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मेडिकल उपकरण कंपनियों पर शिकंजा, सस्ते इलाज की कवायद
Posted on: 15 Jun 2018 09:44 by Praveen Rathore
नई दिल्ली। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अब स्वास्थ्य सेवाओं पर फोकस कर रही है। सरकार की मंशा है कि जरूरी दवाओं के बाद मेडिकल उपकरण बनाने वाली कंपनियों को भी मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाया जाए ताकि इलाज बेहतर से बेहतर इलाज भी सस्ता मिल सके। इसकी कवायद शुरू की जा चुकी है। यदि कंपनियों से चर्चा सफल होती है तो मेडिकल उपकरणों की कीमतों में तीस प्रतिशत तक की कटौती हो सकेगी और सस्ते उपकरण मिलने से नागरिकों को इलाज सस्ता मिल सकेगा।
हाल ही में पीएमओ के साथ हुई मीटिंग में इस प्रस्ताव पर चर्चा की गई। नीति आयोग ने इस मसले को लेकर मेडिकल डिवाइसेज मैन्युफैक्चरर्स और पब्लिक हेल्थ ग्रुप्स के अलावा सभी संबंधित पक्षों से बातचीत करनी शुरू कर दी है। नीति आयोग ने अफोर्डेबल मेडिसिन्स और हेल्थ प्रॉडक्ट्स की स्टैंडिंग कमिटी से कहा है कि उसे एक ऐसी मेडिकल उपकरणों की लिस्ट तैयार करनी चाहिए, जो जिससे मार्जिन को सीमित किया जा सके और अधिक मात्रा में उत्पादन हो सके।
सच्चाई ये है कि ज्यादातर उपकरण आयात होते हैं
फिलहाल भारत की ओर से 75 फीसदी मेडिकल उपकरणों का आयात होता है। यही नहीं इस आयात में से 80 फीसदी उपकरण वे होते हैं, जिनका जटिल इलाज के लिए इस्तेमाल होता है और ये काफी महंगे हैं। मौजूदा समय में देश में मेडिकल उपकरणों की कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। कार्डिएक स्टेंट, ड्रग इलुटिंग स्टेंट, कॉन्डम्स और इंट्रा यूटेरिन डिवाइसेज की कीमतें ही पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में हैं। सरकार ने इन्हें जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल कर रखा है।
घुटनों का इलाज भी होगा प्राइस कंट्रोल के दायरे में
घुटनों के इलाज के लिए जरूरी उपकरणों को भी प्राइस कंट्रोल की पॉलिसी के तहत लाया गया है। इनके अलावा बाकी उपकरणों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। पीएमओ के साथ हुई मीटिंग में साझा किए गए ऐक्शन प्लान के मुताबिक, यह सुझाव दिया कि दवाइयों, इलाज और जरूरी उपकरणों को प्राइस कंट्रोल पॉलिसी के तहत लाया जाना चाहिए।