देख सुन कभी

Mohit
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धैर्यशील येवले इंदौर

बहती हवा को
कभी सुना है
नही सुना न
अब सुनो
वो गीत जीवन के
गाती है ।

खिले हुए
फूलों को कभी
गौर से देखा है
नही देखा न
अब देखो
होते उसमे
जीवन के रंग है ।

उगते सूर्य की
सुगंध को
कभी महसूस किया
नही न
अब करो
उसकी सुगंध
रश्मियों के साथ
आंखों से अन्तस्
में उतर जाती है ।

बारिश की किरणों
से आलोकित हुए कभी
नही न
अब भीगना बारिश में
सारे शरीर से
प्रकाश की किरणें
फूटने लगती है

देखा कभी प्रसव
वसुधा का
नही न
देखना उसकी
कोख से
नवांकुर कैसे
निकलते है ।

आत्मा का नृत्य
देखा कभी
नही न
कर कुछ परोपकार
होंठो पर
वो नृत्य कर रही होती है ।