Indore News : ‘GST में बदलाव एवं उनका प्रभाव’ विषय पर सेमिनार

Shivani Rathore
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इंदौर (Indore News) : टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन एवं इंदौर सीए शाखा के संयुक्त तत्वाधान में जीएसटी में हुए वर्तमान बदलाव एवं उनका प्रभाव विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया जिसके मुख्य वक्ता थे सीए कीर्ति जोशी।

उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा की जीएसटी में इनपुट टैक्स क्रेडिट को लेकर धारा 16 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देती हुई 40 से अधिक रिट पिटीशन वर्तमान में देश के विभिन्न उच्च न्यायालयो में लंबित है एवं इनमें से अधिकांश का आधार है की व्यापारी ने जो वस्तु या सेवा क्रय की थी उस वस्तु के मूल्य एवं उस पर लगने वाले जीएसटी का भुगतान बैंक के माध्यम से सप्लायर को कर दिया है एवं उन्होंने जो वस्तु क्रय की थी उसकी प्राप्ति के सबूत के तौर पर ई वे बिल एवं ट्रांसपोर्टर के द्वारा जारी की गयी बिल्टी की रसीद भी लगा दी है एवं उन्होंने जिस सप्लायर से वस्तु क्रय थी और उस सप्लायर ने अगर रिटर्न फाइल नहीं किया या टैक्स का भुगतान नहीं किया तो इसमें व्यापारी का क्या दोष है l

इस तरह के केसेस से निपटने के लिए जीएसटी विभाग ने नियम 36(4) के माध्यम से प्रोविजनल इनपुट टैक्स क्रेडिट के नियम को ले कर आये जिसमे यह नियम था की किसी करदाता को उसके जीएसटीआर 2ए में जितनी क्रेडिट दिख रही है उसके अतिरिक्त 20% और प्रोविजनल क्रेडिट मिलेगी जिसे बाद में घटा कर 10% एवं फिर 5% कर दिया था l कुछ गलती करने वाले लोगों की गलती की सजा परिणाम स्वरुप सभी करदाता भुगत रहे है। आज जीएसटी में फर्जीवाड़ा एवं जाली ईनपुट टैक्स क्रेडिट सरकार का सर दर्द बनी हुई है। इसी बात को मध्य नज़र रखते हुए वित्त मंत्रालय ने पिछले दिनों कुछ कड़े फैसले लिए जिससे की गलत लोगों को पकड़ा जा सके और गलत ईनपुट एवं कर चोरी पर लगाम लगाई जा सके।

1 जनवरी से एक बड़ा बदलाव किया जा रहा है जिसके अंतर्गत किसी सप्लायर को चुकाए गए जीएसटी की इनपुट टैक्स की क्रेडिट व्यापारी को तभी मिल सकेगी जब की सप्लायर ने उसका जीएसटीआर-1 भरा हो एवं उसकी डिटेल्स करदाता के जीएसटी-2 बी में दिख रही हो आने वाले समय में व्यापारियों को कई तरह की समस्या से झूझना होगा जैसे की यदि किसी सप्लायर ने समय पर उसका रिटर्न नहीं भरा तो खामयाजा खरीददार व्यापारी को भुगतना होगा ऐसे में कई बड़े व्यापारी ख़रीदी गयी वस्तु का भुगतान छोटे सप्लायर को तब तक नहीं करेंगे जब तक की वह जीएसटी रिटर्न नहीं दाखिल कर देता इसमें ऐसे छोटे व्यापारियों के सामने वर्किंग कैपिटल की समस्या बढ़ जाएगी क्युकी उनकी उधार बिक्री बढ़ जाएगी l

जब जीएसटी कानून आया था तब भी इसी प्रकार की व्यवस्था प्रस्तावित थी परन्तु उसमे वस्तु क्रय करने वाले व्यापारी के पास भी विक्लप था की यदि सप्लायर ने उसके द्वारा दाखिल किये रिटर्न में ऐसी डिटेल्स देना भूल गया है या गलत दे दी है तो वे स्वयं अपने बिल की डिटेल्स दर्ज करा सकते थे जिसे सप्लायर को कन्फर्म करना होता था l अतः उस व्यवस्था में व्यापारी को एक मौका मिलता था परन्तु इस नए कानून में खरीदार व्यापारी को सुनवाई का कोई मौका नहीं दिया गया है यदि सप्लायर बिल की इंट्री डालना भूल जाता है या गलत इंट्री डालता है तो उसका खामयाजा खरीदार व्यापारी को भुगतना होगा l कानून का एक सिद्धांत होता है की वह किसी व्यक्ति को असंभव दायित्व को पूरा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता परतु यहाँ पर इस नियम की अनदेखी की गयी है ऐसा लगता है की क्युकी इनपुट टैक्स क्रेडिट तभी मिलेगी जब यह सुनिश्चित हो जाये की जिस व्यक्ति से वह व्यापार कर रहा है उसने सही टैक्स एवं रिटर्न भरा है l सप्लायर को रजिस्ट्रेशन सरकार ने उचित जाँच के बाद दिया बैंक ने उसका बैंक खाता सभी दस्तावेजों एवं केवायसी कपलयांसेस के बाद खोला एवं वह रिटर्न एवं टैक्स नहीं भरता है तो इसमें एक निष्कपट करदाता का क्या दोष है l

अब तक कोई भी क्लब, एसोसिएशन या सोसाइटी अपने सदस्यों को किसी प्रकार की वस्तु एवं सेवाएं प्रदान करती था तो ऐसी संस्थाएं जीएसटी के कर दायरें में आती है या नहीं इसको लेकर अलग अलग मत थे। इन गतिविधियों पर जीएसटी नहीं लगने का मुख्य कारण था की पारस्परिकता का सिद्धांत अर्थात कोई भी व्यक्ति अपने आप को सप्लाई नहीं कर सकता है। क्लब और उसके सदस्य एक ही माने जाते है। इस बात का उल्लेख माननीय उच्चतम न्यायलय ने भी कलकत्ता स्पोर्ट्स क्लब लिमिटेड मामले में किया है लेकिन अब 1 जनवरी 2022 से सरकार ने जीएसटी कानून की धारा 7(1) मे एक नई उपधारा (aa) जोड़ दी है जिसके कारण अब कोई भी क्लब, एसोसिएशन इत्यादि अपने सदस्यों को या कोई भी सदस्य उस क्लब या एसोसिएशन को अगर किसी प्रकार की वस्तु एवं सेवाएं जो की पैसों के एवज में देती है तो अब ऐसी गतिविधियों को सप्लाई मान लिया जायेगा। सबसे बड़ी बात यह है की इस धारा को 01 जुलाई 2017 से ही लागू कर दिया गया है जिसका मतलब यह हुआ की अब सभी क्लब एवं एसोसिएशन से कर विभाग बेझिझक पिछले साढ़े चार वर्षों की कर देनदारी उगाही कर सकता है।

अगर किसी ने सिर्फ अपना जीएसटीआर-1 रिटर्न भरा है और जीएसटीआर 3बी रिटर्न नहीं भरा है या जीएसटीआर-1 रिटर्न की का टैक्स जीएसटी 3बी रिटर्न से ज्यादा आ रहा है तो ऐसे में किसी रोकटोक के और बिना नोटिस जारी किये करदाता से ऐसा टैक्स सीधा वसूला जायेगा। इस नियम के पीछे उद्देश्य था की बोगस ईनपुट पर रोक लगे लेकिन सरकार ने इस नियम को बनाते समय मानवीय भूल को ध्यान में नहीं रखा जिसके तहत किसी ईमानदार करदाता से जीएसटीआर-1 में गलती से या भूलवश ज्यादा बिक्री या कर देनदारी रिपोर्ट हो जाती है तो जीएसटीआर-1 एवं जीएसटीआर-3बी में अंतर आना स्वाभाविक है वसूली करना ईमानदार करदाता के साथ ज्यादती हो जाएगी।

वर्तमान मे अगर कोई अपील फाइल की जाती है तो याचिकाकर्ता को विवादित कर का 10% अग्रिम राशि बतौर जमा करना होता है लेकिन 1 जनवरी 2022 से जहाँ ई-वेबिल के उलंघन हेतु धारा 129(3) में 200% पेनल्टी लगाई गई हो वहां इसे बढाकर 25% कर दिया गया है। मजे की बात यह है की जब भी रास्ते में ई-वेबिल की कमी बाबत कोई माल पकड़ा जाता है तब कर अधिकारी प्राय:बिना पेनल्टी वसूले माल नहीं छोड़ते है। तो ऐसी स्तिथि में जब करदाता 200% पेनल्टी पहले ही जमा करा चुका होता है तो फिर से 25% जमा कराने का तो कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है।

सेमिनार का संचालन सीए कृष्ण गर्ग ने किया। स्वागत उद्बोधन टीपीए प्रेसिडेंट सीए शैलेंद्र सिंह सोलंकी ने दिया। इस अवसर पर टीपीए के मानद सचिव सीए अभय शर्मा एवं सीए सुनील पी जैन मौजूद थे।