंदौर के प्रख्यात चिकित्सक डॉ. मनीष बंदिष्टे के पिताजी थे। दत्तात्रेय ढोंधोपंत बंदिष्टे का जन्म 23 जुलाई 1923 को नागपुर में हुआ था। बंदिष्टे गोलवलकर गुरुजी के समय के प्रचारक थे। उन्हे संघ के कार्य के विस्तार हेतु असम, मणिपुर आदि पूर्वोत्तर क्षेत्रों में गुरुजी द्वारा भेजा गया। 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद लगे उन्हे 6 माह मणिपुर जेल में भी रहना पड़ा। उस समय के कांग्रेस शासनकाल में उन्होंने अनंत प्रताडऩाएं झेली। बाद में गुरुजी के आग्रह पर ही बंदिष्टे जी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में पीएचडी के साथ ही एलएलबी की उपाधि प्राप्त की और विवाह कर गृहस्थ बने। वे इंदौर के आर्ट एंड कॉमर्स कॉलेज में 10 वर्षों तक दर्शनशा के विभागाध्यक्ष भी रहे। डॉ. बंदिष्टे का जीवन सरल, साधा और राष्ट्रीयता से ओतप्रोत था।
डॉ. बंदिष्टे रेशनलिस्ट विचारों से प्रभावित होकर लेखन कार्य में जुड़ गए व लंबे समय तक अनेश्वरवाद पर लेखन का कार्य किया। उन्होंने अभी तक 25 पुस्तकें लिखी हैं। डॉ. बंदिष्टे कहते थे कि विचारों में परिवर्तन होते रहते हैं, अत: सत्य को समझते हुए विचारों में भी परिवर्तन होते रहना चाहिए। नये-नये विचारों का स्वागत और उनका सम्मान करते हुए उसे समझ कर जीवन में उतारना भी चाहिए। डॉ. बंदिष्टे विश्व शांति में विश्वास रखते हुए, सद्भावना के लिए लेखन कार्य भी कर रहे थे। उन्होंने अंधविश्वास का हमेशा विरोध किया और समाज में जागरूकता के लिए काफी सक्रिय रहे।
डॉ. बंदिष्टे अभ्यास मंडल रेशनलिस्ट सोसाइटी आदि में भी सक्रिय रहे। उनके निधन पर सामाजिक संस्था अभ्यास मंडल के मुकुंद कुलकर्णी, इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, वरिष्ठ भाजपा नेता मधु वर्मा, लायंस क्लब के परविंदर सिंह भाटिया, जवाहर बियाणी, वसंत शिंत्रे, शफी शेख एवं शहर के गणमान्य नागरिकों ने श्रद्धांजलि अर्पित की।