अव्वल तो मुझे हैरत है कि इसका नाम क्या सोचकर रखा गया है, चूंकि मूवी का चर्चा पहले से ही था, तो मुझे पता था कि ये लव ट्राय एंगल टाईप स्टोरी है लेकिन हैरत हुई कि न इसमें लव था और न ही कोई पचा जाने लायक़ एंगल। दिलचस्प ये है कि शकुन बत्रा की इस फ़िल्म में दीपिका, अनन्या पांडे, सिद्धांत चतुर्वेदी और धैर्य करवा सहित रजत कपूर सभी के किरदार कमोबेश ग्रे शेड के हैं, एक बेहतरीन त्रिकोणीय प्रेम कहानी की उम्मीद में इसे देखना शुरू किया था जिसका पहला हिस्सा तो बहुत स्लो और गर्मा गर्म चुम्बनों और बेडरूम सीन्स से भरा है और दूसरा हिस्सा इतने सारे घटनाक्रमों को एक साथ गूंथता है कि स्टोरी का तेल ही निकल गया है।
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दीपिका अभिनेत्री क़माल की हैं,लिहाज़ा वे प्रभावी तो हैं,मगर अकेले उनके दम पर फ़िल्म को चलाया नहीं जा सकता.सिद्धांत के अभिनय की तारीफ़ कुछ लोग करते हैं लेकिन मुझे वो बड़े भावशून्य लगते हैं, बेडरूम से लेकर मातम तक उनके चेहरे में एक जैसे भाव ही दिखते हैं, ऐसा लग रहा है कि भर भर कर बोल्ड सीन डालने के पीछे वज़ह शायद यही होगी कि इस बहाने दर्शकों को थाम कर रखा जाए, हैरत की बात ये है कि एक पूर्ण परिपक्व लड़की (महिला) जो डस्टबिन सही जगह पर रखने तक को लेकर चरम तक सतर्क है।
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वो प्रैग्नेंट न हो,इसकी एहतियात भी नहीं रखती, प्रेम नाम की कोई चीज इस मूवी में किसी भी रिश्तों के बीच दिखाई ही नहीं दी, फिर भी आजकल समानांतर सिनेमा के पर्याय यही हैं, लिहाज़ा इसे ही सम्पूर्ण थाली मानकर उदरस्थ करिए, यदि जी जान से दीपिका को चाहते हैं, तो देखिए वरना कोफ़्त ही होगी, अनन्या अभिनय के लिहाज से अभी ढंग से जवान नहीं हो पाई हैं, बाकी कुशल मंगल है।
प्रवीण दुबे